अधूरी जल जीवन मिशन योजना बनी ग्रामीणों की परेशानी की जड़
गांव में जल जीवन मिशन के अंतर्गत दो वर्ष पूर्व नल-जल योजना की शुरुआत तो कर दी गई थी, लेकिन आज तक इसका काम अधूरा पड़ा है। न तो पाइपलाइन बिछ पाई है, और न ही पानी की नियमित आपूर्ति शुरू हो सकी है। पाइप जहां-तहां खुले पड़े हैं, टंकियां अधूरी खड़ी हैं, और पंप हाउस निर्माण अधर में लटका हुआ है। स्थानीय निवासी नंदराम बंसल, जन्ननाथ अहिरवार और पुष्पेंद्र अहिरवार ने बताया कि गांव की आबादी करीब 2500 है और यहां केवल 5 हैंडपंप हैं, जिनमें से 3 पूरी तरह सूख चुके हैं। एकमात्र बोरवेल में मोटर लगी है, जिससे कुछ हद तक पानी भरा जाता है, लेकिन वह भी बिजली जाने के साथ ही बंद हो जाता है।
पानी के लिए सुबह से लाइन में लगते हैं ग्रामीण
गांव में सुबह होते ही महिलाएं और युवतियां बर्तन लेकर पानी के एकमात्र स्रोत के पास लाइन लगाना शुरू कर देती हैं। कई बार घंटों इंतजार करने के बाद एक-दो बाल्टी पानी ही नसीब होता है। पानबाई अहिरवार और मंदना बाई कहती हैं, हम दिनभर मजदूरी करके आते हैं, लेकिन उससे पहले और बाद में पानी भरने के लिए भटकना पड़ता है। तेज गर्मी से जलस्तर नीचे चला गया है और हालत हर साल खराब होती जा रही है।
मवेशियों के लिए भी नहीं बचा पानी, नदी भी हो चुकी है सूखी
रामगढ़ गांव के पास से एक छोटी नदी बहती थी, जो कभी गांव के जानवरों की प्यास बुझाने का प्रमुख स्रोत थी। लेकिन अब वह भी पूरी तरह सूख चुकी है। गांव में कोई और जल स्रोत न होने के कारण अब मवेशियों को पानी पिलाना भी एक चुनौती बन चुका है।
ई-रिक्शा और साइकिल से ढोया जा रहा पानी
रामगढ़ की ही तरह छतरपुर जनपद की ढड़ारी पंचायत में भी हालात चिंताजनक हैं। यहां लोग पानी की तलाश में साइकिल, ठेला और यहां तक कि ई-रिक्शा तक का सहारा ले रहे हैं। गांव में लगे अधिकांश हैंडपंप या तो खराब हैं या सूख चुके हैं। स्थानीय प्रशासन की ओर से कोई वैकल्पिक व्यवस्था अब तक नहीं की गई है।
हिम्मतपुरा की स्थिति भी बदहाल, श्रद्धालु तक हो रहे परेशान
छतरपुर जनपद की एक और पंचायत हिम्मतपुरा जहां की आबादी करीब 3900 है, वहां भी जल संकट चरम पर है। गांव में कुल 21 हैंडपंप हैं, जिनमें से 14 पूरी तरह सूख गए हैं, जबकि शेष 7 हैंडपंप भी रुक-रुक कर पानी दे रहे हैं। गांव के प्रसिद्ध माता मंदिर के पास लगा हैंडपंप भी महीनों से खराब पड़ा है। हर मंगलवार को यहां आसपास के 10 गांवों से श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए आते हैं, लेकिन उन्हें पीने के पानी तक की व्यवस्था नहीं मिलती। इससे श्रद्धालुओं की संख्या भी धीरे-धीरे घट रही है।
पंचायत से नहीं मिल रहा टैंकर, महिलाएं बोझ से दबी
भूरी साहू, ममता विश्वकर्मा और गोरीबाई प्रजापति जैसी महिलाओं ने बताया कि पंचायत की ओर से पानी का कोई टैंकर नहीं भेजा जा रहा। मजबूरी में महिलाएं खेतों के कुओं से पानी भरकर ला रही हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है। कुछ स्थानों पर निजी टैंकर पानी बेच रहे हैं, लेकिन गरीबी के कारण अधिकांश परिवार इतने पैसे खर्च करने में असमर्थ हैं।
आदर्श पंचायत की हकीकत उजागर
रामगढ़ को आदर्श पंचायत का दर्जा मिलने के बाद ग्रामीणों को उम्मीद थी कि बुनियादी सुविधाओं में तेजी से सुधार होगा। लेकिन हकीकत में न तो पानी की स्थिति सुधरी, न ही अधूरी पड़ी परियोजनाओं को पूरा किया गया। केवल कागजों में पंचायत को आदर्श घोषित कर देने से गांव की तस्वीर नहीं बदली जा सकती।
जल संकट से जुड़ी समस्याओं की व्यापकता
कई गांवों में जल जीवन मिशन के पाइप अब तक नहीं बिछे-अधूरी पानी की टंकियां कब की जंग खा रही हैं – पुराने हैंडपंपों की मरम्मत के लिए बजट और तंत्र नाकाफी – गांवों में बिजली कटौती से बोरवेल भी नहीं चल पा रहे- सरकारी टैंकर नियमित नहीं आते, प्राइवेट टैंकर महंगे
क्या कहता है प्रशासन?
इस पूरे मामले पर स्थानीय जनपद पंचायत और जनपद सीईओ से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने जवाब देने से परहेज किया। ब्लॉक इंजीनियर ने कहा कि “जल जीवन मिशन की योजनाएं निर्माणाधीन हैं, जल्द पूरी होंगी, मगर दो साल से यही वादा सुनने के बाद अब ग्रामीणों का धैर्य जवाब देने लगा है।
पत्रिका व्यू
छतरपुर जिले की रामगढ़, हिम्मतपुरा और ढड़ारी जैसी पंचायतों में गर्मी के मौसम में जल संकट कोई नई बात नहीं, लेकिन हर वर्ष इससे निपटने के लिए कोई स्थायी समाधान न निकाला जाना एक गंभीर प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है। आदर्श पंचायत का दर्जा केवल कागजों में दिख रहा है, जबकि जमीनी हालात गांवों को त्रासदी के कगार पर ले जा रहे हैं। अगर शासन-प्रशासन ने तत्काल हस्तक्षेप नहीं किया, तो यह जल संकट अगले कुछ वर्षों में एक मानवीय आपदा में तब्दील हो सकता है।