राज्यपाल के ‘पॉकेट वीटो’ का परीक्षण करेगा सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान जस्टिस पारदीवाला ने अटॉर्नी जनरल आर.वेंकटरमणी से पूछा कि राज्यपाल ने विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने से पहले तीन साल तक क्यों रोके रखा और फिर उनमें से कुछ को राष्ट्रपति के पास क्यों भेज दिया? ऐसी कौन सी बात है जिसे खोजने में राज्यपाल को तीन साल लग गए? विधेयकों को विधानसभा को वापस किए बिना केवल स्वीकृति रोकने की घोषणा करना संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लंघन होगा। कोर्ट ने कहा कि हमें कुछ मूल फाइलें, या राज्यपाल के कार्यालय में उपलब्ध कुछ समकालीन रिकॉर्ड दिखाएं कि क्या देखा गया, क्या चर्चा हुई, क्या खामियां थीं? विधेयकों को ऐसे कब तक रोका जा सकता है, यह व्याख्या का विषय है। इस मामले की शुक्रवार को भी सुनवाई होगी।Illegal Immigrants: ‘दोस्त’ ट्रंप ने हथकड़ियां-बेड़ियां पहनाकर भेजा वापस- चुप क्यों है मोदी सरकार? प्रियंका ने किया सवाल, ओवैसी भी हमलावर
क्या है पॉकेट वीटो
‘पॉकेट वीटो’ का संविधान में कोई उल्लेख नहीं है लेकिन विधायिका की ओर से पारित विधेयक पर संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार निर्णय लेने के बजाय अनिश्चितकाल के लिए उसे परोक्ष रूप से रोक कर खारिज करने की स्थिति को पॉकेट वीटो कहा जाता है। राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्वकाल में डाक विधेयक को रोक कर पॉकेट वीटो किया था। राज्यपालों को ऐसे विकल्प नहीं है लेकिन केंद्र-राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें होने के कारण राजभवन में विधेयक रुकने से यह पॉकेट वीटो की श्रेणी में माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट इसी का परीक्षण करेगा।इन प्रमुख बिंदुओं पर होगा विचार
1 राजभवन से स्वीकृति नहीं मिलने पर विधेयक पुन: सदन से पारित होता है तो क्या राष्ट्रपति को भेजने का विकल्प है?2 विधेयक को राष्ट्रपति के लिए सुरक्षित रखने का निर्णय लेते समय किन बातों को ध्यान में रखा?
3 पॉकेट वीटो की अवधारणा क्या है?
5 अनुच्छेद 200 के तहत विधेयक पर मंशा जताने के लिए क्या कोई समय सीमा है?
6 राज्यपाल से स्वीकृति नहीं मिलने पर विधेयक दुबारा सदन से पारित होकर आए तो क्या राज्यपाल मंजूरी के लिए बाध्य हैं?