कथावाचिका सुभद्रा कृष्ण ने कहा, हरि की कृपा होती है, तभी ऐसे अनुष्ठान संपन्न होते हैं। परमात्मा की कृपा सभी पर नहीं होती। किसी में सामथ्र्य नहीं कि वह स्वयं परमात्मा को चुन ले। अनुष्ठान और कथाओं में अक्सर माताओं-बहनों की उपस्थिति अधिक रहती है, यह उनकी श्रद्धा का प्रतीक है। उन्होंने आगे कहा, आप शिवमहापुराण कथा का श्रवण कर रहे हैं, लेकिन केवल श्रवण ही नहीं, चिंतन-मनन भी करना चाहिए। भजन और मनन में अंतर है। नित भगवान के चरणों में जो समर्पित हो, वह भजन है और जो हृदय में उतरे, वही मनन है। यदि जीवन में चिंतन और मनन नहीं, तो मानव देह मिलने का कोई अर्थ नहीं। भक्ति में कोई मिलावट नहीं होनी चाहिए, तभी प्रभु की कृपा प्राप्त होती है।
कथावाचिका ने बताया, शिवजी ने स्वयं शिवमहापुराण की कथा कही है। देवों के देव महादेव हैं। शिवमहापुराण में 24 हजार श्लोक हैं और शिवजी ने रामायण का भी गायन किया है। शिवजी माता पार्वती को कैलाश पर्वत पर रामकथा सुना रहे थे, रामजी ने अपने जीवन में शिव की आराधना की। देवों के देव होते हुए भी शिवजी कितने सरल हैं। उन्होंने कहा, संसार में जब-जब संकट आएगा, शिवजी स्वयं पधारेंगे। शिवमहापुराण और वाल्मीकि रामायण, दोनों में 24-24 हजार श्लोक हैं। ब्रह्म गायत्री मंत्र में 24 शब्द हैं। इस मंत्र का एक लाख बार मनन करने से जितना पुण्य मिलता है, उतना पुण्य एक बार शिवमहापुराण का श्रवण करने से प्राप्त हो जाता है। कथावाचिका सुभद्रा कृष्ण ने कहा, शिवजी एक लौटा जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। जो कुछ भी उपलब्ध हो, शिवजी को अर्पित कर देना चाहिए। भगवान सदैव भक्तों के वश में रहते हैं। भक्ति में कोई मिलावट नहीं होनी चाहिए।
श्री बाबा रामदेव मरुधर सेवा संघ हुब्बल्ली के सचिव एवं कथा के चेयरमैन मालाराम देवासी बिठूजा ने बताया कि कथावाचिका सरल शब्दों में शिवमहापुराण का श्रवण करा रही हैं। कथा श्रवण के लिए शहर के विभिन्न इलाकों सेे महिला, पुरुष एवं बच्चे पहुंच रहे हैं। कथा के दौरान मंगलवार को श्री बाबा रामदेव मरुधर सेवा संघ हुब्बल्ली के केसाराम चौधरी हरजी, बस्तीमल दर्जी, रामलाल झणवा चौधरी, तेजाराम सीरवी, जेठाराम श्रीमाली, रावतसिंह राजपुरोहित समेत अन्य भक्तगण मौजूद रहे। कथा के प्रारम्भ में आरती की गई।