गौरतलब रहे कि ऐतिहासिक शेरगढ़ किला बीहड़ से घिरा है और कुछ दूरी पर ही चंबल नदी बह रही है। चंबल नदी पुल के बाद ही मध्यप्रदेश सीमा शुरू हो जाती है। यहां सागरपाडा, शेरगढ़ किला और चंबल लिफ्ट परियोजना के आसपास बीहड़ों में बड़े स्तर पर बिलायती बबूल उग रहा है। हालांकि, इस बबूल की उपयोगिता भोजन के रूप में नहीं है। लेकिन चंबल में जलस्तर बढऩे पर यह मिट्टी का अधिक कटाव होने से रोकता है।
इलेक्ट्रिक कटर मशीनों से काट डाले बबूल वन विभाग की ओर से गत दिनों यहां किले के करीब 12 से 14 बीघा क्षेत्रफल में उग रहे बिलायती बबूल को हटाने के लिए ठेका दिया था। जिस पर ठेकेदार की ओर से यहां इलेक्ट्रिक कटर मशीनों के जरिए बिलायती वबूल को पहले कटवाया और फिर उनके कुछ छोटे-छोटे टुकड़े करवा कर गोदाम पर भिजवाया जा रहा। यहां पर बड़ी संख्या में श्रमिक भी लगे हुए हैं। जो बबूल के पेड़ों में से लकड़ी की छंटाई कर रहे हैं।
चार विभाग करते हैं किले पर दावा ऐतिहासिक शेरगढ किले पर वन विभाग, पुरातत्व, देवस्थान और पर्यटन विभाग अपना अपना दावा ठोकते हैं। खास बात ये है कि ये विभाग दावा तो करते हैं लेकिन जीर्णशीर्ण शेरगढ़ किले की मरम्मत से दूरी बना रखी है। गत बरसात में किले की एक दीवार पूरी तरह से ढह गई। जिसकी चारों में से किसी ने सुध नहीं ली। वहीं, किले में दो हनुमान मंदिर भी हैं। जहां सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु दर्शनों के लिए जाते हैं।
– शेरगढ़ किले में उग रहे बिलायती बबूल का ऑक्शन के जरिए कटवाया है। यहां पर आगामी मानसूनी सीजन में पौधरोपण कर अच्छे पौधे लगाए जाएंगे, जिससे वन्यजीवों वापस नए ठिकाने मिल सकेगा। साथ ही हरियाली भी रहेगी। वन्यजीवों को दिक्कत आ रही है तो दिखवा लेंगे।
– वी.चेतन कुमार, डीएफओ, धौलपुर