मुख्यालय के नोडल ऑफिसर ने प्रोजेक्ट की क्रियान्विति को लेकर दो सप्ताह पूर्व कुछ आपत्तियां जाहिर की थी। जिसमें यूजर एजेंसी पीडब्ल्यूडी की ओर से पेश किए गए प्रोजेक्ट में मुख्य रूप से अलाइनमेंट को लेकर आपत्ति थी। पीडब्ल्यूडी ने इस मामले में कमियों को दूर करते हुए रिपोर्ट अपडेट की है। इसी तरह वन विभाग की ओर से वन क्षेत्र से सडक़ के लिए उपलब्ध करवाई गई जमीन की एवज में दी गई जमीन के बारे में आवश्यक जानकारी मांगी गई थी। जिसकी जानकारी उपलब्ध करवाई गई है।
जल्द शुरू होगा सड़क का काम
एक साल से अधिक समय से जालोर किले तक सड़क निर्माण का काम अटका पड़ा था। अब यूजर एजेंसी पीडब्ल्यूडी और वन विभाग के स्तर से जो भी कमियां थी, उन्हें दूर करने के लिए दस्तावेज अपडेट किए जा चुके हैं। वन विभाग के अधिकारियों की मानें तो सभी कमियां दूर की जा चुकी है। ऐसे में सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही सडक के लिए काम शुरु हो पाएगा। नहीं चढ़नी पड़ेगी 2000 सीढ़ियां
किले तक सड़क बनने से आसपास के हजारों लोगों सहित देसी—विदेशी पर्यटकों की राह आसान हो जाएगी। अभी लोगों को किले तक पहुंचने के लिए 2000 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। जिसमें एक घंटे से ज्यादा का समय लगता है। लेकिन, सड़क बनने के बाद लोग साधनों से 10 मिनट में किले तक पहुंच जाएंगे। 2026 में सड़क मार्ग से जालोर के ऐतिहासिक स्वर्णगिरी दुर्ग तक आवाजाही कर सकेंगे।
इतनी जमीन उपलब्ध करवाई गई
जालोर किले तक सडक़ निर्माण क्षेत्र में 4.606 हैक्टेयर जमीन वन विभाग की आ रही थी। इस सडक़ निर्माण के कार्य में वन विभाग की जमीन की एवज में तत्कालीन जिला कलक्टर हिमांशु गुप्ता के प्रयासों से छीपरवाड़ा में 5.54 हैक्टेयर जमीन सुझाई गई थी।
बजट जारी हुआ, लेकिन काम अटका
राज्य बजट-2023-24 के बाद 16 फरवरी को महत्वपूर्ण सौगातें जिले को मिली। इस घोषणा में जालोर के स्वर्णगिरी दुर्ग तक 5.45 किलोमीटर लंबी सडक़ के लिए 27 करोड़ रुपए का बजट जारी किया गया है। इस कार्य के लिए पूर्व जन अभाव अभियोग निराकरण समिति के पूर्व अध्यक्ष पुखराज पाराशर ने 5 अक्टूबर 2023 में भूमि पूजन किया, लेकिन बाद में यह काम वन विभाग की ओर से अलाइनमेंट में अंतर का हवाला देते हुए एक साल से अधिक समय तक अटकाया गया। बता दें ये काम 5 दिसंबर 2024 में पूरा होना था।
सिवायचक जमीन की स्थिति के बारे में पूछा
नोडल अधिकारी जयपुर ने किले तक बनने वाली करीब 5.45 किमी सडक़ की एवज में छीपरवाड़ा में जिला प्रशासन की ओर से सुझाई गई सिवायचक जमीन की सूटेबल रिपोर्ट मांगी थी। 15 दिन पूर्व भेजी गई रिपोर्ट में कुछ आपत्तियां जाहिर की गई थी। जिसके बाद उप वन संरक्षक जालोर के स्तर से यह सूटेबल रिपोर्ट भेजी गई है। विभाग ने जमीन की उपलब्धता के साथ पौधरोपण के लिए जमीन को उपयोगी बताया है। जालोर के लिए यह प्रोजेक्ट अहम
जालोर के उप वन संरक्षक जयदेवसिंह चारण ने बताया कि जालोर के लिए यह प्रोजेक्ट अहम है। दुर्ग तक सड़क निर्माण कार्य में कुछ अड़चन आ रही थी। विभागीय स्तर और यूजर एजेंसी के स्तर से इन कमियों को दूर कर दस्तावेज अपडेट किए गए हैं। आशा है, जल्द ही प्रोजेक्ट पर काम शुरु हो जाएगा।
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राजस्थान के जालोर शहर में स्थित जालोर दुर्ग पर का निर्माण 8वीं शताब्दी में परिहार राजाओं ने करवाया था। उनके जाने के बाद विभिन्न कालों में यहां चालुक्य, चौहान, राठौड़ आदि राजवंशों ने शासन किया। कान्हड़देव चौहान के शासनकाल में यहां दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 1311 ई. आक्रमण किया था।
इस किले पर परमार कालीन कीर्ती स्तम्भ कला का उत्कृष्ट नमूना है। किले का तोपखाना बहुत आकर्षक है। कहा जाता है कि यह परमार राजा भोज द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला थी, जो कालान्तर में दुर्ग के मुस्लिम अधिपतियों द्वारा मस्जिद परिवर्तित कर दी गई थी तथा तोपखाना मस्जिद कहलाने लगी। जालोर किला सोनगिरि पहाड़ी पर 1200 मीटर की ऊंचाई में बना है। इतनी ऊंचाई पर होने से यहां से पूरे शहर बहुत शानदार दिखता है।