crime against women : जब किसी महिला का उत्पीडऩ होता है तो कई बार वह चाहकर भी आवाज नहीं उठा पाती है। लोक-लाज, परिवार की मर्यादाएं और बदनामी का डर उसे ऐसा करने से रोक देते हैं। यही वजह है कि महिला अपराधों की संया लगातार बढ़ रही है। अधिकतर मामलों में महिला या युवती के चरित्र पर ही सवाल उठा दिया जाता है। ऐसी सोच को बदलने की आवश्यकता है। जो हमें स्वयं प्रयास करते हुए समाज में लानी होगी। ये बात गुरुवार को पत्रिका के महिला सुरक्षा अभियान के अंतर्गत आयोजित जागरुकता कार्यक्रम में समाजसेवी आरती शुक्ला ने कही।
निशा तिवारी ने कहा आज सुरक्षा जैसी चीज कहीं दिखती तो नहीं है, लेकिन खुद पर विश्वास के साथ महिला बाहर निकलती है। यही विश्वास उसे अपने साथ होने वाले अपराधों के खिलाफ भी जगाना होगा। इससे वो और उसका परिवार सुरक्षित रहेंगे।
crime against women : समाज को लेनी होगी जिमेदारी
मोना सिंह ने कहा पुरुषों को महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने की आवश्यकता है, ये लोग कहते बस हैं। जबकि हकीकत ये है कि आज घर बाहर निकली बेटी, बहू कोई भी विकृत मानसिकता वालों की गंदी नजर से नहीं बच पा रही है। अबोध बच्चियां भी इनका शिकार हो रही हैं। हमारे समाज को यह जिमेदारी लेनी होगी कि किसी भी बहु बेटी के खिलाफ अपराध न होने पाए। जागरुकता कार्यक्रम में एएस तिवारी, ज्योति तिवारी, मधु वर्मा, शकुन पटेल, अर्चना गोस्वामी ने भी अपनी बात रखी।
Crime Against Women in MP
crime against women : महिलाओं को समझना होगा महिला का दर्द
वंदना गर्ग ने कहा अधिकतर परिवारों में देखने आता है कि जब कोई महिला या बेटी अपने ऊपर हो रहे अपराध या प्रताडऩा की बात करती है तो घर की अन्य सदस्य महिलाएं उसे ही दोषी या कारण बताने में जुट जाती हैं। जो कि बहुत गलत बात है। एक दूसरे के दर्द को महिलाएं समझें तभी महिलाएं अपराधों से बच पाएंगी।
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