scriptरोहिड़ा वृक्ष को संरक्षण की दरकार: फलसूंड क्षेत्र में है रोहिड़े के वृक्ष, खो रहे अस्तित्व | Rohida tree needs protection: Rohida trees are in Phalsund area, they are losing their existence | Patrika News
जैसलमेर

रोहिड़ा वृक्ष को संरक्षण की दरकार: फलसूंड क्षेत्र में है रोहिड़े के वृक्ष, खो रहे अस्तित्व

राजस्थान का सागवान कहा जाने वाला रोहिड़ा वृक्ष संरक्षण के अभाव में अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। रोहिड़ा वृक्ष ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से फलसूंड के भुर्जगढ़, पदमपुरा, मानासर पंचायतों के खेतों में पाया जाता है।

जैसलमेरFeb 23, 2025 / 08:44 pm

Deepak Vyas

jsm
राजस्थान का सागवान कहा जाने वाला रोहिड़ा वृक्ष संरक्षण के अभाव में अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। रोहिड़ा वृक्ष ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से फलसूंड के भुर्जगढ़, पदमपुरा, मानासर पंचायतों के खेतों में पाया जाता है। इन दिनों रोहिड़ा वृक्ष पर रंग बिरंगे फूल आ जाने से वे सभी का मन मोह रहे हैं। अब इस वृक्ष पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। जनजागृति एवं संरक्षण के अभाव में यह प्रकृति की ऐतिहासिक धरोहर अपना वजूद खोती जा रही है। ग्रामीण बताते हैं कि इसकी लकड़ी बहुत ही कीमती व मजबूत होती है। जिसका उपयोग फर्नीचर बनाने में विशेष रूप में किया जाता है और इसकी लकड़ी पर कारीगरों की ओर से नक्काशी का कार्य होता है, जिसकी मांग विदेशों तक है। इसकी लकड़ी का उपयोग होने पर ग्रामीण अज्ञानता के कारण इसके संरक्षण पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। खेतों में रोहिड़े के बड़ी संख्या में ऐसे छोटे पौधे देखे जा सकते हैं। यदि इस वृक्ष को संरक्षण मिले तो ये पौधे विकसित हो सकते हैं।

चिंता का विषय

कृषि क्षेत्र में रुचि रखने वाले व वनस्पति पर्यावरण के प्रति सजग किसान बताते हैं कि रोहिड़े का वानस्पतिक नाम टीकोमेला अण्डुलेटा है, जो पर्यावरण संतुलन के लिए बहुत ही उपयोगी है। इसकी संख्या दिनोंदिन घटना पर्यावरण के लिए चिंता का विषय है। सरकार को इनके संरक्षण के लिए विशेष पैकेज व कृषकों को जिनके खेतों में यह पौधे हैं, उन्हें ऋण देकर संरक्षण के लिए संदेश देना चाहिए। फलसूंड क्षेत्र में रोहिड़ा वृक्ष बड़ी संख्या में लगे हुए हैं। साथ ही इन दिनों इन वृक्षों पर रंग बिरंगे फूल भी लगे हुए हैं। जिससे हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। रोहिड़ा वृक्ष की लकड़ी की भी बहुतायत में मांग है। जिसके चलते क्षेत्र के ग्रामीण व किसान इसके संरक्षण की मांग कर रहे हैं।

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