स्थानीय लोगों का मानना है कि पुराने समय में लगाए गए ये पेड़ आज शहर की सबसे बड़ी ज़रूरत बन गए हैं। एक ओर जहां तेज धूप और गर्म हवाएं सामान्य जनजीवन को प्रभावित कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर इन चौराहों की छांव मानो एक जीवनदायिनी परत बन चुकी है।
राहत के साथ रोजगार भी
दोपहर की धूप में अगर यह पेड़ नहीं होता तो यहां लोगों की परेशानियां बढ़ जाती। कुछ व्यापारी नीचे बैठकर सामान बेचते हैं, ग्राहक भी आते हैं और दो पल सुस्ता भी लेते हैं। धूप से बचाव के साथ ये पेड़ अपनी छाया में लोगों को रोजी-रोटी भी दिला रहे हैं।
-रमेश कुमार, स्थानीय निवासी
अब समझ आ रहा महत्व
बरसों पहले लगाए गए पेड़ों का आज असली महत्व समझ आ रहा है। शहर में जिस तेजी से गर्मी बढ़ रही है, उस हिसाब से इन पेड़ों का बचना और बढऩा बेहद ज़रूरी है।
-राणीदान जोशी, स्थानीय निवासी
पेड़ ही नहीं साथी भी
गर्मी में ग्राहक आते हैं तो सबसे पहले छांव तलाशते हैं। मेरी दुकान के पास नीम का बड़ा पेड़ है, जिससे बहुत राहत मिलती है। यह पेड़ खुद मेरा साथी है।
-नवीन वाधवानी, स्थानीय निवासी
नए इलाकों में भी हो पौधरोपण
मोहल्ले के बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं सभी पेड़ की छांव में समय बिताते हैं। यह केवल पेड़ नहीं, गर्मी में जीवन की आस है। नए इलाकों में भी ऐसे पेड़ लगाए जाने चाहिए। -रामचंद्र जयपाल, स्थानीय निवासी
हकीकत यह भी
इन पेड़ों से मिलने वाली राहत के बावजूद शहर के नए हिस्सों में छायादार वृक्षों की भारी कमी देखी जा रही है। कई नई कॉलोनियों, बस स्टैंड और सार्वजनिक स्थानों पर हरियाली लगभग नदारद है। जहां-तहां लगाए गए सजावटी पौधे गर्मी झेलने में असमर्थ हैं। जानकारों का मानना है कि शहर में शहरी नियोजन के साथ पौधेरोपण की समग्र योजना होना अब वक्त की मांग है। खासतौर पर ऐसे वृक्षों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जो छाया देने के साथ-साथ लंबे समय तक जीवित रह सकें। जैसलमेर जैसे रेगिस्तानी इलाके में पीपल, नीम और बरगद के पेड़ न सिर्फ पर्यावरण को संतुलन देते हैं, बल्कि सामाजिक जीवन को भी राहत पहुंचाते हैं।