इस मामले में डॉ. चेतना राजपूत (Chetana Rajput) ने नौरोजी वाडिया कॉलेज में 25 वर्षों तक प्रोफेसर के तौर पर सेवा दी और वह 2023 में रिटायर हुईं। शुरू में उन्हें अंशकालिक शिक्षिका के रूप में नियुक्त किया गया था, लेकिन बाद में उन्होंने शिक्षण सेवक के तौर पर भी काम किया था। इस बीच जब कॉलेज के एक पूर्णकालिक सहायक शिक्षक सेवानिवृत्त हुए, तो उनकी स्वीकृत पद खाली हुई और 2019 में डॉ. राजपूत को उस पद पर पदोन्नति दे दी गई।
डॉ. राजपूत ने 2023 में सेवानिवृत्त होते समय कॉलेज से आग्रह किया था कि उनकी ग्रैच्युटी सेवानिवृत्ति की तिथि तक जारी कर दी जाए, लेकिन कॉलेज की ओर से कोई जवाब नहीं आया। उन्होंने अप्रैल 2024 में एक और आवेदन दिया, फिर भी कॉलेज ने कोई कार्रवाई नहीं की। थक-हार कर डॉ. राजपूत ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट ने 21 अगस्त 2024 को कॉलेज को निर्देश दिया कि डॉ. राजपूत की पेंशन प्रक्रिया तुरंत शुरू की जाए। इसके बावजूद, कॉलेज ने 30 दिसंबर 2024 तक उनका प्रस्ताव आगे नहीं भेजा, जबकि देरी के लिए कोई कानूनी या प्रशासनिक अड़चन नहीं थी।
कोर्ट ने कॉलेज की इस लापरवाही को गंभीरता से लेते हुए कहा कि शैक्षणिक संस्थाओं को कर्मचारियों के सेवानिवृत्ति लाभ समय पर प्रदान किए जाने चाहिए। कोर्ट ने ग्रैच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 की धारा 7(3A) का उल्लेख किया, जिसमें यह प्रावधान है कि यदि निश्चित अवधि के भीतर ग्रैच्युटी का भुगतान नहीं किया जाता है, तो उस पर ब्याज देना अनिवार्य होता है। कोर्ट ने श्रम मंत्रालय की 1 अक्टूबर 1987 की अधिसूचना का हवाला दिया, जिसमें ऐसे मामलों में 10% साधारण ब्याज दर निर्धारित की गई है। इसके साथ ही बॉम्बे हाईकोर्ट ने नौरोजी वाडिया कॉलेज को निर्देश दिया कि डॉ. चेतना राजपूत को इस देरी के लिए 10% ब्याज के साथ ग्रेच्युटी का भुगतान जल्द से जल्द किया जाए।