Kalpavas: कल्पवास का महत्व और समय (Importance And Timing Of Kalpavas)
कल्पवास भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिसका मूल अर्थ गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर रहकर ध्यान-साधना करना होता है। कल्पवास की समय सीमा कुछ इस तरह होती है- 3 दिन, 5, 7, 15, 30, 45 दिन, 3 महीने, 6 साल या 12 साल या फिर उम्रभर। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यह साधना व्यक्ति को मानसिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करती है। इस दौरान भक्त नदियों में स्नान, भजन-कीर्तन, यज्ञ और ध्यान करते हैं। कुभ या महाकुंभ के दौरान कल्पवास का विशेष महत्व होता है। इन भव्य मेलों में भक्त घर परिवार की मोहमाया छोड़कर अपनी आस्था अनुसार कल्पवास का पालन करते हैं।
यहां जानिए कल्पवास के नियम-Kalpvas Ke Niyam: महाकुंभ में तपस्या करेंगी स्टीव जॉब्स की वाइफ, कल्पवास में इन 21 कठिन नियमों को करना होगा फॉलो Kalpavas: क्या कुंभ और महाकुंभ के बिना भी किया जा सकता है कल्पवास (Can Kalpvas be done even without Kumbh and Mahakumbh)
विशेष रूप से कल्पवास की चर्चा कुंभ और महाकुंभ के दौरान होती है। वह भी तब जब संगम के किनारे प्रयागराज में इन भव्य मेलों का आयोजन हो। क्योंकि इस दौरान यहां करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। जो इस समागम की आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ावा देते हैं।
लेकिन यदि आप कुंभ या महाकुंभ के दौरान कल्पवास नहीं कर पाते हैं या इस भव्य आध्यात्मिक समागम में शामिल नहीं हो पाते हैं तो आप किसी भी पवित्र नदी के तट पर कल्पवास कर सकते हैं। या ये कहे कि कुंभ और महाकुंभ के बिना भी कल्पवास करना संभव है।
Kalpavas: कल्पवास के नियम (Rules Of Kalpvas)
स्नान और शुद्धि: सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी में स्नान करना। सादगीपूर्ण जीवन: साधारण भोजन करना और शारीरिक सुख-सुविधाओं से बचना। भजन और ध्यान: दिनभर ईश्वर का ध्यान और साधना में समय बिताना। दान और सेवा: जरूरतमंदों की सेवा करना और दान देना। सबसे महत्वपूर्ण नियम: इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण नियम ब्रह्मचर्य, व्रत, उपवास, देव पूजन, सत्संग और दान माने गए हैं।
Kalpavas: कल्पवास के लाभ (Benefits of Kalpavas)
कल्पवास के दौरान व्यक्ति अपनी इच्छाओं और इंद्रियों पर नियंत्रण पाना सीखता है। यह मानसिक शांति, आध्यात्मिक उत्थान के साथ-साथ व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करने वाली साधना होती है। कुंभ और महाकुंभ के बिना भी कल्पवास किया जा सकता है। यह व्यक्ति के संकल्प, श्रद्धा और साधना पर निर्भर करता है। पवित्रता, संयम और साधना के जरिए व्यक्ति अपने जीवन को आध्यात्मिक रूप से ऊंचा उठा सकता है।
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