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जजों के खिलाफ कौन और कब ला सकता है महाभियोग प्रस्ताव, क्या है इसकी प्रक्रिया?

दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी मिलने के बाद से वे सुर्खियों में बने हुए हैं। न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ केंद्र सरकार संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने पर गंभीरता से विचार कर रही है।

भारतMay 28, 2025 / 02:19 pm

Shaitan Prajapat

जस्टिस यशवंत वर्मा (फोटो – पत्रिका नेटवर्क)

What Is Impeachment: दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व और इलाहाबाद हाईकोर्ट के मौजूदा न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा इन दिनों गंभीर आरोपों के घेरे में हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय इन-हाउस जांच पैनल ने जस्टिस वर्मा के आवास पर बड़ी मात्रा में कैश मिलने की पुष्टि की है। यह रिपोर्ट 8 मई 2025 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री को भेजी गई थी। इसके बाद राष्ट्रपति ने यह रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सभापति को भेज दी है ताकि आगे की संवैधानिक कार्रवाई की जा सके।

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अब इस पूरे मामले में महाभियोग प्रस्ताव की चर्चा तेज हो गई है। सरकार मानसून सत्र में जस्टिस वर्मा के खिलाफ यह प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि जजों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया क्या है, कौन ला सकता है और इसका क्या असर होता है।

महाभियोग प्रस्ताव क्या है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 217 के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के किसी जज को केवल महाभियोग के जरिए ही पद से हटाया जा सकता है, जब वह दुराचार (misbehaviour) या अक्षमता (incapacity) का दोषी पाया जाए। यह प्रक्रिया संसद के जरिए ही पूरी की जाती है और इसमें न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका – तीनों की भूमिका होती है।

कौन ला सकता है महाभियोग प्रस्ताव?

महाभियोग प्रस्ताव संसद में सांसदों के एक समूह द्वारा लाया जाता है।

—लोकसभा में कम से कम 100 सांसद
—राज्यसभा में कम से कम 50 सांसद

इनमें से किसी भी सदन में यदि इतनी संख्या में सांसद प्रस्ताव लाते हैं, तो सभापति (राज्यसभा) या अध्यक्ष (लोकसभा) इसे स्वीकार कर सकते हैं। इसके बाद शुरू होती है जांच की प्रक्रिया।
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प्रक्रिया कैसे होती है?

प्रस्ताव की सूचना:
—100 या 50 सांसदों द्वारा महाभियोग प्रस्ताव की नोटिस दी जाती है।

जांच समिति का गठन:
सभापति या अध्यक्ष द्वारा तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की जाती है जिसमें होते हैं:
—सुप्रीम कोर्ट का एक न्यायाधीश
—एक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश
—एक प्रमुख न्यायविद (jurist)
जांच और रिपोर्ट:
—समिति जज के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच करती है और रिपोर्ट देती है।

मतदान की प्रक्रिया:
अगर समिति दोष सिद्ध करती है, तो प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में रखा जाता है।
इसे पास करने के लिए चाहिए:
—दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत
—और कुल सदस्य संख्या के 50% से अधिक सदस्यों की सहमति
राष्ट्रपति की मंजूरी:
यदि प्रस्ताव दोनों सदनों में पारित हो जाता है, तो राष्ट्रपति जज को पद से हटाने का आदेश देते हैं।

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क्या इसमें जेल की सजा भी हो सकती है?

महाभियोग की प्रक्रिया केवल पद से हटाने तक सीमित होती है। यदि किसी जज पर भ्रष्टाचार या आपराधिक मामला भी बनता है, तो उसे लेकर अलग से जांच और मुकदमा चलाया जा सकता है। जेल की सजा तभी हो सकती है जब आपराधिक अदालत में दोष सिद्ध हो जाए।
जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में यदि कैश की जब्ती से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोप साबित होते हैं, तो सीबीआई या ईडी जैसी एजेंसियां जांच कर सकती हैं, और मामला अदालत में भी जा सकता है।

अब तक किसी जज को नहीं हटाया गया

यह जानना दिलचस्प है कि भारत में अब तक किसी भी सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज को महाभियोग के जरिए नहीं हटाया गया है। हालांकि कुछ मामलों में महाभियोग प्रस्ताव लाए गए लेकिन या तो वे पास नहीं हो सके या जज ने खुद इस्तीफा दे दिया।
—जस्टिस वी. रमास्वामी (1993): महाभियोग लोकसभा में पास नहीं हो पाया।
—जस्टिस सौमित्र सेन और पी.डी. दिनाकरण: महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होने के बाद इस्तीफा दे दिया।

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