नेचर
कैंसर जर्नल में छपे शोध के मुताबिक वैज्ञानिकों ने दो अलग-अलग एपिजेनेटिक कंडिशंस की पहचान की है, जो व्यक्ति में कैंसर के खतरे के संकेत हो सकती हैं। ये एपिजेनेटिक्स व्यक्ति में शुरुआती स्टेज में ही विकसित हो जाते हैं। एपिजेनेटिक से जेनेटिक एक्टिविटीज को डीएनए में बदलाव किए बगैर कंट्रोल किया जाता है। शोध के निष्कर्ष के मुताबिक इनमें से एक कंडिशन कैंसर के खतरे को कम करती है, जबकि दूसरी खतरा बढ़ा देती है। यह शोध कैंसर की जल्दी पहचान और इलाज में अहम साबित हो सकता है।
कम और ज्यादा रिस्क : Cancer Risk Before Birth
मिशीगन के वैन एंडेल इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं का कहना है कि कम रिस्क वाली कंडिशन में व्यक्ति में ल्यूकेमिया या लिंफोमा जैसे लिक्विड ट्यूमर होने का खतरा ज्यादा होता है। ज्यादा रिस्क वाली कंडिशन में लंग या प्रोस्टेट कैंसर जैसे सॉलिड ट्यूमर होने का खतरा बढ़ जाता है।
चूहों पर किया प्रयोग
शोध में चूहों पर प्रयोग से पता चला कि ट्रिम-28 जीन के नीचे स्तर वाले चूहों में कैंसर से जुड़े जीन्स पर एपिजेनेटिक मार्कर दो अलग-अलग पैटर्न में पाए गए। ये पैटर्न शुरुआती स्टेज में ही विकसित हो जाते हैं। हर असामान्य कोशिका कैंसर में नहीं बदलती, लेकिन इससे खतरा जरूर बढ़ जाता है।
कैंसर की रोकथाम के लिए कदम:
अगर भविष्य में यह तरीका सफल साबित होता है, तो कैंसर से लड़ने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं: आहार और पोषण: वैज्ञानिक यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि जिन व्यक्तियों में कैंसर का खतरा ज्यादा हो, वे अपने आहार और पोषण में बदलाव करें। स्वस्थ जीवनशैली: व्यक्ति को शारीरिक सक्रियता बढ़ाने और धूम्रपान या शराब से दूर रहने की सलाह दी जा सकती है।
सक्रिय निगरानी: उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों की नियमित रूप से जांच की जा सकती है, ताकि कैंसर के शुरुआती लक्षणों को जल्दी पहचाना जा सके।