यहां ऐसे मिले हालात
पत्रिका टीम सबसे पहले रात्रि को करीब 11.10 बजे रोडवेज बस डिपो परिसर में संचालित अस्थाई रैनबसेरे पर पहुंची। जहां रैनबसरे के बाहर अलाव जल रहा था। लेकिन कोई भी व्यक्ति यहां पर नजर नहीं आया। वहीं 30 व्यक्तियों की क्षमता वाले इस रैनबसेरे में करीब 15 महिला-पुरुष सोते हुए मिले। यहां पर पुरुषों और महिलाओं के लिए एक ही टेंट में अलग-अलग व्यवस्था की गई थी। इनमें तीन महिलाएं तथा 12 पुरुष मौजूद थे। इनमें से अधिकतर सोते मिले। महिलाओं के लिए अलग से व्यवस्था की हुई थी। एक कोने में कुछ लोग बैठकर बातें कर समय काटते नजर आए। यहां पीने के पानी के लिए कैम्पर भी रखे हुए थे।
बोले कि हमें तो पता नहीं कहां है रैनबसेरा टीम रात्रि को करीब 11.35 पर जिला चिकित्सालय स्थित अस्थाई रेन बसेरे की तलाश में पहुंची। जहां पर चिकित्सालय के मुख्य प्रवेशद्वार के समीप ही स्थित एक भवन के अहाते में दो जने सोते हुए मिले। जब इनसे पूछा की यहां पर रैनबसेरा है, उसमें क्यों नही सो रहे? तो मजदूरी करने वाले इन लोगों ने कहा कि हमें पता ही नहीं कि रैनबसेरा कहां है। टीम ने चिकित्सालय परिसर में संचालित केन्टीन वाले से पूछा तो वह भी नहीं बता पाया। वहीं एक पुलिसकर्मी से पूछने पर वह भी नहीं बता पाया की यहां पर रैनबसेरा कहां खोला गया है।
फायर स्टेशन के रैनबसेरे में 18 जने मिले कोटा रोड स्थित फायर स्टेशन परिसर में स्थित स्थाई रेन बसेरे में रात 11.21 बजे पत्रिका टीम ने पहुंचकर आवाज लगाई। इस पर यहां तैनात कर्मचारी ने ताला खोला। यहां पर भी करीब 18 व्यक्ति सोते हुए मिले। सभी बेड पर रजाई, गद्दे बिछे थे। सब रजाई ओढक़र सोते हुए मिले। हालांकि यहां पर 50 व्यक्तियों की क्षमता है। वहीं स्टेशन रोड स्थित धर्मशाला के रैनबसेरे में भी करीब 17 व्यक्ति सोते हुए मिले।
अन्तिम छोर पर स्थित भवन में बना दिया जिला चिकित्सालय परिसर में नगर परिषद ने अस्थाई रैनबसेरा परिसर के अन्तिम छोर पर स्थित एक भवन में बनाया है। एकांत में बने होने के चलते यहां तक लोगों की पहुंच नहीं हो पाती है। वहीं इसकी पहचान के लिए यहां पर न ही कोई बैनर है और न ही कोई संकेतक लगा है। रैनबसेरा प्रभारी सत्यनारायण नागर ने बताया कि रैनबसेरों में रजाई, गद्दे तथा पीने के पानी की समुचित व्यवस्था की गई है। रोडवेज बस स्टैण्ड वाले रैनबसेरे में रात को तापने के लिए अलाव की भी व्यवस्था की गई है।