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बरेली fake एनकाउंटर : दवा व्यवसायी की हत्या के केस में यूपी के इस iPS समेत सभी पुलिसकर्मी बरी

दवा व्यवसायी मुकुल गुप्ता के फर्जी एनकाउंटर के मामले में दर्ज हत्या और लूट के मुकदमे में सभी छह पुलिसकर्मी साक्ष्य के अभाव में बरी हो गए हैं। सीबीआई के विशेष न्यायाधीश ने सोमवार को यह फैसला सुनाया।

बरेलीApr 28, 2025 / 09:37 am

Avanish Pandey

बरेली। दवा व्यवसायी मुकुल गुप्ता के फर्जी एनकाउंटर के मामले में दर्ज हत्या और लूट के मुकदमे में सभी छह पुलिसकर्मी साक्ष्य के अभाव में बरी हो गए हैं। सीबीआई के विशेष न्यायाधीश ने सोमवार को यह फैसला सुनाया। मामले में तत्कालीन अपर पुलिस अधीक्षक (ट्रेनी आईपीएस) जे. रविंद्र गौड़ और दो सिपाहियों के खिलाफ सबूत न मिलने के कारण सीबीआई ने चार्जशीट ही दाखिल नहीं की थी। जे रविंद्र गौड़ वर्तमान में गाजियाबाद के पुलिस कमिश्नर हैं।

इन पुलिसकर्मियों पर था आरोप

आईपीएस अफसर जे रविंदर गौड के साथ फर्जी मुठभेड़ में आरक्षी गौरी शंकर विश्वकर्मा, जगवीर सिंह, वीरेंद्र शर्मा, उप निरीक्षक विकास सक्सेना, मूला सिंह और देवेंद्र कुमार शर्मा को आरोपी बनाया गया था। विकास सक्सेना वर्तमान में यूपी पुलिस में इंस्पेक्टर हैं।

2007 में हुई थी घटना, पिता ने दर्ज कराया था मुकदमा

वादी ब्रजेंद्र कुमार गुप्ता ने फतेहगंज पश्चिमी थाने में बेटे मुकुल गुप्ता की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। मुकुल दवा व्यवसायी था और उसके पास अक्सर एक लाख रुपये रहते थे।
आरोप था कि बरेली में प्रशिक्षण ले रहे ट्रेनी आईपीएस अधिकारी ने अधिकारियों को खुश करने और बहादुरी का सर्टिफिकेट लेने के लिए एक गिरोह को खत्म करने की योजना बनाई। इस योजना में दारोगा और मुखबिर विक्की शर्मा उर्फ धर्मपाल तथा विक्की के रिश्तेदार पंकज उर्फ करण का साथ लिया गया।

पिता का आरोप: योजना बनाकर बेटे को मारा गया

वादी के मुताबिक, 30 जून 2007 की सुबह मुकुल पंकज के रिक्शे में सवार होकर निकला था। रास्ते में कोतवाली के दरोगा ने मिलीभगत कर रिक्शा रुकवाया और मुकुल से मोबाइल व एक लाख रुपये लूट लिए। इसके बाद उसे आईपीएस अधिकारी के हवाले कर दिया गया।
पुलिस टीम ने मुकुल को फतेहगंज क्षेत्र के रुकुमपुर-माधवपीड़ रेलवे स्टेशन के पास टाटा सूमो में बैठाकर एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग कर उसकी हत्या कर दी। फिर इस हत्या को फर्जी मुठभेड़ बताकर मुकुल पर ही हत्या के प्रयास और आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया।

हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने की थी जांच

वादी ने मामले की निष्पक्ष जांच के लिए हाई कोर्ट का रुख किया। कोर्ट के आदेश पर वर्ष 2010 में सीबीआई ने जांच शुरू की और 17 जून 2010 को मामला दर्ज किया। जांच के बाद सीबीआई ने 20 अगस्त 2014 को अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया था।
मुकदमे के दौरान आरोपियों में से एक दरोगा और दो आरक्षियों की मृत्यु हो गई थी। बचाव पक्ष के वकील विशाल टहलयानी ने बताया कि आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण अदालत ने सभी को बरी कर दिया।

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