इस इलाके में करीब दो दर्जन पहाड़ी दर्रे हैं, जिनमें साल भर कलकल बहता पानी रहता है। बारिश के साथ ही झरनों की रवानगी शुरू हो गई है, जो यहां आने वाले कुछ गिने-चुने प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित कर रही है। परंतु अब भी यह क्षेत्र अवैध शिकार, मानवीय दखल और कुप्रबंधन का शिकार बना हुआ है।
वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि बाघों का सदियों पुराना कॉरिडोर, जो हाड़ौती से मेवाड़-मालवा तक फैला रहा है, उसे फिर से सक्रिय करना जरूरी है। बूंदी के जंगल इस कॉरिडोर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, लेकिन इनकी लगातार उपेक्षा की जा रही है।
वन विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो रहे हैं। बफर जोन को वैज्ञानिक ²ष्टिकोण से विकसित करने के बजाय मनमर्जी से कार्य किए जा रहे हैं, जिससे यहां की जैव विविधता खतरे में है। वन्यजीव प्रेमी लंबे समय से बफर क्षेत्र को संरक्षित करने की मांग कर रहे हैं, पर विभाग की चुप्पी बरकरार है।
देवेंद्र सिंह भाटी, उपवन संरक्षक एवं उपक्षेत्र निदेशक (बफर), रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व, बूंदी