नेत्रदान के लिए जिले में बनाएंगे नेत्र बैंक
नेत्रदान की बढ़ती संख्या को देखते हुए चित्रकूट अस्पताल ने जिला मुख्यालय पर नेत्र बैंक खोलने का निर्णय लिया है। यह नेत्र बैंक जल्द ही कुचया, पार्वती रैकवार और श्याम बाई के स्थान पर स्थापित किया जाएगा, जो आने वाले तीन महीनों में तैयार हो जाएगा। इससे जिले के लोगों को और अधिक सुविधाएं मिलेंगी और नेत्रदान की प्रक्रिया को और भी व्यवस्थित तरीके से किया जा सकेगा।
सामाजिक संस्थाओं का ये रहा योगदान
दिसंबर 2009 से लेकर अब तक हनुमान टोरिया सेवा समिति, अग्रवाल समाज, समर्पण क्लब, चौरसिया समाज जैसे विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा जिले में नेत्रदान के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य किया जा रहा है। इन संस्थाओं ने लगातार नेत्रदान के महत्व के बारे में लोगों को बताया और इस दिशा में उन्हें प्रेरित किया।
नेत्रदान की ऐसे हुई शुरुआत
नेत्रदान की शुरुआत छतरपुर के प्रेम नारायण अग्रवाल राठ बालों ने की थी। इसके बाद शहर के अन्य प्रतिष्ठित नागरिकों जैसे भीमसेन ताम्रकार, नारायण दास सोनी, ओमप्रकाश चौरसिया, रमेश चौरसिया, दुर्गा देवी अग्रवाल, डॉ. श्याम अरजरिया, पूरनचंद खरया और जमना प्रसाद अनुरागी के परिवारों ने उनके निधन के बाद नेत्रदान किया। हनुमान टोरिया सेवा समिति के गिरजा पाटकर बताते हैं कि जब भी किसी के निधन की सूचना मिलती है, तो उनके सदस्य तुरंत वहां पहुंचते हैं और नेत्रदान के लिए परिजनों से आग्रह करते हैं। हालांकि, यह कार्य कुछ कठिनाइयों से भी भरा होता है क्योंकि शोक के माहौल में परिवारों को इस विषय पर बात करना असहज लगता है।
36 लोगों ने लिया है नेत्रदान का संकल्प
वर्तमान में शहर के 36 लोग ने नेत्रदान का संकल्प लिया है। इनमें प्रमुख नामों में सरोज अग्रवाल, प्रेम बाई कुशवाहा, अर्चना हिंगवासिया, सुधा असाटी, राजकुमार पांडे, गोकुल प्रसाद गुप्ता, प्रमोद तिवारी, एचके हिंगवासिया, ओमप्रकाश रावत, परमानंद अग्रवाल, मिश्री लाल नामदेव, शंकर लाल तिवारी, परमानंद तिवारी, रामप्रकाश सोनी, आनंद शुक्ला, कमलेश नामदेव, प्रमोद चौरसिया, गौरव अग्रवाल, सुरेंद्र अग्रवाल और स्वामी प्रसाद सोनी शामिल हैं।
एक पिता की आखिरी इच्छा – नेत्रदान
शुक्लाना मोहल्ले के ओमप्रकाश गुप्ता, जिनकी 71 वर्ष की आयु में निधन हो गया, ने अपने अंतिम समय में यह इच्छा जताई थी कि उनकी आंखें दान की जाएं। उनके बेटे संतोष गुप्ता ने हनुमान टोरिया सेवा समिति से संपर्क किया और फिर सतना से अमर ज्योति संस्थान की टीम को बुलाया। मात्र 20 मिनट में नेत्रदान का पूरा कार्य संपन्न कर दिया गया, जिससे अंतिम संस्कार में भी कोई देरी नहीं हुई। संतोष गुप्ता ने बताया कि यह उनके पिता की अंतिम इच्छा थी, और इस दान से उन्हें मानसिक शांति मिली।
नेत्रदान से मृतक के चेहरे पर कोई फर्क नहीं पड़ता
नेत्रदान करने की प्रक्रिया के दौरान डॉक्टरों का कहना है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद नेत्रदान के लिए 5-6 घंटे से अधिक का समय नहीं लिया जा सकता। इस दौरान, नेत्र बैंक के कर्मचारी आंखों की जांच करते हैं और सर्जन आंख की कॉर्निया निकालकर उसे प्रत्यारोपित करते हैं। डॉ. जीएल अहिरवार, नेत्र विशेषज्ञ और सीएस जिला अस्पताल छतरपुर ने बताया कि एक आंख से निकाली गई कॉर्निया दो लोगों को रोशनी प्रदान करती है, और मृतक के चेहरे पर कोई फर्क नहीं पड़ता।