दुर्ग में रहने वाली महिला ने अपने पति के खिलाफ बीएनएस की धारा 144 के तहत आवेदन देकर हर माह 40 हजार रुपए भरण-पोषण और 25 हजार रुपए मुकदमे पर हुआ खर्च देने की मांग करते फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी। फैमिली कोर्ट ने इस आधार पर याचिका खारिज कर दी थी कि महिला 22 वर्षों तक चुप रही। अब अचानक भरण पोषण की मांग करना तर्कसंगत नहीं है। फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ महिला ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका लगाई थी।
CG High Court: पटवारी की सर्विस से बर्खास्त होने के बाद मांगा भरण-पोषण
महिला ने
हाईकोर्ट को बताया कि वह पहले सरकारी नौकरी में थी, लेकिन अब बेरोजगार है। वर्ष 2002 में पति और सास ने उसे और बेटे को घर से निकाल दिया था। वर्ष 2007 में उसे पटवारी की नौकरी मिली थी। लेकिन, बाद में वह एक आपराधिक मामले में फंस गई और 2019 में सेवा से बर्खास्त कर दी गई। इसके चलते अब उसे भरण-पोषण की जरूरत है। यह तर्क भी दिया कि पत्नी होने के नाते वह भरण-पोषण की हकदार है।
इतने वर्षों बाद मांग तर्कसंगत नहीं
हाईकोर्ट महिला के तर्कों से सहमत नहीं हुआ। याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि महिला ने यह स्पष्ट नहीं किया कि इतने वर्षों बाद आखिर किन कारणों से अचानक भरण-पोषण की जरूरत पड़ी। महिला पहले सरकारी सेवा में थी और उसने अपनी बेरोजगारी की स्थिति को भी स्पष्ट नहीं किया, ऐसे में माना जा सकता है कि उसके पास जीवन यापन के कुछ संसाधन तो हैं।