ब्रिजेश ने संवाददाताओं से कहा कि रविवार सुबह मेरे पिता ने मंदिर परिसर में ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। वे बिल्डर , मनपा और पुलिस अधिकारियों से परेशान थे। बीते चार साल से ये सभी आए दिन आकर कहते थे कि मंदिर टूट जाएगा। मनपा अधिकारी कहते थे कि मंदिर तोड़ देंगे, तुम दूसरा इंतजाम कर लो। इसलिए यह एक तरह से हत्या है। यह मंदिर वर्ष 1972 से पहले का यह मंदिर है। संतोषीनगर नाम इस मंदिर के नाम पर पड़ा है। मेरे दादा और पिता ने मंदिर में जीवनभर सेवा की। हमारी मांग है कि मंदिर इसी जगह रहने दिया जाए।
चार पन्नों की सुसाइड नोट मिली
पुलिस को महंत की चार पन्नों की सुसाइड नोट भी मिली है। इसमें महंत ने मंदिर को बचाने के लिए लड़ाई लड़ने की बात लिखी है। खुद के एक संबंधी पर भी सवाल उठाए हैं। इसमें उन्होंने लिखा कि मंदिर को बचाने की अधूरी लड़ाई मेरे पुत्र के सिर पर छोड़कर जा रहा हूं। बेटा मेरी अधूरी लड़ाई लड़ना।
मनपा के मांगने पर देते हैं बंदोबस्त: एसीपी
जी डिवीजन के एसीपी वी एन यादव ने संवाददाताओं के सवाल पर कहा कि महंत के पुत्र के आरोप बेबुनियाद हैं। पुलिस किसी को धमकाती नहीं है। मनपा की ओर से पुलिस बंदोबस्त मांगने पर कई बार बंदोबस्त दिया गया था। आत्महत्या मामले में कारणों की जांच की जाएगी।
हाईकोर्ट में मामला लंबित, फिर भी धमकाते थे अधिकारी: गोहिल
गुजरात प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष शक्ति सिंह गोहिल ने अन्य नेताओं के साथ रविवार शाम मंदिर पहुंचकर पीडि़त परिवार से मुलाकात की। उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि मनपा ने इलाके के रीडेवलपमेंट के लिए जो करार किया है, उसमें भी कहा है कि संतोषीमाता मंदिर सर्वे नंबर की जगह में डिमोलिशन नहीं करना है। फिर भी मनपा अधिकारी यहां आए दिन आकर महंत को धमकाते थे। यह मामला हाईकोर्ट में लंबित है। इसके बावजूद भी महंत को धमकाया जा रहा था। इसके चलते संवेदनशील महंत ने यह कदम उठाया। अहमदाबाद सहित गुजरात में अमानवीय तरीके से डिमोलिशन किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का पालन नहीं हो रहा।