गुना जिला अस्पताल परिसर में बनी नई बिल्डिंग का काम ठेकेदार ने अब तक काम पूरा नहीं किया, इसलिए इसे अस्पताल प्रबंधन को हैंडओवर नहीं किया जा सका। इस बिल्डिंग में कई कमियां तो ऐसी हैं जिन्हें पूरा करने से ही ठेकेदार ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि ये काम उसके नहीं हैं।
स्थिति यह है कि कई कामों को लेकर अस्पताल प्रबंधन को समझौता करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। इनमें सबसे बड़ी कमी बिल्डिंग में लिफ्ट व रैंप न होना है जिसकी वजह से इस भवन में शिफ्ट होने वाली सभी यूनिट प्रभावित हो रही हैं। यहां तक कि बिल्डिंग में 50 बैड के प्रसूता वार्ड को बनाने का विचार तक प्रबंधन को त्यागना पड़ा है।
करीब 5 करोड़ की लागत से बनी नई बिल्डिंग का केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एक दिसंबर को उदघाटन किया था। अब तक यह भवन खाली पड़ा हुआ है। बिल्डिंग की कमियां दूर करने और हैंड ओवर का दबाव बनाने के लिए लगातार पत्राचार चल रहा है। हालांकि जमीनी स्तर पर भवन में इन्फ्रास्ट्रक्चर में कोई खास सुधार अब तक नहीं हुआ है।
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा लोकार्पण के मौके पर उनके साथ जिले के प्रभारी मंत्री गोविंद सिंह राजपूत भी थे। सूत्र बताते हैं कि श्रेय लेने के लिए सीएमएचओ ने आनन फानन में इस बिल्डिंग के उद्घाटन का कार्यक्रम बना दिया जबकि भवन में कई कमियां पहले ही सामने आ चुकी थीं।
उद्घाटन के अगले दिन ही अस्पताल प्रबंधन और अलग-अलग यूनिट के विशेषज्ञ स्टाफ ने भी भवन का जायजा लिया। इसमें मरीज के हिसाब से कई तकनीकी कमियां बताईं गईं। उस समय ठेकेदार कमी पूरी करने राजी तो हो गया लेकिन बाद इन्हें ठीक नहीं किया गया। जानकारी के मुताबिक भवन के उद्घाटन के बाद इसे हैंडओवर करने की बात आई तो अस्पताल प्रबंधन ने कमियां गिनाते हुए लेने से इंकार कर दिया।
इसके बाद भोपाल से एक चेकलिस्ट भेजी गई, जिसके अनुसार प्रबंधन को कमियां बतानी थीं। यह लिस्ट काफी बड़ी थी, जिसमें करीब 100 प्वाइंट थे। इसके लिए अस्पताल प्रबंधन ने एक कमेटी बनाई, जिसमें प्रबंधन से जुड़े अधिकारी और अलग-अलग यूनिट से विशेषज्ञ और प्रभारी को लिया गया था। इस लिस्ट के हिसाब से कमेटी ने कमियां बता दीं। लेकिन कुछ समय बाद ही दूसरी चेक लिस्ट भेज दी गई। कहा गया कि नई बिल्डिंग 2020 की गाइडलाइन के हिसाब से बनी है। इसलिए अब आपको 2024 की नई चेक लिस्ट के हिसाब से कमियां चेक करना है। कमेटी के सदस्यों का कहना है कि नई चेक लिस्ट में जिस बारीकी से चीेजें बताई गई हैँ उसे सिर्फ इंजीनियर ही समझ सकता है। इसमें एक-एक चीज का माप दिया गया है।
नई बिल्डिंग में ये यूनिट होनी हैं शिफ्ट
