अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने इस क्षेत्र से मिट्टी के बर्तन, खाना पकाने के उपकरण, औजार और अन्य कलात्मक वस्तुएं खोजी हैं, जो उस समय की एक समृद्ध और सतत मानव सभ्यता का संकेत देती हैं। यह खोज इस तथ्य को बल देती है कि मस्की में 11वीं से 14वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच मानव बस्ती सक्रिय थी। इस शोध का नेतृत्व अमरीकस की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. एंड्रयू एम. बाउर, कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी के डॉ. पीटर जी.जोहान्सन और भारत के शिव नाडर विश्वविद्यालय के डॉ. हेमंत कदंबी कर रहे हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से अनुमति प्राप्त करने के बाद यह टीम बीते तीन महीनों से मस्की में गहन खुदाई और अध्ययन में जुटी है।
अब तक 271 संभावित पुरातात्विक स्थलों की पहचान टीम ने मस्की क्षेत्र में अब तक 271 संभावित पुरातात्विक स्थलों की पहचान की है। इनमें से मल्लिकार्जुन पहाड़ी और आस-पास के मंदिरों के निकट किए जा रहे खुदाई कार्य में ऐसे प्रमाण मिले हैं जो प्राचीन दक्षिण भारतीय जीवन शैली और सांस्कृतिक परंपराओं पर रोशनी डालते हैं।
हड़प्पा युग के समकालीन बसाहट प्रमुख पुरातत्वविद डॉ. कदंबी ने कहा कि हमने मस्की में 4000 साल पुरानी मानव बसाहट के ठोस प्रमाण पाए हैं। उन्होंने बताया कि जो उपकरण और बर्तन मिले हैं, वे उस समय के लोगों के खानपान, घरेलू जीवन और शिल्पकला की झलक देते हैं। इससे पहले मस्की उस स्थान के रूप में जाना जाता था, जहां सम्राट अशोक का एक शिलालेख मिला था, जिसमें अशोक नाम का पहला स्पष्ट उल्लेख हुआ था। अब यह ताजा खोज मस्की को न केवल मौर्यकालीन इतिहास का हिस्सा बनाती है, बल्कि इसे हड़प्पा युग के समकालीन एक प्राचीन और उन्नत सभ्यता के रूप में भी चिन्हित करती है। यह खोज न केवल दक्षिण भारत के प्राचीन इतिहास को फिर से लिखने की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि मस्की को भारतीय पुरातत्व में एक नई केंद्रीय पहचान भी देती है।
अशोक से पहले का इतिहास 1915 में खोजे गए प्रसिद्ध मस्की शिलालेख में सम्राट अशोक का पहला स्पष्ट उल्लेख था। उस खोज ने मस्की को इतिहास में विशेष स्थान दिलाया। अब 110 साल बाद वहीं की मिट्टी एक और कालखंड का राज खोल रही है, जो अशोक से भी पहले की दुनिया की गवाही देती है।