अंबिकापुर. सरगुजा में क्षय रोगियों (TB disease) की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े चौंकाने वाले हंै। हर साल लगभग 1100 से अधिक मरीज पाए जा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार 6 साल में कुल 6 हजार 660 मरीज इसकी चपेट में आए हैं। इसमें 205 लोगों की मौत हो चुकी है। यह आंकड़े स्वास्थ्य विभाग के लिए चिंताजनक हंै। जिले को टीबी मुक्त करना चुनौती साबित हो रही है।
सरगुजा संभाग आदिवासी बाहुल्य इलाका है। यहां अधिकांश लोगों में जागरुकता की कमी है। महीनों सर्दी-खांसी से पीडि़त होने के बावजूद लोग अस्पताल पहुंचकर इलाज कराना उचित नहीं समझते हैं। सर्दी-खांसी (TB disease) को आम बीमारी मानकर घर में ही घरेलू उपचार करते रहते हैं।
इसलिए सरगुजा में क्षय रोगी की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। वर्ष 2024 में 1300 से अधिक क्षय रोग से पीडि़त मरीज पाए गए हैं। जबकि 11 लोगों की मौत (TB disease) हो चुकी है। वहीं पिछले 6 वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2019 से वर्ष 2024 तक कुल 6 हजार 660 मरीज पाए गए हैं।
जबकि 205 लोगों की मौत हो चुकी है। इससे स्पष्ट है कि क्षय रोग जानलेवा साबित हो रहा है। चिंताजनक बात ये है कि मरने वालों में कम उम्र के लोग भी शामिल हैं।
TB disease: बीमारी से मौत के तीन केस
एक महिला मरीज गांधीनगर की थी, जिसमें मृतका को 10 दिन से खांसी, बुखार व कमजोरी की शिकायत थी। एक्स-रे व सीटी स्कैन की रिपोर्ट में टीबी बीमारी (TB disease) के लक्षण पाए गए। इसके आधार पर टीबी का इलाज प्रारंभ किया गया, शुरू के 10 दिन मरीज को इलाज से आराम मिला। लेकिन इसके बाद मरीज के शरीर में दर्द की शिकायत बढ़ गई।
स्थानीय स्तर से चिकित्सकों ने टीबी की दवा बन्द करने की सलाह दी, जिसके फलस्वरूप मरीज ने दवा बन्द कर दी। लेकिन मरीज की खांसी में खून आने व सांस लेने में दिक्कत की परेशानी से प्राइवेट हास्पिटल में भर्ती किया गया। यहां भी मरीज की हालत में सुधार न होने पर रायपुर एम्स भेजा गया, लेकिन मरीज की रास्ते में ही मृत्यु हो गई थी।
अन्य 2 प्रकरण (TB disease) नमनाकला व सूरजपुर के मिले, जिसमें कम समय में क्षय रोग की बीमारी मस्तिष्क और मेरूदण्ड में पहुंच गई और मरीजों को उच्च चिकित्सकीय देखरेख के बावजूद भी बचाया नहीं जा सका।
जिला क्षय अधिकारी डॉ. शैलेंन्द्र गुप्ता ने बताया कि राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम जिला-सरगुजा द्वारा क्षय रोग से प्रभावित मरीजों में मौत की समीक्षा की गई। कुछ केस में टीबी (TB disease) संक्रमण की पहचान के बाद मरीज की मृत्यु कम समय में होना पाया गया, जिनकी आयु 20 वर्ष से 30 वर्ष के बीच थी।
टीबी होने का मुख्य कारण कुपोषण
डॉ. शैलेन्द्र गुप्ता ने बताया कि सरगुजा मे टीबी(TB disease) होने का प्रमुख कारण कुपोषण व जनजागरुकता में कमी है। प्रधानमंत्री निक्षय पोषण आहार योजना के तहत् स्वैच्छिक दानदाताओं की संख्या काफी कम है। वर्तमान में प्रत्येक क्षय रोगी को निक्षय पोषण आहार योजना के तहत डीबीटी के माध्यम से 6 माह में 6750 रुपए प्रदान किए जा रहे हैं।
टीबी का संक्रमण हवा से फैलता है। एक टीबी मरीज से एक साल में 10-12 मरीज संक्रमित होते हैं। फेफड़े की टीबी शरीर के अन्य भाग की टीबी (TB disease) की तुलना में ज्यादा खतरनाक होती है।
यदि परिवार में किसी को फेफड़े की टीबी है तो परिवार के सभी सदस्यों को टीबी के बचाव के लिए टीबी प्रिवेन्टिव (टीपीटी) मेडिसिन लेने की आवश्यकता होती है।
दवा से मृत्यु दर होती है कम
टीबी (TB disease) के उपचार में ज्यादातर एक्स-रे के आधार पर टीबी की दवाई शुरू की जाती है, जबकि सभी मरीजों मे दवाई की रोग प्रतिरोधक क्षमता की जांच के पश्चात ही सही दवा शुरू करनी चाहिए, दवा प्रतिरोधक क्षय रोगी में मृत्यु दर प्रति 100 मरीज में 20 मरीज अर्थात 5 मरीज में 1 की मृत्यु संभावित होती है।
Hindi News / Ambikapur / TB disease: चौंकाने वाले आंकड़े: सरगुजा में 6 साल में टीबी की बीमारी से 205 लोगों की मौत, हर साल मिल रहे 1100 मरीज