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हुबली

शोध के लिए नए एवं समसामयिक विषयों का चयन कर रहे शोधार्थी, महाराष्ट्र एवं गोवा से विद्यार्थी अध्ययन के लिए आ रहे

कर्नाटक विश्वविद्यालय धारवाड़ के छात्र कल्याण विभाग के डीन एवं निर्देशक प्रोफेसर सीताराम पवार से राजस्थान पत्रिका की विशेष बातचीत

हुबलीApr 16, 2025 / 12:13 pm

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

प्रोफेसर सीताराम के. पवार

प्रोफेसर सीताराम के. पवार

विद्यार्थी शोध के लिए नए विषयों का चयन कर रहे हैं। समसामयिक विषयों को चुन रहे हैं। ज्वलंत मसलों को शोध में शामिल किया जा रहा है। अलग-अलग विषयों पर शोध कर रहे हैं। किसान एवंं मजदूरों के आत्महत्या करने के विषय को शोध को रूप में चुना है। समकालीन भारतीय साहित्य-किसान एवंं मजदूरों का संघर्ष, समकालीन हिंदी के प्रमुख उपन्यासों में चित्रित पर्यावरण का विवेचनात्मक अध्ययन पर शोध किया गया है। करीब 25 छात्र पीएचडी कर रहे हैं। कर्नाटक विश्वविद्यालय धारवाड़ के छात्र कल्याण विभाग के डीन एवं निर्देशक तथा हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर सीताराम के. पवार ने राजस्थान पत्रिका के साथ विशेष बातचीत में यह जानकारी दी।
हिंदी की सभी सीटें भर रहीं
पवार ने बताया कि धारवाड़ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में संचालित स्नातकोत्तर स्तर पर हिंदी पढऩे के लिए कर्नाटक के साथ ही महाराष्ट्र एवं गोवा से भी विद्यार्थी प्रवेश ले रहे हैं। कर्नाटक विश्वविद्यालय में हिंदी की सभी सीटें भर रही हैं। पुस्तकालय में हिंदी की करीब छह हजार से अधिक पुस्तकें हैं। विद्यार्थियों को स्कील डवलपमेंट की जानकारी दी जाती है। पर्सनेलिटी डवलपमेंट के बारे में भी बता रहे हैं। पीजी डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी चल रहा है। कर्नाटक के कई विश्वविद्यालयों में हिंदी स्नातकोत्तर में पढ़ाई जा रही है। धारवाड़ के साथ ही बेंगलूरु, मैसूरु, मेंगलूरु, कलबुर्गी में हिंदी स्नातकोत्तर स्तर पर अध्यापन करवाई जा रही है। कर्नाटक स्टेट ओपन विश्वविद्यालय में भी पीजी हिंदी है। पिछले पांच वर्ष में पांच अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस की जा चुकी है। वर्ष 2023 में आजादी का अमृत महोत्सव के मौके पर स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय साहित्य का अवदान विषय पर कॉन्फ्रेंस का आयोजन हो चुका है। इस कॉन्फ्रेंस मेंं अमरीका, नार्वे, नेपाल समेत अन्य स्थानों से 30 प्रोफेसर सम्मिलित हुए।
कई बड़े संगीतकार एवं साहित्यकार हुए
कर्नाटक विश्वविद्यालय धारवाड़ के छात्र कल्याण विभाग के डीन एवं निर्देशक पवार ने बताया कि धारवाड़ दक्षिण भारत की सांस्कृतिक, कला, साहित्य, संगीत की राजधानी है। यह दक्षिण की काशी है। इस धरती पर कई बड़े संगीतकार एवं साहित्यकार हुए। भीमसेन जोशी, गंगूबाई हांगल, मल्लिकार्जन मंसूर सरीखे लोग इसी मिट्टी में जाए-जन्मे। इसी विश्वविद्यालय ने विक्रम गोकाक, दरा बेन्द्रे, गिरिश कर्नाड, चन्द्रशेखर कम्बार समेत पांच ज्ञानपीठ पुरस्कार मिले हैं। कई बड़े साहित्यकार इसी विश्वविद्यालय से निकले हैं।
ऐसे हुई हिंदी विभाग की शुरुआत
स्नातकोत्तर हिंदी अध्ययन विभाग का शुभारम्भ 1959-60 में कर्नाटक महाविद्यालय धारवाड़ में प्रोफेसर राधाकृष्ण मुदलियार के नेतृत्व में हुआ। वर्ष 1971 में पूर्णकालिक रूप से हिंदी विभाग, कर्नाटक विश्वविद्यालय के परिसर में स्थापित हुआ। मुदलियार इस विभाग के प्रथम विभागाध्यक्ष रहे। वे हिंदी भाषा तथा भाषा विज्ञान के प्रख्यात पंडित थे। अठारह भाषाओं के ज्ञाता थे।
पवार को मिल चुके हैं कई सम्मान
पवार को गुरुकुल तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार, विद्याभूषण अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार, महात्मा गांधी पुरस्कार, रज्जीदेवी नंदराम सिहागा साहित्य पुरस्कार, साहित्य शिरोमणि सम्मान, सांस्कृतिक एवं धीरमंत सम्मान, शरद चन्द्र चट्टोपाध्याय साहित्यिक राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। पवार ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में संयोजक का दायित्व निभाया है। इसमें भारतीय साहित्य एवं स्वतंत्रता आन्दोलनों में योगदान, समकालीन भारतीय साहित्य में विविध विमर्श, समकालीन हिंदी साहित्य में किसान एवं श्रमिक संघर्ष, हिंदी साहित्य की समकालीन चुनौतियां और उनके विविध आयाम और समकालीन भारतीय साहित्य: पर्यावरण विमर्श शामिल है। विभिन्न राष्ट्रीय संगोष्ठियों में संयोजक की भूमिका निभा चुके हैं। इसमें राजेन्द्र यादव के साहित्य का समग्र मूल्यांकन, इक्कीसवीं सदी का साहित्य:उत्तर आधुनिकता, रामधारी सिंह दिनकर के साहित्य के विविध आयाम शामिल है।
70 शोध पत्र प्रकाशित
पवार के अब तक कुल 70 शोध पत्र के साथ ही 20 अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। कई पुस्तकों का अनुवाद किया है। रेडियो नाटकों का संकलन आवाज को कन्नड से हिंंदी में अनुदित किया है। कई कविताओं, लघु कथाओं का हिंदी से कन्नड़ एवं कन्नड़ से हिंदी में अनुदित किया हैं। आईएसबीएन के द्वारा पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इसमें त्रिवेणी के साहित्य का विवेचनात्मक अध्ययन, मन्नु भंडारी के कथा साहित्य का विश्लेषणात्मक अध्ययन, साहित्य मंथन: हिंदी और कन्नड़ साहित्य के संदर्भ में, स्वातंत्रोत्तर हिंदी और कन्नड़ उपन्यासों में दलित संवेदना, आवाज (एकांकी नाटक), मन्नु भंडारी और त्रिवेणी के कथा साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन और कबीरदास के दार्शनिक विचार शामिल हैं।

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