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वीएस अच्युतानंदन की अंतिम यात्रा: 140 किमी, 22 घंटे और जनसैलाब ने दी ऐतिहासिक विदाई

VS Achuthanandan last journey: केरल के पूर्व मुख्यमंत्री और अनुभवी सीपीआई (एम) नेता वीएस अच्युतानंदन का अंतिम संस्कार अलेप्पी (अलप्पुझा) के वलियाचुदुकाडू श्मशान घाट पर किया गया।

भारतJul 23, 2025 / 05:50 pm

Shaitan Prajapat

वीएस अच्युतानंदन की विदाई (Photo – ANI)

VS Achuthanandan last journey: केरल के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज सीपीआई(एम) नेता वीएस अच्युतानंदन की अंतिम यात्रा ने इतिहास रच दिया, जहां 140 किलोमीटर का सफर पूरा करने में 22 घंटे लगे। 101 वर्ष की आयु में सोमवार को निधन के बाद बुधवार को अच्युतानंदन का अंतिम संस्कार अलेप्पी (अलप्पुझा) के वलियाचुदुकाडू श्मशान घाट पर किया गया। यही स्थान 1946 के पुनप्रा-वायलार आंदोलन में शहीद हुए सैकड़ों कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं की समाधि का स्थल भी है, जिससे वीएस का गहरा जुड़ाव था।

जनता का भावनात्मक विदाई सम्मान

मंगलवार दोपहर तिरुवनंतपुरम से फूलों से सजे लो-फ्लोर बस में उनका पार्थिव शरीर रवाना हुआ। लेकिन 140 किमी की दूरी तय करने में 22 घंटे लगे, क्योंकि रास्ते भर जनता का जनसैलाब उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए उमड़ा रहा। हर चौराहे, सड़क और गांव में लोग फूल बरसाकर और ‘वीएस अमर रहे’ के नारे लगाकर नेता को श्रद्धांजलि दे रहे थे।

हरिप्पड़ में नेताओं ने दी श्रद्धांजलि

अलेप्पी जिले के हरिप्पड़ में यात्रा के दौरान वरिष्ठ कांग्रेस नेता रमेश चेन्निथला ने कहा, वीएस की अंतिम यात्रा जब हरिप्पड़ से गुजर रही है, तो मेरा यहां होना जरूरी है। यह भावनात्मक क्षण दिखाता है कि राजनीतिक मतभेदों से परे वीएस का व्यक्तित्व सभी दलों में सम्मानित था।

पार्टी कार्यालय में अंतिम दर्शन

बुधवार सुबह अलेप्पी पहुंचने के बाद वीएस का पार्थिव शरीर उनके पुनप्रा स्थित वेलिक्काकाथु घर ले जाया गया, जहां सीपीआई(एम) महासचिव एमए बेबी, राज्य सचिव एमवी गोविंदन और आईयूएमएल अध्यक्ष सादिक अली शिहाब थंगल समेत कई नेता श्रद्धांजलि देने पहुंचे। इसके बाद शव को सीपीआई(एम) जिला कार्यालय ले जाया गया, जो उनके राजनीतिक जीवन में दूसरा घर रहा।

एक क्रांतिकारी जीवन का समापन

वलियाचुदुकाडू श्मशान घाट वही स्थान है, जहां वीएस हर साल अक्टूबर में पुनप्रा-वायलार आंदोलन के शहीदों को श्रद्धांजलि देने जाते थे। 2019 में पक्षाघात के पहले यह उनका अंतिम दौरा था। 1946 में इसी आंदोलन ने वीएस को संगठक और नेता के रूप में गढ़ा था, जब वह पुलिस के हथियारों का मुकाबला करने के लिए एरेका नट के तनों से भाले तैयार करने वाले कैंप की जिम्मेदारी संभाल रहे थे।

आखिरी विदाई में दिखा ‘लाल सलाम’ का जज्बा

वीएस अच्युतानंदन का अंतिम सफर केवल उनके शरीर का नहीं, बल्कि उस विचारधारा का भी प्रतिनिधित्व कर रहा था, जिसे उन्होंने पूरी जिंदगी जिया। जनता ने उनके संघर्ष, सादगी और प्रतिबद्धता को ‘लाल सलाम’ के नारों के साथ सलाम किया। वीएस का जीवन और उनकी अंतिम यात्रा आने वाली पीढ़ियों को यह याद दिलाती रहेगी कि सच्चे नेता का कद चुनावी जीत से नहीं, बल्कि जनता के दिलों में बने सम्मान से तय होता है।

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