CG News: फरार होने की एफआईआर भी दर्ज
बिलासपुर जेल में इस तरह के 22 बंदी नहीं लौटे हैं तो
रायपुर सेंट्रल जेल से सात ऐसे बंदी हैं। उनके स्वजन को बार-बार सूचना देने के बाद भी जब बंदी नहीं लौटे, तो जेल प्रबंधन ने संबंधित थानों को फरार बंदियों की जानकारी दी है। जेल प्रबंधन ने थानों में उनके फरार होने की एफआईआर भी दर्ज कराई है।
पैरोल पर गए कैदियों की वापसी नहीं होने के मामले में हाईकोर्ट ने डीजीपी जेल से ताजा रिपोर्ट शपथ पत्र के जरिए पेश करने को कहा था। इसके बाद डीजी जेल की ओर से हाईकोर्ट को जानकारी दी गई कि प्रदेश के पांच सेंट्रल जेलों ने 83 कैदी पैरोल से नहीं लौटे थे, जिनमें 10 को गिरफ्तार कर लिया गया और तीन की मृत्यु हो गई थी।
इन बंदियों की वापसी की राह ताक रहा प्रशासन
अभी भी प्रदेश भर के जेलों से करीब 70 बंदी पैरोल से छूटने के बाद वापस नहीं लौटे हैं। जो पैरोल पर छूटने के बाद वापस नहीं लौटे। एक बंदी दिसंबर 2002 से गायब हैं। इनमें अधिकतर बंदी हत्या के प्रकरण में जेल में बंद थे। जेल और पुलिस प्रशासन ने इन बंदियों की कई बार तलाश की, लेकिन अब तक उनका कोई पता नहीं चला। अब जेल प्रशासन इन बंदियों की वापसी की राह ताक रहा है। सूचना के अधिकार के तहत रायपुर जेल के वारंट अधिकारी ने सात बंदियों के पेरोल पर छोड़े जाने के बाद से नहीं लौटने की जानकारी दी है।
हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी, प्रमोशन नहीं देना था, इसलिए अधिकारियों ने लगाया अड़ंगा
समाज कल्याण विभाग की रिटायर अधीक्षिका की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने समाज कल्याण विभाग के अफसरों पर नाराजगी जताई। अपने फैसले में कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए लिखा है कि याचिकाकर्ता को प्रमोशन नहीं देना था इसलिए विभागीय अधिकारियों ने जानबूझ कर अड़ंगा लगाया। कोर्ट ने 90 दिनों की अवधि में कार्रवाई पूरी करने कहा है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता संदीप दुबे ने कोर्ट को बताया कि विभाग के आला अफसरों ने कई तरह के अड़ंगे लगाए। उनसे जूनियर आधा दर्जन अफसरों को पदोन्नति दे दी। कभी ग्रेडेशन लिस्ट में विवाद तो कभी पुरानी रिकवरी को कारण बताकर याचिकाकर्ता को पदोन्नति से वंचित किया गया। याचिकाकर्ता मंगला शर्मा ने याचिका में बताया कि 15 फरवरी 1972 को प्रोबेशन ऑफिसर” (क्लास थ्री) के रूप में उनको नियुक्त किया गया था। उसके बाद 19 अक्टूबर 1981 को समाज कल्याण विभाग में अधीक्षक, यानी सहायक निदेशक कैडर (राजपत्रित) के पद पर पदोन्नत किया गया, जो उनकी सेवानिवृत्ति यानी 31 मार्च 2017 तक था।
हाईकोर्ट में दायर की गई थी रिट याचिका
याचिका के अनुसार 2 जुलाई 1999 को आयोजित विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) में अधीक्षक के पद पर पदोन्नति के लिए उनके नाम पर विचार नहीं किया। बाद में, 22 नवंबर 2007 को फिर से सहायक निदेशक, उप निदेशक के पद पर पदोन्नति के लिए डीपीसी आयोजित की गई थी। लेकिन उनके नाम पर उस डीपीसी में भी इस आधार पर विचार नहीं किया गया कि उनके एसीआरएस उपलब्ध नहीं थे। हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने पर याचिकाकर्ता ने सचिव, समाज कल्याण विभाग के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की थी। याचिका पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने 14 मई 2018 को आदेश जारी कर 28 अगस्त 2017 के आदेश का अक्षरश: पालन करने का निर्देश सचिव समाज कल्याण विभाग को दिया था। लेकिन सचिव समाज कल्याण विभाग ने याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन को को खारिज कर दिया। इसे चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की गई थी।
अवमानना याचिका पर भी पूर्व में आदेश दिया था कोर्ट ने
CG News: मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने 28 अगस्त 2017 को सचिव पंचायत व समाज कल्याण विभाग को नोटिस जारी कर याचिकाकर्ता को उप निदेशक, पंचायत और समाज कल्याण विभाग, रायपुर के पद पर सभी परिणामी लाभों के साथ पदोन्नति के मामले पर विचार करने और निर्णय लेने का निर्देश दिया था।