2025 में ही देना था पानी
योजना का मूल उद्देश्य था कि वर्ष 2025 तक जिले के प्रत्येक ग्रामीण परिवार को उनके घरों में नल से शुद्ध पेयजल मिल सके। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने राजनगर, नौगांव, लवकुशनगर, गौरिहार और छतरपुर विकासखंडों में अलग-अलग जल स्रोतों से पाइपलाइन बिछाने, जल शोधन संयंत्र, और पानी की टंकियों का निर्माण शुरू किया। लेकिन कहीं पाइपलाइन आधी बिछी, कहीं टंकियों की नींव भी नहीं पड़ी तो कहीं फिल्टर प्लांट और इंटकवेल पानी में डूबे पड़े हैं।
पानी की जरूरत सबसे ज्यादा, लेकिन प्राथमिकता सबसे कम
गांवों में महिलाएं अभी भी कुएं, तालाब और हैंडपंपों के भरोसे हैं। गर्मी में जब जल स्रोत सूखने लगते हैं, तब हर घर जल योजना से उन्हें राहत मिलनी चाहिए थी। लेकिन अफसोस, यह योजना सिर्फ बोर्डों और फाइलों में सक्रिय है। राजनगर विकासखंड में 273.92 करोड़ की लागत से बनाई जा रही योजना में 1660 किमी पाइपलाइन बिछाई जानी थी, लेकिन तीन साल में सिर्फ 568 किमी ही बिछाई जा सकी है। नौगांव विकासखंड में 195.99 करोड़ की योजना में 506 किमी पाइपलाइन ही बिछी। लवकुशनगर और गौरिहार में 560 करोड़ की योजना में एक भी टंकी अब तक नहीं बन पाई। छतरपुर विकासखंड की परियोजना भी इंटकवेल और फिल्टर प्लांट तक सीमित रह गई है।
ठेकेदारों की मनमानी, प्रशासन की चुप्पी
इन सभी परियोजनाओं में गुजरात और अन्य राज्यों की ठेकेदार कंपनियों को जिम्मेदारी दी गई है। लेकिन न तो ये कंपनियां कार्य की समयसीमा का पालन कर रही हैं, न ही उन पर कोई सख्त कार्रवाई की जा रही है। जिला और विकासखंड स्तर के अधिकारियों की निगरानी लगभग न के बराबर है। मौके पर निरीक्षण, प्रगति रिपोर्ट, या ठेकेदारों पर दबाव, किसी भी पहलू में प्रशासन की सक्रियता नहीं दिखती।लोगों का भरोसा टूटा, गांवों में बढ़ रही नाराजग़ी
गांवों में जब जल संकट गहराता है, तब लोग इन योजनाओं को याद करते हैं। लेकिन वे सिर्फ अधूरे वादों के साक्षी बनकर रह जाते हैं। कई ग्रामीणों का कहना है सरकार ने कहा था घर बैठे नल से पानी मिलेगा, लेकिन अब भी बाल्टी लेकर कुएं के चक्कर लगा रहे हैं।
कागजों पर करोड़ों खर्च, जमीनी स्तर पर जीरो लाभ
इन योजनाओं के तहत सिर्फ छतरपुर जिले में ही लगभग 1350 करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च की जानी थी। लेकिन अब तक जिस तरह से निर्माण कार्य हुआ है, उससे साफ है कि यह राशि या तो अधूरी योजनाओं में उलझ गई है या खर्च का कोई पारदर्शी लेखा-जोखा नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इन योजनाओं की समय पर और गुणवत्ता के साथ निगरानी की गई होती, तो गर्मी में हजारों परिवार पानी की तलाश में भटकते नजर नहीं आते।प्रशासन की सफाई, लेकिन कार्यवाही नहीं
पीएचई विभाग और जल निगम के अफसरों से जब संपर्क किया गया, तो जवाब मिला योजनाएं लंबी हैं, समय लगता है। ठेकेदारों को निर्देश दिए गए हैं कि वे कार्य में तेजी लाएं। लेकिन यह जवाब हर साल दिया जाता है। सवाल यह है कि ठोस कार्यवाही कब होगी?