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छतरपुर

अतिक्रमण और गंदगी ने छीनी सिंघाड़ी नदी की सांसें, नपा-राजस्व विभाग के प्रयास महज औपचारिकता

सिंघाड़ी नदी आज दम तोड़ती नजर आ रही है। कभी नगर के सात प्रमुख तालाबों की जलवाहिका रही यह नदी अब गंदगी, अतिक्रमण और प्रशासनिक उपेक्षा की शिकार हो गई है।

छतरपुरJun 16, 2025 / 10:35 am

Dharmendra Singh

river

अतिक्रमण व जलकुंभी से दम तोड़ती सिंघाड़ी नदी

शहर की ऐतिहासिक और जीवनदायिनी कही जाने वाली सिंघाड़ी नदी आज दम तोड़ती नजर आ रही है। कभी नगर के सात प्रमुख तालाबों की जलवाहिका रही यह नदी अब गंदगी, अतिक्रमण और प्रशासनिक उपेक्षा की शिकार हो गई है। जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत नगर पालिका और राजस्व विभाग ने दो बार सफाई के नाम पर श्रमदान कर केवल फोटो सेशन किया, लेकिन जमीनी हालात में कोई बदलाव नहीं आया।

नदी, जो कभी जीवनदायिनी थी…

सिंघाड़ी नदी न केवल सिंचाई कॉलोनी, पन्ना रोड, सटई रोड के बड़े नालों से आने वाले बारिश के पानी से जीनव पाती थी। हमा, पिड़पा और कलानी गांवों तक पहुंचते हुए उर्मिल नदी में मिल जाती थी। इस नदी का पानी पूरे साल बहता रहता था और शहर के सात प्रमुख तालाबों की भराव क्षमता बनाए रखता था। लेकिन आज न तो नदी बह रही है और न ही तालाबों में पर्याप्त पानी पहुंच पा रहा है।

उद्गम स्थल ही बदहाल

राजनगर बाइपास मार्ग पर संकट मोचन पहाड़ी के नीचे स्थित सिंघाड़ी नदी का उदगम स्थल कभी हरियाली से आच्छादित था, जहां से नदी का जीवन शुरू होता था। अब यह स्थल मैदान में तब्दील हो गया है। पानी का नामोनिशान नहीं, चारों ओर बस सूखा और उपेक्षा। नगर पालिका की सीएमओ माधुरी शर्मा ने कहा है कि सिंघाड़ी नदी की सफाई के लिए गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन पहले अतिक्रमण हटाना आवश्यक है।

अतिक्रमण ने रोका प्रवाह, नदी बनी पगडंडी

सिंघाड़ी नदी के प्रवाह मार्ग में भारी अतिक्रमण हो चुका है। कई लोगों ने नदी के बहाव क्षेत्र में मकान और दीवारें बना ली हैं, जिससे जलधारा अवरुद्ध हो गई है। पूर्व में बनाए गए रिपटा, छोटे बंधान और जल मार्ग पूरी तरह नष्ट हो गए हैं। नदी अब पगडंडी का रूप लेकर ऊबड़-खाबड़ मैदान में तब्दील हो गई है। कभी जिन घाटों पर लोग सुबह स्नान और पूजन करने आते थे, वे अब वीरान हो गए हैं। गंदगी और कचरे ने वहां की पहचान मिटा दी है। इस स्थिति ने न सिर्फ नदी, बल्कि आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र को भी गंभीर खतरे में डाल दिया है।

दो दशक में नदी हुई अस्तित्व विहीन

करीब दो दशक पहले तक यह नदी बारह महीने जल युक्त रहती थी। लोगों की रोजमर्रा की जल आवश्यकताओं से लेकर कृषि कार्यों तक यह उपयोगी थी। आज यह नदी मौन वेदना की तरह बहने के बजाय दम तोड़ रही है। शहरवासियों की उदासीनता और विभागीय लापरवाही ने इस धरोहर को खत्म होने के कगार पर पहुंचा दिया है।

पत्रिका व्यून

दी को बचाने के लिए सिर्फ सरकारी योजनाएं और अभियान काफी नहीं। इस धरोहर को बचाने के लिए शहरवासियों, सामाजिक संगठनों और युवाओं को आगे आना होगा। छोटे-छोटे प्रयास, श्रमदान, जनजागरूकता और लगातार निगरानी से ही सिंघाड़ी नदी को पुनर्जीवित किया जा सकता है। यदि हम अब भी नहीं चेते, तो सिंघाड़ी नदी का नाम आने वाली पीढिय़ों के लिए केवल किताबों और कहानियों में रह जाएगा। यह समय है मनोयोग से आगे आने का, क्योंकि अगर नदी बचेगी तो भविष्य बचेगा।

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