मुर्गी खाने के चक्कर में कुएं में जा गिरा। खबर फैली तो पूरे गांव में हल्ला हो गया। भीड़ लगी। वन विभाग की टीम पहुंची। आर्थिक संपन्नता के बावजूद संसाधन के अभाव से जूझते विभाग ने खाट और सीढ़ी के साथ आधे घंटे मशक्कत कर किसी तरह
तेंदुए को बाहर निकाला। बाहर निकलते ही वह दोबारा गांव की ओर भागा। इस घटना के 24 घंटे बाद ही गांव में एक चीतल को बुरी तरह घायल हालत में देखा गया। भूख-प्यसा में भटकती 8 माह की मादा चीतल को गांव के श्वानों ने बुरी तरह नोच दिया था।
ग्रामीण भूषण साहू ने किसी तरह उसकी जान बचाई। पशु चिकित्सक से इलाज करवाया। इसके बाद वन विभाग ने उसे प्राकृतिक आवास में पहुंचाने की बात कहते हुए तिलईदादर परिसर में छोड़ दिया। ग्रामीणों ने इस पर सवाल उठाए हैं। उनके मुताबिक, चीतल बुरी तरह घायल था। थोड़े-बहुत इलाज के बाद उसे छोड़ दिया गया, जबकि वह स्वस्थ नहीं था। जंगल में वह शिकारियों का आसान शिकार बन सकता है।
गुपचुप लाश जलाने के बाद से संदेह में
बताते हैं कि 7 महीने पहले इसी वन परिक्षेत्र के तिलईदादर परिसर में एक वयस्क नर चीतल मृत मिला था। उसके पेट में एक बड़ा तीर फंसा हुआ था। विभाग के कुछ कर्मचारियों ने उसे मिट्टी तेल डालकर जलाने की कोशिश की। हालांकि, मामला मीडिया कर्मियों की जानकारी में आने के बाद विभाग ने नियमों के तहत चीतल का दाह संस्कार किया। विभाग को आज तक उस शिकारी का पता नहीं लगा पाया है, जिसने चीतल को तीर मारा था।
दूसरी ओर, इलाके में जंगलों की कटाई भी तेजी से जारी है। इन पेड़ों की लकड़ियां ईंट भट्ठों में खपाई जा रहीं हैं। विभाग के अधिकारी सब जानकर भी अनजान बने बैठे हैं। इसी तरह की कार्यशैली के चलते खुद विभाग संदेह के दायरे में है।
जंगल में पानी की कमी के चलते हिरण भटककर गांव की ओर आ गया था। उसे श्वानों ने नोच लिया था। डॉक्टर से इलाज करवाकर सुरक्षित जंगल में छोड़ा है। कोई खतरे की बात नहीं है। – जितेंद्र ध्रुव, डिप्टी रेंडर, जरगांव, वृत्त पांडुका