School Students: एशियाई देशों में स्कूली घंटे ज्यादा होने के कारण
- कठोर शैक्षणिक प्रतिस्पर्धा
यहां छात्रों पर अच्छे अंक प्राप्त करने पर काफी जोर रहता है। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) ने अपने अध्ययन में कहा है कि कई एशियाई देशों में कठोर परीक्षा प्रणालियां हैं जो छात्रों के लिए मुश्किल शैक्षणिक और कैरियर पथ तय कर देते हैं। जिससे अध्ययन पर ध्यान और अधिक केंद्रित हो जाता है।
विभिन्न एशियाई स्कूलों में उच्च शिक्षा के लिए प्रतियोगी प्रवेश परीक्षाएं होती हैं और प्रतिष्ठित कॉलेजों में प्रवेश पाने के लिए छात्र परीक्षा की तैयारी में घंटों समय लगाते हैं, ठीक उसी तरह जैसे भारत में छात्र कक्षा 9 या उससे पहले से ही जेईई और एनईईटी की तैयारी शुरू कर देते हैं।
- शिक्षा पर सांस्कृतिक जोर
एशिया में शिक्षा को अक्सर सफलता, स्थिरता और पारिवारिक सम्मान के मार्ग के रूप में देखा जाता है। कई एशियाई संस्कृतियों का मानना है कि शैक्षणिक उपलब्धि भविष्य को निर्धारित करती है।
- शिक्षा नीति
कई एशियाई देश छात्रों के लिए स्कूल के बाद ट्यूशन और स्कूल के घंटों के बाद अतिरिक्त अध्ययन सत्र की अनुमति देते हैं, जो अतिरिक्त अध्ययन घंटों की संस्कृति को प्रोत्साहित करता है। उदाहरण: दक्षिण कोरिया का ‘हागवॉन’, जापान के ‘जुकू’ प्रशिक्षण सत्र।
School Life: एक्सपर्ट- कठिन हो रहा बच्चों का जीवन
साइंटिफिक कमेटी की सदस्य डॉ. स्वाति घाटे के अनुसार आज छात्र दो दशक पहले की तुलना में बहुत कठिन जीवन जी रहे हैं। स्कूल और कई कोचिंग कक्षाओं के बीच – चाहे वह पढ़ाई के लिए हो या कौशल निर्माण के लिए – उनके पास आराम करने और खाने के लिए भी पर्याप्त समय नहीं होता। आराम करने और खेलने के घंटे जैसे खत्म ही होते जा रहे हैं। माता-पिता और रिश्तेदारों के साथ समय बिताना भी बच्चों के विकास के लिए बहुत जरूरी है। बच्चों के लिए स्कूली घंटे 6 से अधिक नहीं होना चाहिए।