जानकारी के अनुसार, हाटपीपल्या निवासी धर्मेंद्र पिता रमेशचंद्र बागरी जमीन संबंधी शिकायत लेकर जनसुनवाई में पहुंचे थे। उसके साथ पत्नी आशाबाई समेत अन्य परिजन भी उनके साथ थे। इस दौरान कलेक्टर ऋतुराज सिंह जनसुनवाई कर रहे थे। धर्मेंद्र कलेक्टर को आवेदन देकर चर्चा कर रहे थे, तभी उसकी पत्नी आशा बाई अचानक वहां से दौड़ते हुए कलेक्टर कार्यालय की छत पर पहुंच गई। उसके पीछे मीडियाकर्मी भी दौड़े। छत पर पहुंचकर महिला ने कूदने का प्रयास किया तो पत्रिका फोटो जर्नलिस्ट व्यास ने उसे दौड़कर पकड़ा और छत की बाउंड्री वाल से दूर किया।
इसके बाद फिर महिला कूदने का प्रयास करने लगी तो मौके पर पहुंचे पुलिसकर्मियों ने उसे पकड़ लिया। इस दौरान उसका पति धर्मेंद्र भी मौके पर पहुंच गया। दोनों पति-पत्नी सुनवाई न होने का आरोप लगाते हुए आत्मदाह की चेतावनी देते रहे। हालांकि, पुलिसकर्मी दोनों को पकड़कर कार्यालय की छत से नीचे ले आए। इसके बाद मौके पर नाहर दरवाजा टीआई मंजू यादव पहुंची। उन्होंने दोनों पति-पत्नी से चर्चा से चर्चा कर उनका गुस्सा शांत कराया।
हमारी सुनवाई नहीं हो रही
आवेदक धर्मेंद्र ने बताया कि, उसकी दादी नबी बाई, पति भेराजी बागरी का निधन हो चुका है। उनके नाम से 16 बीघा भूमि हाटपीपल्या में राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज है। साल 2014 में दादी के निधन के बाद परिवार के भरण पोषण के लिए गुजरात चला गया था। वापस लौटा तो पता चला कि, मेरी मृत दादी की भूमि पर फर्जी तरीके से किसी भूमाफिया ने रजिस्ट्री करा ली है। भूमि के पुराने दस्तावेजों में भी छेड़छाड़ हुई है। मेरी दादी के नाम की भूमि अब किसी अन्य के नाम से दर्ज बताई जा रही है। उक्त भूमि की तहसीलदार और पटवारी द्वारा करीब 1 साल पहले रजिस्ट्री की गई, जबकि मेरी दादी का तो स्वर्गवास हो गया है तो दादी के बिना रजिस्ट्री कैसे हो सकती है।
धर्मेंद्र के पास भूमि के पूरे दस्तावेज
धर्मेंद्र ने बताया कि, मैं शासकीय विभाग जाता हूं तो मेरी दादी की भूमि को वहां शासकीय भूमि बताया जा रहा है। शासकीय विभागों के चक्कर लगाकर थक गया, लेकिन मेरी सुनवाई नहीं हो रही। तहसील कार्यालय द्वारा मेरी दादी के नाम की भूमि को 5 कि.मी दूर बागली क्षेत्र में दर्शाई जा रही रहे है, जबकि ये भूमि हाटपीपल्या में है। भूमि के पूरे पुराने दस्तावेज भी मेरे पास हैं।
एडजस्ट करने पर विचार
मामले को लेकर कलेक्टर ऋतुराज सिंह का कहना है कि, ये काफी पुराना और पेचीदा मामला है। संबंधित आवेदकों को 1960-65 के आसपास एक पट्टा जारी किया गया था। उस जमीन पर कभी काबिज नहीं हुए। उसी खसरे पर 30-35 साल पहले आईटीआई का निर्माण किया गया। आज आवेदक उस खसरा नंबर पर अपने पट्टे का क्लेम कर रहा है। इस संबंध में पूर्व में निर्देश देकर जांच कराई गई थी। जांच के बाद प्रकरण एसडीएम को दिया गया था। प्रकरण में सुनवाई चल रही है। किस प्रकार से इनको एडजस्ट कर सकते हैं। इस पर विचार चल रहा है।