जयपुर में पाकिस्तानी शरणार्थियों को 50 प्रतिशत छूट पर प्लाट देगी सरकार, JDA ने बनाया प्लान, CAA के तहत मिली है नागरिकता
राजस्थान सरकार ने जयपुर के भीतर पाकिस्तानी गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को सस्ते आवासीय प्लाट देने की योजना बनाई है। यह प्लाट उन लोगों को दिए जाएंगे, जो भारत की नागरिकता हासिल कर चुके हैं, और राज्य के निवासी हैं।
राजस्थान में रह रहे पाकिस्तानी गैर-मुस्लिम शरणार्थी (फोटो-ANI)
जयपुर। राजस्थान सरकार ने पाकिस्तान से आए उन शरणार्थियों को राहत देने की पहल की है, जिन्हें भारतीय नागरिकता मिल चुकी है। सरकार ने जयपुर विकास प्राधिकरण (JDA) के माध्यम से लगभग 160 आवासीय भूखंड 50 फीसदी सब्सिडी पर देने की योजना बनाई है। ये प्लाट चित्रकूट, सांगानेर और मानसरोवर क्षेत्रों में उपलब्ध कराए जाएंगे।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, JDA के अतिरिक्त आयुक्त राकेश शर्मा ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि यह आवंटन ‘भूखंडों का आवंटन एवं विक्रय नियम, 1972’ के तहत किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इसके लिए जोन 8, 12 और 14 में भूखंड चिन्हित किए गए हैं और जल्द ही प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
होली खेलते पाकिस्तानी गैर-मुस्लिम शरणार्थी (फोटो-ANI)
कांग्रेस सरकार में दिए गए थे 100 प्लाट
यह योजना जनवरी 2020 में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा की गई एक समान पहल की तर्ज पर है, जब नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध के बीच 100 भूखंड पाकिस्तानी शरणार्थियों को आवंटित किए गए थे। सीएए दिसंबर 2019 में लागू हुआ था, जिसका उद्देश्य 2015 से पहले अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को तेजी से नागरिकता देना है।
वर्तमान में भाजपा सरकार द्वारा इस फैसले को लागू करना खासा महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले और भारत-पाक तनाव की पृष्ठभूमि में आया है।
मकान निर्माण में सहायता करने का वादा
शहरी विकास और आवास विभाग (UDH) के एक अधिकारी ने बताया कि पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जैसलमेर में एक जनसभा में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने न केवल जमीन देने का, बल्कि शरणार्थियों को मकान निर्माण में सहायता देने का भी वादा किया था।
इन नियमों के साथ मिलेगा प्लाट
फिलहाल, विभागीय अधिकारी पात्रता के आधार पर आवेदनों की समीक्षा कर रहे हैं। भूखंड पाने के लिए जरूरी है कि आवेदक राजस्थान में पंजीकृत शरणार्थी हों, राज्य के मूल निवासी हों और भारत में उनके नाम कोई अन्य आवासीय संपत्ति न हो। सरकार की यह पहल न सिर्फ शरणार्थियों के पुनर्वास की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, बल्कि उनके भारतीय समाज में समावेश को भी सुदृढ़ करती है।
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