सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
दरअसल, पॉलिसी फॉर्म में यह सवाल था कि क्या
पॉलिसीधारक शराब, सिगरेट, बीड़ी या तंबाकू का सेवन करता है? जिसका जबाव पॉलिसीधारक ने नही में दिया था। हालांकि, मेडिकल रिपोट्र्स से यह साबित हुआ कि वह लंबे समय से शराब पी रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने एलआइसी को सही ठहराते हुए कहा कि क्रॉनिक लिवर डिजीज लंबे समय तक शराब पीने से होती है, यह एक दिन में नहीं होती। पॉलिसीधारक ने जानबूझकर यह बात छुपाया, इसलिए कंपनी को दावा खारिज करने का पूरा अधिकार है। जीवन आरोग्य योजना में यह स्पष्ट रूप से लिखा है कि नशीले पदार्थों या शराब के उपयोग से जुड़ी बीमारियों के लिए इंश्योरेंस कवरेज नहीं मिलेगा।
क्या हर मामले में दावा खारिज हो सकता है?
वर्ष 2015 के सुलभा प्रकाश मोटेगांवकर बनाम
LIC में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सिर्फ पूर्व-मौजूदा जानकारी छुपाने से इंश्योरेंस दावा खारिज नहीं किया जा सकता। हालांकि, अगर इंश्योरेंस कंपनी यह साबित कर दे कि अस्पताल में भर्ती होने या मृत्यु का मुख्य कारण शराब का सेवन ही था, तो दावा खारिज किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी को ब्रेन हेमरेज हुआ और उसने शराब पीने की जानकारी नहीं दी थी, तो इंश्योरेंस कंपनी को पहले यह साबित करना होगा कि ब्रेन हेमरेज का कारण शराब ही थी।
जस्टिस विक्रमनाथ और संदीप मेहता की पीठ ने सुनाया फैसला
यह फैसला जस्टिस विक्रमनाथ और संदीप मेहता की खंडपीठ ने गत तीन मार्च को एनसीडीआरसी के आदेश के खिलाफ दाखिल एलआईसी की अपील स्वीकार करते हुए सुनाया। शीर्ष अदालत ने एनसीडीआरसी का 12 मार्च 2020 का आदेश खारिज कर दिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि मामले के तथ्यों को देखते हुए बीमाकर्ता की मृत्यु के बाद जो पैसा उसकी पत्नी को दिया जा चुका है, उसकी रिकवरी नहीं की जाएगी।