गाड़ी से कुचलकर भागने की कोशिश
वर्तमान में गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट में एडिशनल कमिश्नर के पद पर तैनात तत्कालीन एसपी ट्रैफिक कल्पना सक्सेना ने इस मामले में थाना कैंट में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। सरकारी वकील मनोज वाजपेयी और अभियोजन अधिकारी विपर्णा शर्मा ने अदालत में मजबूती से पक्ष रखा। अभियोजन के अनुसार, 2 सितंबर 2010 को कल्पना सक्सेना को सूचना मिली थी कि ट्रैफिक पुलिस के कुछ सिपाही थाना कैंट क्षेत्र में फरीदपुर रोड मजार के पास हाईवे पर ट्रकों को रोककर अवैध वसूली कर रहे हैं। वह शाम 5:15 बजे अपनी सरकारी गाड़ी से मौके पर पहुंचीं तो देखा कि कई ट्रक सड़क किनारे खड़े थे और मजार के पास एक सफेद मारुति कार खड़ी थी, जिसमें कुछ लोग बैठे थे और कुछ बाहर खड़े थे।
कल्पना सक्सेना अपने हमराह और ड्राइवर के साथ ट्रकों की आड़ लेकर कार के पास पहुंचीं। उन्होंने देखा कि कार की पिछली सीट पर सिपाही रविंद्र और रावेंद्र बैठे थे। जैसे ही उनकी नजर कल्पना सक्सेना पर पड़ी, उन्होंने ड्राइविंग सीट पर बैठे सिपाही मनोज को गाड़ी से कुचलकर भागने को कहा।
कल्पना सक्सेना जब आगे बढ़ीं तो मनोज ने गाड़ी स्टार्ट कर उनके ऊपर चढ़ाने की कोशिश की। उन्होंने चलती गाड़ी में एक हाथ डालकर मनोज की गर्दन पकड़ ली और कार रोकने को कहा, लेकिन मनोज ने कार नहीं रोकी। इस दौरान रविंद्र ने एसपी के हाथ पकड़ लिए और सिर पर वार करना शुरू कर दिया। सिपाही मनोज ने कार को बरेली की ओर तेज रफ्तार में दौड़ा दिया, जिससे एसपी को करीब 200 मीटर तक घसीटा गया। उन्होंने गाड़ी को आड़ा-तिरछा चला कर एसपी को कुचलने की कोशिश की, लेकिन जब सफल नहीं हुए तो धक्का देकर सड़क पर गिरा दिया। सड़क पर गिरने से गंभीर रूप से घायल कल्पना सक्सेना को अस्पताल में भर्ती कराया गया।
ऑटो चालक भाई करता था वसूली
ऑटो चालक धर्मेंद्र, जो सिपाही रविंद्र का सगा भाई था, मौके पर ट्रकों को रोककर अवैध वसूली कर रहा था। पुलिस ने इस मामले में हत्या की कोशिश, अवैध वसूली और एंटी करप्शन एक्ट की गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया। विवेचना के बाद चारों आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई। अभियोजन पक्ष ने अदालत में 14 गवाह पेश किए, जिनके बयान और सबूतों के आधार पर चारों आरोपियों को दोषी करार दिया गया।