तीनों बागियों को क्यों किया गया बाहर?
पार्टी की मानें तो तीनों विधायकों को निष्कासन इसलिए झेलना पड़ा क्योंकि ये लगातार पार्टी और अखिलेश यादव के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे। ये नेता बीजेपी नेताओं के साथ मेलजोल बढ़ा चुके हैं और सार्वजनिक मंचों पर सपा को हिंदू विरोधी तक कह चुके हैं। यही नहीं इन नेताओं ने सपा के ‘पीडीए’ फॉर्मूले को कमजोर करने की कोशिश की है। ये तीनों विधायक सवर्ण समुदाय से आते हैं मनोज पांडेय ब्राह्मण जबकि अभय सिंह और राकेश प्रताप सिंह ठाकुर समुदाय से हैं। सपा नेतृत्व मानता है कि इन्हें बाहर करने से पार्टी के जातीय समीकरण पर खास असर नहीं पड़ेगा।
चार विधायकों पर अब तक एक्शन क्यों नहीं?
जहां एक तरफ तीन विधायकों पर कार्रवाई हुई वहीं बाकी चार पर कोई निर्णय नहीं लिया गया। इसकी मुख्य वजह इन नेताओं की नरम भाषा और पार्टी विरोधी गतिविधियों में प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं होना है। पार्टी का कहना है कि इन विधायकों को ‘अनुग्रह-अवधि’ दी गई है यानी उनमें अभी भी सुधार की संभावना है। इसके साथ ही जातीय समीकरणों को भी ध्यान में रखा गया है। पूजा पाल और आशुतोष मौर्य पिछड़े वर्ग से आते हैं जो सपा के कोर वोटबैंक में आते हैं। इसी तरह ब्राह्मण वोटों को साधने के उद्देश्य से राकेश पांडेय और विनोद चतुर्वेदी को पार्टी में रखा गया है।
क्या पीडीए समीकरण है रणनीति का आधार?
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव 2027 की तैयारियों में ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले को मुख्य रणनीति मान रहे हैं। इसलिए उन्होंने उन विधायकों पर ही कार्रवाई की, जो इस समीकरण से बाहर के थे और पार्टी को स्पष्ट रूप से नुकसान पहुंचा रहे थे। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अगर सभी सात विधायकों को निकाला जाता तो सपा का जातीय समीकरण गड़बड़ा सकता था। इसलिए फिलहाल सिर्फ उन्हीं पर गाज गिरी जो या तो मुखर विरोध कर रहे थे या फिर बीजेपी खेमे में पूरी तरह जा चुके हैं। इस घटनाक्रम पर सपा के राष्ट्रीय महासचिव इंद्रजीत सरोज ने भी टिप्पणी की। उन्होंने बताया कि राज्यसभा चुनाव के दौरान कुल 7 नहीं, बल्कि 10 विधायकों ने पार्टी लाइन से अलग जाकर क्रॉस वोटिंग की थी। इनमें सिराथू की पल्लवी पटेल और चायल की पूजा पाल भी शामिल थीं। सरोज के मुताबिक इन पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई, इसका निर्णय राष्ट्रीय अध्यक्ष ही करेंगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि फिलहाल जो निर्णय लिए गए हैं वे पूरी तरह अखिलेश यादव के विवेक और रणनीतिक सोच पर आधारित हैं।