scriptअब केलवाड़ा के खांकरा गांव के पास नजर आया गिद्धों का झुंड | Now a flock of vultures was seen near Khankara village of Kelwara | Patrika News
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अब केलवाड़ा के खांकरा गांव के पास नजर आया गिद्धों का झुंड

गिद्ध ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र में नीलगाय, लकड़बग्घा, सियार आदि वन्यजीव भी बड़ी तादाद में देखे जा सकते हैं।

बारांJan 05, 2025 / 12:36 pm

mukesh gour

गिद्ध ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र में नीलगाय, लकड़बग्घा, सियार आदि वन्यजीव भी बड़ी तादाद में देखे जा सकते हैं।

गिद्ध ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र में नीलगाय, लकड़बग्घा, सियार आदि वन्यजीव भी बड़ी तादाद में देखे जा सकते हैं।

good news : केलवाड़ा. क्षेत्र के खाकरा गांव के पास जंगल में शनिवार सुबह पेड़ों पर गिद्धों का झुंड देखा गया। गिद्ध ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र में नीलगाय, लकड़बग्घा, सियार आदि वन्यजीव भी बड़ी तादाद में देखे जा सकते हैं। क्षेत्र में लुप्त हो रहे गिद्धों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है। हाल ही में गणना में इनकी संख्या सैकड़ों तक पहुंच रही है। गांव के बुजुर्गों का मानना है कि गिद्धों का होना वायुमंडल के स्वच्छ होने का प्रतीक है। पेड़ पर गिद्धों के झुंड को देखकर पर्यावरण प्रेमियों में खुशी दिखाई दी। लुप्त हो चुके गिद्धों को देखना उत्साहित करता है।
गिद्ध हमारे पर्यावरण के लिए बहुत अहम हैं। ये मृत मवेशी को खाकर पर्यावरण को संतुलित, साफ एवं वायुमंडल को स्वच्छ रखते हैं। गिद्धों की न•ार तेज होती है। ऐसा माना जाता है कि वे खुले मैदानों में चार मील दूर से तीन फ़ीट का शव देख सकते हैं। कुछ प्रजातियों में, जब कोई व्यक्ति शव देखता है तो वह उसके ऊपर चक्कर लगाना शुरू कर देता है। इससे दूसरे गिद्धों का ध्यान आकर्षित होता है और फिर वे भी उसमें शामिल हो जाते हैं। भारतीय गिद्ध एक प्रमुख प्रजाति है जिसे 2002 से आईयूसीएन की रेड लिस्ट में गंभीर रूप से संकटग्रस्त जीव के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, क्योंकि भारतीय गिद्ध संकट के दौरान इनकी संख्या में भारी गिरावट आई है।
गिद्धों के लुप्तप्राय होने के कारण

1990 के दशक की शुरुआत में मवेशियों के लिए एंटी-इंफ्लेमेटरी दवा के रूप में डाइक्लोफेनाक के इस्तेमाल में वृद्धि के कारण गिद्धों की आबादी में 95त्न से अधिक की गिरावट आई। इससे वे सामान्य से गंभीर रूप से लुप्तप्राय हो गए। गिद्ध शिकारी पक्षियों की श्रेणी में आने वाले पक्षी हैं, जो वास्तविकता में शिकार नहीं करते, अपितु मृत पशुओं के अवशेषों को खाकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इसलिए इन्हे अपमार्जक या मुर्दाखोर कहा जाता है।
शाहाबाद के बाद केलवाड़ा, खांकरा के जंगल क्षेत्र में गिद्धों का होना क्षेत्र के लिए शुभ संकेत हैं। वहीं इस क्षेत्र में नीलगाय, लकड़बग्घा, सियार जैसे वन्यजीवों की उपस्थित भी रहती है। उच्च अधिकारियों को इस संबंध में अवगत कराया जाएगा।
दीपक चौधरी, क्षेत्रीय वन अधिकारी, रेंज केलवाड़ा

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