scriptनंगे पांव, कंधे पर मटका लिए तीन किलोमीटर दूर जंगल के झरने से लाती हैं पानी | Patrika News
छतरपुर

नंगे पांव, कंधे पर मटका लिए तीन किलोमीटर दूर जंगल के झरने से लाती हैं पानी

रास्ता इतना दुर्गम है कि पत्थरों को सीढ़ी बना कर चढऩा पड़ता है और इस सफर में सिर्फ थकान नहीं है डर भी है। जनिया बाई बताती हैं हमें वहां भालू और सियार दिख चुके हैं। दिन में भी डर लगता है। लेकिन अगर नहीं जाएंगे, तो बच्चों को पानी कौन देगा?

छतरपुरJul 01, 2025 / 10:43 am

Dharmendra Singh

water crisis

झरने से पानी भरने के लिए पहाड़ पर चढ़ती महिलाएं

छतरपुर और पन्ना जिले की सरहद पर बसा एक छोटा सा गांव है पाठापुर। नाम भले ही अनसुना हो, लेकिन यहां के लोग रोज ऐसी चुनौती से जूझते हैं, जिसे शहरी दुनिया कल्पना में भी नहीं सोच सकती। यह गांव देश की पहली नदी जोड़ो परियोजना केन बेतवा के मुख्य बांध के नजदीक का गांव है, यहां शुद्ध पेयजल एक सपना है।
नंगे पांव पहाड़ चढ़ती मांएं

पाठापुर की महिलाएं हर सुबह सूरज के साथ नहीं, पानी की चिंता के साथ जागती हैं। तीन बच्चों की मां ममता बताती हैं, हर दिन कम से कम दो बार, हम ढाई-तीन किलोमीटर जंगल के भीतर जाते हैं, नंगे पैर। चप्पल पहनकर जाएं तो फिसल जाते हैं। पत्थरों पर पैर रख-रखकर चढ़ते हैं जैसे जान जोखिम में डाल रहे हों बस एक मटकी(डब्बा) पानी के लिए।जंगली रास्ते, जानवरों का डर और प्यास की लाचारीजिस जगह से यह महिलाएं पानी भरती हैं, वह एक पुराना झरना है, जो साल भर थोड़ा-थोड़ा पानी देता है। यह स्थान जंगल में गांव से लगभग 2 किलोमीटर नीचे है। रास्ता इतना दुर्गम है कि पत्थरों को सीढ़ी बना कर चढऩा पड़ता है और इस सफर में सिर्फ थकान नहीं है डर भी है। जनिया बाई बताती हैं हमें वहां भालू और सियार दिख चुके हैं। दिन में भी डर लगता है। लेकिन अगर नहीं जाएंगे, तो बच्चों को पानी कौन देगा?

सागौन के पत्तों से छानते हैं पानी

यह पानी किसी पाइपलाइन से नहीं आता, न ही यह टैंकर की कृपा से गांव तक पहुंचता है। यह झरने से रिसता हुआ पानी है, जिसे महिलाएं पनया कहती हैं। इस पानी को साफ करने के लिए झरने के मुहाने पर सागौन के पत्ते बिछाए जाते हैं, ताकि पत्तियां, कीड़े और मिट्टी नीचे गिर जाए और ऊपर से कुछ साफ पानी एकत्रित किया जा सके।

पानी की लाइन में चार-चार घंटे इंतजार

ममता कहती हैं, पानी जितना आता है, जरूरत उससे कहीं ज्यादा है। कई बार झरना सूखा रहता है। तब हमें घंटों इंतजार करना पड़ता है। वहीं दुर्गा का कहना है जंगल से लौटते ही दोपहर हो जाती है। फिर खाना बनाओ। बच्चों को संभालो। मजदूरी पर जाने का समय नहीं बचता। पूरा दिन पानी लाने में चला जाता है।

पाइपलाइन बिछी लेकिन पानी नहीं आया

ग्राम पंचायत ने कुछ साल पहले पानी की पाइपलाइन जरूर बिछाई थी। लेकिन इस साल वह भी बंद पड़ी है। जनिया बाई बताती हैं पाइप तो डाली गई है, लेकिन पानी नहीं आता। किसी ने आकर दोबारा देखना तक जरूरी नहीं समझा।

Hindi News / Chhatarpur / नंगे पांव, कंधे पर मटका लिए तीन किलोमीटर दूर जंगल के झरने से लाती हैं पानी

ट्रेंडिंग वीडियो