ग्राउंड और फर्स्ट फ्लोर पर जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र (डीईआईसी), सेकंड फ्लोर पर एनआरसी और पीआईयूसी वार्ड, थर्ड फ्लोर पर एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशाला। न लिफ्ट है और न ही रैंप:
तीन मंजिला बिल्डिंग में अभी आने जाने के लिए न तो लिफ्ट है और न ही रैंप। ग्राडंड और फर्स्ट फ्लोर पर सबसे महत्वपूर्ण यूनिट डीईआईसी है जहां 0 से 18 साल तक के बच्चों की जांच और उपचार होता है। इसमें 6 विभाग है, जिनमें दंत रोग, मानसिक रोग, ऑडियोलॉजी एवं स्पीच थैरेपी, नेत्र रोग, स्पेशल एजुकेशन, सामाजिक कार्य विभाग। डेंटल डिपार्टमेंट के लिए जो कक्ष बनाए हैं उनमें जरूरी सामान रखने न तो स्ट्रक्चर बनाया और न ही कवर्ड अलमारी। डेंटल सर्जरी में उपयोग होने वाली स्पेशल चेयर को ऑपरेट करने इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट नहीं दिए गए। लाइट फिटिंग अंडर ग्राउंड होनी थी लेकिन बाहर से कर दी गई। नहीं बना साउंड प्रूफ कमरा:
ऑडियोलॉजी विभाग में बच्चे की ऑडियो चेक करने के लिए साउंड प्रूफ कमरा बनना था लेकिन जो कमरा बनाया गया है उसमें सामान्य कमरों की तरह दरवाजे लगा दिए। यहां से बाहर की आवाजें आती हैं। ऐसे में करीब 10 लाख रुपए कीमत की महंगी मशीनों से जांच करने का फायदा नहीं मिल सकेगा।
स्टील की जगह पीवीसी का ग्रामोफोन:
मानसिक रोग विभाग में ऐसे कक्षों का निर्माण करना था, जहां मंद बुद्धि बच्चों को सिखाने स्पेशल खिलौने और आकृतियों का उपयोग किया जाता है। इनमें से एक है ग्रामोफोन जो स्टेनलेस स्टील का बना होना था लेकिन ठेकेदार ने इसे पीवीसी (पॉलीविनाइल क्लोराइड) का बना दिया। बच्चे इसका उपयोग नहीं कर सकेंगे क्योंकि पीवीसी एक आम प्लास्टिक सामग्री है।
नहीं हो रहा सैंपल कलेक्शन:
एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशाला में सैंपल कलेक्शन सेंटर अलग से बनाया गया है जिसे प्रयोगशाला के साथ ही बनाया जाना था। वहीं यह यूनिट तीसरी मंजिल पर है जहां मरीज सैंपल देने कैसे जाएंगे। यहां तक आने के लिए सीढ़ियां तो बनाई हैं लेकिन लिफ्ट या रैंप नहीं है। ऐसे में अब सैंपल कलेक्शन सेंटर पुराने भवन में ही रहेगा।
नई बिल्डिंग में रैंप और लिफ्ट की कमी छुपाने के लिए अब पास में बनी बिल्डिंग की दीवार तोड़कर नया प्रवेश द्वार बनाया जाएगा जिससे पुरानी बिल्डिंग की लिफ्ट का उपयोग हो सके। वहीं इस कमी की वजह से भवन के शेष हिस्से का उपयोग प्रसूता वार्ड के लिए न कर एनआरसी और पीआईयूसी के लिए जाएगा।
इस संबंध में सिविल सर्जन डॉ वीरेंद्र रघुवंशी ने बताया कि नई बिल्डिंग में जो भी कमियां थी, हमने एक कमेटी गठित कर नई चेक लिस्ट के हिसाब से बता दी हैं। काफी कमियां पूरी हो गई हैं। लिफ्ट के लिए हम दूसरा रास्ता अपना रहे हैं। डीईआईसी के पुरानी बिल्डिंग की दीवार तोड़कर वहां से रास्ता बनाया जाएगा। बहुत जल्द ही भवन को स्वास्थ्य विभाग के आधिपत्य में ले लिया जाएगा।