सरकार ने राज्य में माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (एमएफआई) के ऋण वसूली में अवैध तरीके के उपयोग पर अंकुश लगाने के लिए इस अध्यादेश को लाने का फैसला किया था। इससे पहले पिछले सप्ताह राज्यपाल ने अध्यादेश के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताते हुए इसे सरकार को लौटा दिया था। सरकार ने स्पष्टीकरण के साथ अध्यादेश फिर से राज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजा था।
प्रख्यापित अध्यादेश में नियमों के उल्लंघन के लिए 10 साल तक की जेल की सजा और 5 लाख रुपए तक के जुर्माने जैसे दंडात्मक प्रावधान शामिल हैं।
सिद्धरामय्या के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने माइक्रोफाइनेंस फर्मों के ऋण वसूली मामलों को लेकर राज्य आत्महत्याओं कई घटनाओं और ऋण वसूली एजेंटों की ओर से उत्पीड़न की शिकायतों के माइक्रोफाइनेंस संस्थनों को विनियमित करने के लिए अध्यादेश लाने का निर्णय लिया था।
गौरतलब है कि 7 फरवरी को राज्यपाल गहलोत ने प्रस्तावित कानून पर पुनर्विचार करने के निर्देश के साथ अध्यादेश को सरकार को वापस कर दिया था। मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या के कार्यालय ने सोमवार को कहा था कि अध्यादेश को पूरी जानकारी के साथ राज्यपाल को वापस भेज दिया गया है।
अध्यादेश में माइक्रोफाइनेंस संस्थानों को असामाजिक तत्वों को ऋण वसूली एजेंट के रूप में नियुक्त करने पर प्रतिबंध लगाया गया था। राज्यपाल ने चिंता व्यक्त की थी कि अध्यादेश के कार्यान्वयन से वास्तविक ऋणदाता प्रभावित हो सकते हैं।
राजभवन ने अध्यादेश की धारा 14 को एक अन्य प्रमुख मुद्दे के रूप में चिह्नित किया, जिसमें अपंजीकृत ऋणदाताओं से सभी मौजूदा ऋण और ब्याज को माफ करने का प्रस्ताव है। यह प्रावधान सिविल अदालतों को ऋण वसूली मामलों की सुनवाई करने और चल रही कार्यवाही को समाप्त करने से रोकेगा।