लेकिन मौजूदा भाजपा सरकार ने सत्ता में आने के बाद इन चारों शहरों को जिला बनाने की प्रक्रिया को अमान्य कर दिया। सरकार ने साफ कर दिया कि ये नए जिले मान्य नहीं हैं। ऐसे में अब ये जिले के मुख्यालय नहीं माने जा रहे।
कोई शहर जिला मुख्यालय नहीं
स्वायत्त शासन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, नगर परिषद का दर्जा उन शहरी निकायों को दिया जाता है जो जिले के मुख्यालय होते हैं या जिनकी जनसंख्या, आय और सामाजिक-आर्थिक संरचना तय मापदंडों को पूरा करती है। अगर कोई शहर जिला मुख्यालय नहीं है और बाकी मानदंड भी पर्याप्त नहीं हैं, तो उसे नगर परिषद नहीं रखा जा सकता।
बजट और प्रशासनिक दायरा सीमित होगा
सरकार के इस फैसले के बाद अब इन चारों शहरों के शहरी निकाय पहले की तरह नगर पालिका के रूप में काम करेंगे। इसका मतलब है कि इनका बजट और प्रशासनिक दायरा थोड़ा सीमित होगा। नगर पालिकाओं को विकास योजनाओं और संसाधनों में नगर परिषदों की तुलना में कुछ कम प्राथमिकता मिलती है।
सरकार का क्या है तर्क
सरकार का तर्क है कि यह बदलाव पूरी तरह से प्रशासनिक नियमों के अनुरूप है। हालांकि, विपक्ष ने इस फैसले पर सवाल उठाए हैं और इसे राजनीतिक निर्णय बताया है। स्थानीय लोगों में भी इसे लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया है। कई लोग मानते हैं कि इससे उनके शहर के विकास की रफ्तार पर असर पड़ सकता है।