प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM-KISAN) की शुरुआत 2019 में हुई थी। इसमें सरकार हर साल किसानों को 6,000 रुपये नकद सहायता देती है, जो 3 किस्तों में मिलती है। लेकिन सच्चाई यह है कि 2019 में जब यह योजना शुरू हुई तो इसमें 10.47 करोड़ किसान जुड़े थे, जो 2023 में घटकर 8.1 करोड़ रह गए। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने सवाल किया है कि आखिर 2.3 करोड़ किसान कहां गए?
हालांकि फरवरी 2025 में सरकार ने दावा किया थ कि यह संख्या 9.8 करोड़ हो गई है। चिदंबरम ने कहा कि यह उछाल भी संदेहास्पद है। उनके मुताबिक बटाईदार किसान इस योजना से पूरी तरह वंचित हैं। चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में अपने ओपिनियन में कहा कि 6,000 की सालाना मदद यानी 500 रुपये प्रति माह। क्या इस रकम से बीज, खाद, डीजल, सिंचाई, बिजली और रोजमर्रा की जरूरतें पूरी हो सकती हैं?
किसान कर्ज में डूबा पर सरकारी दावे अलग
चिदंबरम ने NABARD (2021-22) के आंकड़ों के हवाले से कहा कि 55% से ज्यादा कृषि परिवारों पर कर्ज है। एक किसान परिवार पर औसतन 91,231 रुपये का कर्ज है। लोकसभा में 3 फरवरी 2025 को दिए गए आंकड़े बताते हैं कि 13.08 करोड़ किसानों पर 27.67 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। यह कर्ज बैंकों ने बांटा है। वहीं 3.34 करोड़ किसानों पर 2.65 लाख करोड़ रुपये का सहकारी बैंकों का कर्ज है। 2.31 करोड़ किसानों पर 3.19 लाख करोड़ रुपये का कर्ज क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों से है। चिदंबरम के मुताबिक किसान सिर्फ उत्पादन नहीं करता, बल्कि कर्ज लेकर उत्पादन करता है और कर्ज में ही डूबा रहता है।
फसल बीमा योजना: कंपनियों के मुनाफे का जरिया
चिदंबरम के मुताबिक यूपीए सरकार ने No Profit No Loss के आधार पर फसल बीमा योजना शुरू की थी। लेकिन NDA सरकार की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) अब बीमा कंपनियों के लिए मुनाफे का धंधा बन गई है। 2019-20 में दावा भुगतान अनुपात 87% था। 2023-24 में यह गिरकर सिर्फ 56% रह गया। यानी बीमा कंपनियों ने प्रीमियम तो वसूला लेकिन दावों का भुगतान आधा भी नहीं किया।
Household Consumption Expenditure Survey (HCES) के 2023-24 के आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण भारत में सबसे गरीब 5% आबादी का मासिक उपभोग खर्च महज 1,677 रुपये है यानी रोजाना का 56 रुपये। शहरी गरीबों के लिए ये रकम 2,376 रुपये (79 रुपये रोजाना) है। इसी के मुकाबले सबसे अमीर 5% ग्रामीण आबादी का मासिक खर्च 10,137 रुपये और शहरी अमीरों का 20,310 रुपये है। यानी सबसे नीचे और ऊपर की आबादी के बीच 7.5 गुना का फर्क है। 11 साल पहले (2011-12) यह अंतर 12 गुना था, यानी असमानता थोड़ी कम तो हुई है, लेकिन निचले तबके की हालत अब भी बेहद दयनीय है।
गरीब का आंकड़ा गुमराह करने वाला
चिदंबरम के मुताबिक अगर कोई कहे कि भारत में गरीब सिर्फ 5% हैं, तो वह या तो आंकड़ों को नहीं समझता या फिर जानबूझकर गुमराह कर रहा है। MPCE (Monthly Per Capita Consumption Expenditure) डेटा से साफ है कि कम से कम 10% आबादी बेहद गरीब है, यानी 14 करोड़ लोग। यह संख्या एक देश जितनी है।
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