ललित ने बताया कि पूर्वी लद्दाख में चिसुमले और डेमचोक के बीच स्थित है उम्लिंगला जो दुनिया की सबसे ऊंची मोटरेबल रोड है, जहां ऑक्सीजन सामान्य स्तर से करीब 50 फीसदी कम होती है। यहां अधिक देर रुकना जानलेवा हो सकता है। उन्होंने बताया कि उन्होंने लेह से न्योमा, फिर हानले होते हुए उम्लिंगला टॉप तक का सफर तय किया। टॉप से 25 किमी नीचे एक बेस कैंप में रुककर उन्होंने अगले दिन चढ़ाई शुरू की, जिसमें पूरा दिन लग गया। इस दौरान वे 5 लीटर पानी और ऑक्सीजन सिलेंडर साथ लेकर चले। ललित ने बताया कि 10 मिनट तक टॉप पर रुकने के बाद वे बेस कैंप लौट आए। यह यात्रा उनके जीवन की सबसे कठिन यात्रा रही, लेकिन उन्होंने साहस के साथ इसे पूरा किया।
इससे पहले 20 मई को ललित खारदुंगला टॉप (5359 मीटर) पर पहुंचे थे, जहां उन्होंने तिरंगा फहराया था। 29 मई को उन्होंने उम्लिंगला टॉप फतह किया। अब ललित वापस चूरू लौटने के सफर पर हैं। उन्होंने कहा कि वापसी की कोई तय समय सीमा नहीं है, क्योंकि यह यात्रा चुनौतियों से भरी है और रोजाना कितना दूरी तय होगी, यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है क्योंकि पहाड़ी रास्तों में मौसम और शारीरिक स्थिति के अनुसार ही सफर तय होता है।
ललित ने युवाओं से अपील की है कि वे पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सक्रिय कदम उठाएं और जीवन में किसी उद्देश्य के साथ आगे बढ़ें। उन्होंने कहा, मैंने यह सफर किसी रिकॉर्ड या प्रसिद्धि के लिए नहीं किया, बल्कि यह संदेश देने के लिए किया कि अगर हम ठान लें तो कोई भी ऊंचाई हमें रोक नहीं सकती। पेड़ लगाना और पानी बचाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।