कार्यकाल पूरा न करने वाले तीसरे उपराष्ट्रपति
धनखड़, जो 6 अगस्त 2022 को भारत के 14वें उपराष्ट्रपति बने थे, कार्यकाल पूरा न कर पाने वाले देश के तीसरे उपराष्ट्रपति हैं। उनसे पहले, कृष्ण कांत का कार्यकाल 27 जुलाई 2002 को निधन के चलते बीच में समाप्त हुआ था। वहीं, वराहगिरि वेंकट गिरि (वी.वी. गिरि) ने 1969 में राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया था।
उपराष्ट्रपति चुनाव में भारी मतों से दर्ज की थी जीत
धनखड़ ने 6 अगस्त 2022 को उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। उन्होंने विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को हराया था। उन्हें 725 में से 528 वोट मिले थे, जबकि मार्गरेट अल्वा को 182 वोट प्राप्त हुए थे। उपराष्ट्रपति बनने से पहले, वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रह चुके थे, जहां अपने सख्त रुख और अनुशासनप्रिय कार्यशैली के लिए चर्चा में रहे।
साधारण किसान परिवार से उपराष्ट्रपति तक का सफर
18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझुनू जिले में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे धनखड़ ने अपनी शुरुआती शिक्षा गांव के स्कूल से पूरी की। इसके बाद स्कॉलरशिप पर चित्तौड़गढ़ सैनिक स्कूल में पढ़ाई की। उनका चयन नेशनल डिफेंस अकादमी में हुआ था, लेकिन वे वहां नहीं गए। उन्होंने जयपुर के महाराजा कॉलेज से बीएससी (ऑनर्स) की डिग्री और राजस्थान यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद जयपुर में रहकर वकालत शुरू की और राजस्थान हाई कोर्ट के प्रमुख वकीलों में शामिल हुए।
चौधरी देवीलाल की प्रेरणा से आए राजनीति में
धनखड़ चौधरी देवीलाल से प्रभावित होकर राजनीति में आए। साल 1989 में देवीलाल के 75वें जन्मदिन पर 75 गाड़ियों का काफिला लेकर दिल्ली पहुंचे थे। उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में वी.पी. सिंह की जनता दल ने उन्हें झुंझुनू से टिकट दिया और वह सांसद बने। वी.पी. सिंह की सरकार में देवीलाल उपप्रधानमंत्री बने और धनखड़ को केंद्र में मंत्री पद मिला।
राजनीतिक करियर में विभिन्न दलों का किया प्रतिनिधित्व
धनखड़ ने अपने राजनीतिक जीवन में जनता दल, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में रहकर सेवा दी। 1989-1991 तक वह जनता दल के सांसद रहे। इसके बाद 1991 में कांग्रेस में शामिल होकर अजमेर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। बाद में राजस्थान की किशनगढ़ विधानसभा सीट से विधायक चुने गए। 1998 में झुंझुनू से लोकसभा चुनाव लड़ा, जहां तीसरे स्थान पर रहे। 2003 में वह बीजेपी में शामिल हुए और 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचार समिति में शामिल किए गए।
मानसून सत्र में दिया इस्तीफा
धनखड़ ने संसद के मानसून सत्र के दौरान इस्तीफा दिया। सत्र के पहले दिन राज्यसभा में उन्होंने सदस्यों से सौहार्दपूर्ण माहौल बनाए रखने और संवाद के जरिए समस्याओं के समाधान पर बल दिया था। उन्होंने कहा था कि, राजनीति का सार टकराव नहीं, संवाद है। अलग-अलग राजनीतिक दल भले ही अलग रास्तों पर चलते हों, लेकिन सबका लक्ष्य देशहित ही होता है।