वास्तव में, ऐसा करना उसका तहसीलदार किसी को सिर्फ कानूनन वारिस मानने को सिविल कोर्ट नहीं भेज सकता कर्तव्य है। वह किसी को वारिसाना प्रमाण पत्र के लिए सिविल न्यायालय नहीं भेज सकता। इस अहम टिप्पणी के साथ इंदौर हाईकोर्ट के जस्टिस प्रणय वर्मा की बैंच ने तहसीलदारों के कामकाज की व्याख्या की है।
दरअसल, तहसीलदार कोर्ट ने नामांतरण के आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आवेदक को संपत्ति का वारिस साबित करने के लिए सिविल कोर्ट से वारिसाना प्रमाण पत्र लाना होगा। इस पर कोर्ट ने तहसीलदार के आदेश को न सिर्फ खारिज किया बल्कि उनके कर्तव्य को भी स्पष्ट कर दिया। साथ ही कोर्ट ने टिप्पणी पर इसकी दोबारा सुनवाई करने के आदेश भी दिए।
ये है मामला
अभिभाषक अभिनव धानोतकर ने बताया, राहुल और उनके भाई राजीव के नाम पर डॉ. आंबेडकर नगर (महू) में जमीन थी। राजीव की मृत्यु के बाद राहुल ने जमीन नामांतरण का आवेदन तहसील लगाया। वे अकेले जीवित वारिस हैं। इससे संबंधित रिकॉर्ड तहसीलदार के समक्ष पेश हुए और दावा-आपत्ति भी नहीं आई। इसके बावजूद वारिसाना प्रमाण पत्र के लिए आवेदन खारिज कर दिया गया।