‘बाबा’ की गिरफ्तारी से फैला भय और आंदोलन
आपातकाल के दौरान गिरफ्तार हुए लालचंद्र मौर्या ने बताया कि उनके गुरु बाबा जी को 29 जून 1975 को बिना किसी अपराध के मीसा एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया था। आगरा जेल में बंद करने के बाद उन्हें यातनाएं दी गईं। जब हजारों अनुयायी उनसे मिलने पहुंचे तो पुलिस घबरा गई और बाबा जी को बरेली और फिर बेंगलुरु जेल भेज दिया गया।
ढाई महीने तक सहनी पड़ी थी यातनाएं
लालचंद्र मौर्या ने कहा कि बाबा जी ने जेल को साधना स्थल मान लिया था। उन्होंने भजन-कीर्तन जारी रखा और अनुयायियों को प्रेरित किया कि जेल में भी संघर्ष जारी रखें। उनका मानना था कि अगर सत्य के मार्ग पर डटे रहे तो तानाशाही झुक जाएगी। मौर्या का कहना है कि पुलिस ने उन्हें और अन्य भक्तों को जबरन नसबंदी की धमकी दी। ठंड में बर्फ डाली गई, खाने-पीने से वंचित रखा गया। वे ढाई महीने तक जेल में यातनाएं सहते रहे। उस समय अखबारों पर सेंसर था और दो लोग आपस में बात भी नहीं कर सकते थे। पूर्व विधायक सुरेंद्र प्रताप सिंह ने बताई आपबीती
मथुरा के प्रह्लाद मिश्रा ने कहा कि 11 महीने की जेल यात्रा में उन्होंने मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन देखा। नाखून उखाड़े गए, बर्फ की सिल्लियों पर निर्वस्त्र सुलाया गया। पूर्व विधायक सुरेंद्र प्रताप सिंह ने भी बताया कि कैसे राजनीतिक विरोध से डरकर आपातकाल लागू किया और हजारों लोगों को जेल में डाल दिया।
लोकतंत्र की हत्या और मौलिक अधिकारों का हुआ हनन
पूर्व विधायक सिंह ने कहा कि जेपी आंदोलन से घबराकर सरकार ने देशभर में दमन की नीति अपनाई। मौलिक अधिकार रद्द कर दिए गए, प्रेस की स्वतंत्रता छीनी गई और संसद निष्क्रिय कर दी गई। मीसा एक्ट के तहत बिना कारण हजारों लोग जेल में डाले गए। पूरा देश 21 महीने तक भय और सन्नाटे में डूबा रहा। आपातकाल का कारण बताते हुए पूर्व विधायक ने कहा कि 12 जून को गुजरात विधानसभा चुनाव का परिणाम आया और उसी दिन राज नारायण सिंह द्वारा इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका पर भी फैसला आया। दोनों ही जगह इंदिरा गांधी की हार हुई थी। गुजरात में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था। दूसरी तरफ, रायबरेली के चुनाव के खिलाफ याचिका स्वीकार कर ली गई थी और बाद में अदालत ने इंदिरा गांधी के चुनाव लड़ने पर छह साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद इंदिरा ने देश के लोगों की आवाज दबाने के लिए आपातकाल की घोषणा की थी।
सिंह बताते हैं कि इंदिरा गांधी के इस फैसले का विरोध करने वाले लोगों को सलाखों के पीछे डाल दिया गया था और प्रेस की आजादी पर भी पाबंदी लगा दी गई थी। कई पत्रकारों, राजनेताओं और युवाओं को जेल में डाल दिया गया था। लोगों से उनके जीने का अधिकार छीन लिया गया था।