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बाड़मेर

Labour’s Success Story: राजस्थान के इस सांसद ने भी शुरू में की थी मजदूरी, आज कई मजदूर अफ्रीका और दुबई जैसी जगहों पर चला रहे करोड़ों के बिजनेस

अब वो मजदूर नहीं करोड़ों रुपए के मालिक बन गए हैं। खुद करोड़ों रुपए तो बात करते-करते दान कर देते है। वहीं बाड़मेर के सांसद ने भी कभी मजदूरी की थी, तब नहीं सोचा था कि इस मुकाम तक पहुंचेंगे।

बाड़मेरMay 01, 2025 / 11:15 am

Akshita Deora

International Labour Day 2025: पाई-पाई को तरसने वाले मजदूरों की मेहनत और कौशल ने उनकी जिंदगी को ऐसा बदला कि अब वो मजदूर नहीं करोड़ों रुपए के मालिक बन गए हैं। खुद करोड़ों रुपए तो बात करते-करते दान कर देते है। वहीं बाड़मेर के सांसद ने भी कभी मजदूरी की थी, तब नहीं सोचा था कि इस मुकाम तक पहुंचेंगे।

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उम्मेदाराम- फैक्ट्री में करते थे डाइंग कार्य

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बाड़मेर जैसलमेर के सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल वर्ष 1993 से ही मजदूर थे। वे बताते हैं कि दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं की परीक्षा के बाद छुट्टियों में मजदूरी पर बालोतरा जाते थे। यहां रीको एरिया में ड्राइंग का कार्य करते थे। इससे उनके पढाई का खर्च निकलता था। 1500 रुपए तक कमा लाते जिससे कॉपी, किताब और अन्य व्यय होते। वे बताते हैं कि मजदूरी के उन दिनों को मैं आज तक नहीं भूला हूं। उसी मजदूरी ने मुझे ताकत दी कि अपने और परिवार के लिए मैं इतना करूं कि आत्मनिर्भर हो जाए।
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नवलकिशोर गोदारा: श्रमिक से बने उद्यमी

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भिंयाड़ गांव के नवलकिशोर गोदारा पिछले बीस साल से जिले में सामाजिक सरोकार से जुड़ा बड़ा नाम है, जो भामाशाह के तौर पर करोड़ों रुपए की मदद कर चुके हैं। नवलकिशोर साउथ अफ्रीका के कांगों व दुबई में अपना व्यापार कर रहे हैं। नवलकिशोर के पिता साधारण किसान थे और खुद नवल किशोर ने कांडला बंदरगाह पर नमक की बोरियां उठाने से मजदूरी शुरू की थी। कांडला बंदरगाह से साउथ अफ्रीका तक मजदूर बनकर पहुंचे लेकिन वहां अपनी मेहनत से उन्होंने बड़ा मुकाम हासिल किया है।

तनसिंह चौहान: मजदूर की बड़ी विरासत

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तनसिंह चौहान बाड़मेर के ऐसे मजदूर रहे हैं जो शुरूआती जीवन के कष्टों के बाद में उद्यमी बने। इसके बाद समाजसेवा का कार्य किया। चौहान के निधन के बाद में उनकी मजदूर से मालिक बनकर छोड़ी गई विरासत उनके बेटे संभाल रहे हैं। जोगेन्द्रसिंह चौहान बताते हैं कि जो समाजसेवा के कार्य उन्होंने हाथ में लिए थे उनको पूरा करने की बड़ा कार्य कर रहे हैं।

पृथ्वीराजसिंह कोळू: मजदूर बना भामाशाह

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पृथ्वीराजसिंह कोळू 2006 की कवास की बाढ़ के बाद से लगातार समाजसेवा के क्षेत्र में जिले में मददगार साबित हो रहे हैं। 2019 के कोरोनाकाल में जिला अस्पताल में उन्होंने एक अत्याधुनिक आइसीयू वार्ड बनाकर दिया,जो अस्पताल का सबसे बेहतरीन वार्ड है,जिसकी लागत 2.5 करोड़ से अधिक आई। पृथ्वीराज की जिंदगी की शुरूआत मजदूरी से हुई। वे बताते हैं कि वे दुबई एक मजदूर बनकर गए थे। जहां उन्होंने विकट परिस्थितियों में मजदूरी की और बाद में वे धीरे-धीरे पाइप वर्क्स के कार्य से जुड़े और अब वे दुनियां के कई देशों में कारोबार कर रहे हैं।

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