जानकारी के अनुसार जिले के प्रमुख वेट-लेंड बरधा सहित सभी बांधों व तालाबों पर प्रवासी व अन्तरप्रवासी पक्षी बड़ी संया में पहुंचे है। इनमें चीन-मंगोलिया जैसे ठंडे प्रदेशों में बर्फबारी शुरू होने के साथ आने वाले बार-हेडेड गूज व ग्रे-लेग गूज भी शामिल है। योरोप महाद्वीप से आने वाले यूरोपियन पिनटेल व नोर्थन शोवलर भी बूंदी के अधिकांश जल-स्रोतों पर दस्तक दे चुके है। इसी प्रकार गुजरात में कच्छ के रण से आने वाले अन्तर प्रवासी ग्रेटर-लेमिंगो व जिले के बरधा बांध तक सिमटे सारस पक्षी भी आकर्षण का केंद्र बने हुए है।
मछली ठेकेदार के धमाके डाल रहे है खलल
सभी बांधों व तालाबों में मछली ठेका होने से पक्षियों के प्राकृतिक आश्रय-स्थल छिन से गए है। मछली ठेकेदार के कार्मिक अपनी मछलियों को पक्षियों से बचाने के लिए दिनभर बांध व तालाबों पर आतिशबाजी के धमाके कर पक्षियों की स्वच्छंदता में विघ्न पैदा कर रहे है, लेकिन पक्षी को तो मछली ठेकेदार देखते ही मारने दौड़ते है। यह पक्षी जलीय-पक्षियों में सबसे बड़े आकार का होता है तथा एक दिन में करीब 5-6 किलो मछली खाता है।
जिससे मछली ठेकेदारों के लिए एक चुनौती के रूप में होता है। विडबना है कि जिन जलाशयों पर परिंदों का अधिकार होना चाहिए। वहां पर चंद पैसों के लालच में मछली ठेके की आड़ में पक्षियों के प्राकृतिक आश्रय-स्थलों पर कब्जे कर लिए है। इसी प्रकार बांधों व तालाबों में अवैध पेटा-काश्त पर भी रोक नहीं लग पाना चिंता का विषय है। जिले का प्राकृतिक वातावरण पक्षियों के अनुकूल है लेकिन मछली ठेके की आड़ में पक्षियों का शिकार हो रहा है। पर्यावरण संरक्षण से जुड़े लोगों की मांग है कि जिले में कम से कम 2 प्रमुख वेट-लेंड को मछली ठेके से मुक्त करवाने के सामूहिक प्रयास होने चाहिए,ताकि पक्षियों के प्राकृतिक आश्रय स्थल मिल सके। इससे इको टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा।
दो साल से नहीं आई कुरजां
चीन मंगोलिया से शीतकालीन प्रवास पर बूंदी आने वाले कुरजां पक्षी लगातार दूसरे साल बूंदी नहीं पंहुचे है। आमतौर पर केवल जिले के रामनगर तालाब में कुछ समय के लिए आने वाली कुरजां या डेमोशाइल क्रेन पक्षी हमेशा समूह में ही प्रवास करते है, लेकिन इस कुरजां पक्षी अभी तक नहीं आए हैं। अपने बड़े आकार के लिए पहचाने जाने वाले पेलिकन की जिले के बरधा बांध के अलावा किसी भी वेट-लेंड पर उपस्थिति नहीं देखी गई है।