CG News: सबकुछ वन विभाग का किया-धरा..
मतलब वन संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन के साथ भ्रष्टाचार का भी मामला बनता है। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये कि सबकुछ वन विभाग का किया-धरा है। वो विभाग, जिसका एकमात्र उद्देश्य पर्यावरण बचाना है। जो माइक्रोलाइफ को समझता है। असल में यहां अफसर नियम जानते तो हैं, लेकिन मानते नहीं।
आइए समझाते हैं पूरा मामला…
पिछले साल अक्टूबर में वन मुयालय ने चिंगरापगार, सिंदुरखोल, गजपल्ला, जतमई और घटारानी वॉटरफॉल में ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने गरियाबंद वन मंडल को 75 लाख का बजट जारी किया। सबसे ज्यादा 30 लाख नेचर ट्रेल के लिए दिए थे। मतलब झरनों तक जाने का ऐसा रास्ता, जो सुविधाजनक हो। इसके अलावा फेंसिंग, आयरन ब्रिज समेत पब्लिक यूटिलिटी के दूसरे कामों पर 6 से 10 लाख खर्च होने थे। सौंदर्यीकरण का बजट सिर्फ 5 लाख था। अफसरों ने इसी पर 17.66 लाख फूंक दिए, वो भी अवैध तरीके से। बता दें कि चिंगरापगार प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट में आता है। यहां चट्टानें तुड़वाना या नक्काशी प्रतिबंधित है। ऐसे में सौंदर्यीकरण के नाम पर किया गया चट्टानों का सत्यानाश न केवल नॉन फॉरेस्ट्री एक्टिविटी में आता है, बल्कि गैर कानूनी भी है।
जिस तरह ठेका दिया, बदनीयती वहीं झलकती है
तथाकथित सौंदर्यीकरण की मंशा पर इसलिए भी सवाल उठते हैं क्योंकि इस काम का ठेका ही गलत तरीके से दिया गया है। दरअसल, भंडार क्रय नियम के तहत 3 लाख रुपए से कम के किसी भी काम के लिए विभाग खुद वर्कऑर्डर निकाल सकते हैं। वन अफसरों ने सिस्टम के इसी लूपहोल का फायदा उठाते हुए रायपुर की डायनमिक स्टोन आर्ट क्रिएटर फर्म को 2.90 लाख और 2.99 लाख जैसे 6 वर्क ऑर्डर जारी कर दिए। ये छहों ठेके इस साल 23 और 25 फरवरी मतलब 2 दिन के अंदर जारी हुए हैं। सेम नेचर वाले काम के लिए इस तरह टुकड़ों में ठेका निकालकर ही अफसरों ने अपनी आर्थिक बदनीयती साबित कर दी है। अगर काम साफ-सुथरा काम होता तो पूरा ठेका एकसाथ जारी होता, लेकिन तब नियमों के मुताबिक विभाग को ऑनलाइन टेंडर की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता। ऐसे में इस बात की संभावना प्रबल हो जाती है कि यह सबकुछ दूसरों को लाभ पहुंचाने की नीयत से किया गया है।
एसीएस और सीईसीबी तक पहुंच चुकी शिकायत
रायपुर से पर्यावरण प्रेमी नितिन सिंघवी ने पूरे मामले की शिकायत अपर मुय सचिव (वन) के साथ छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल (सीईसीबी) से की है। पत्रिका से बातचीत में सिंघवी कहते हैं, संरक्षित वन में ऐसे काम करवाना अवैध है। चट्टानों पर खुद वन विभाग नक्काशी करवा रहा है। कल को कोई दूसरा भी ऐसा करेगा, तो क्या ये रोक पाएंगे? इन नक्काशियों को धार्मिक रूप दिया जाने लगा, तो पर्यावरण के मामले में स्थिति ज्यादा बिगड़ सकती हैं। वन विभाग और पर्यावरण संरक्षण मंडल को चाहिए कि जिमेदारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें। संभव हो तो चट्टानों पर उकेरी गई आकृतियों को विनष्ट किया जाए, ताकि औरों को इस तरह की इल्लीगल एक्टिविटी करने की प्रेरणा न मिले।
ये सब कितना विनाशकारी! समझिए…
1. सूक्ष्म जीवों का खात्मा
चट्टानों पर खुली आंखों से न दिखने वाले लाइकेन, साइनोबैक्टीरिया जैसे ढेरों सूक्ष्म जीवों का आवास होता है। ये बायोफिल्म बनाकर चट्टानों का जैविक संतुलन बरकरार रखते हैं। चट्टानों पर नक्काशी से सारे जीव मर जाते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ता है।
2. चट्टानें कमजोर
चट्टानों पर कुछ भी उकेरने से इनकी मूल भौगोलिक बनावट पूरी तरह बदल जाती है। इन पर छोटी-छोटी दरारें उभर आती हैं। बारिश का पानी, धूप-छांव और हवा इन दरारों से अंदर जाकर चट्टान को धीरे-धीरे कमजोर कर टुकड़ों में तोड़ने लगती है।
3. मिट्टी का कटाव
चट्टानों पर बायोलॉजिकल क्रस्ट बनती है, जो मिट्टी को बांधे रखती हैं। इससे पौधों को जड़ जमाने में मदद मिलती है। चट्टानों की खुदाई से मिट्टी कटाव बढ़ता है। ऐसे में आसपास और पौधे नहीं उग पाते। साथ ही आसपास के इलाके में धूल उत्सर्जन भी बढ़ जाता है।
4. तापमान बढ़ेगा
चट्टानें सूरज की रौशनी को अपने तरीके से सोखती और वापस लौटाती हैं। पत्थरों पर नक्काशी करने से उनका प्राकृतिक एल्बिडो बदल जाता है। नतीजतन स्थानीय ऊष्मा संतुलन बिगड़ता है। चट्टानें ज्यादा गर्म होने लगती हैं। इलाके का तापमान भी बढ़ने लगता है। - पूरी खूबसूरती बर्बाद
झरने और चट्टानें अपनी नैसर्गिक खूबसूरती के लिए पहचाने जाते हैं। यहां नक्काशी सीधे तौर पर प्रकृति के मौलिक रूप से छेड़छाड़ है। जाहिर है कि प्राकृतिक खूबसूरती बर्बाद होगी, तो यह जगह भी वैसी नहीं रह जाएगी, जैसी होनी चाहिए। ऐसे में सैलानी यहां आना छोड़ भी सकते हैं।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक अरुण पांडेय ने कहा कि चिंगरापगार में चट्टानों पर नक्काशी करवाने की शिकायत मिली है। हम जांच करवा रहे हैं। डीएफओ से उनका पक्ष पूछा है। गरियाबंद वन मंडल डीएफओ लक्ष्मण सिंह ने कहा कि चिंगरापगार के संबंध में किसी शिकायत की मुझे कोई जानकारी नहीं है। हमने कोई नॉन फॉरेस्ट्री एक्टिविटी नहीं की है।