साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक यह तकनीक 2030 तक चीनी यात्रियों को चांद पर उतारने के दौरान काफी मददगार साबित हो सकती है। क्रू के सदस्यों ने सेमीकंडक्टर से लैस एक ड्रॉअर के आकार के डिवाइस में प्रयोग किए। इसमें कार्बन डाइऑक्साइड और पानी से ऑक्सीजन का निर्माण किया गया। इस प्रक्रिया के दौरान रॉकेट के ईंधन का काम करने वाले ईथीलीन नाम के हाइड्रोकार्बन का उत्पादन किया गया। इससे पहले स्पेस स्टेशन पर प्रकाश संश्लेषण का उपयोग कर पौधों को उगाने में सफलता हासिल की गई थी।
ऊर्जा की होगी बचत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आइएसएस) पर ऑक्सीजन उत्पन्न करने के लिए फिलहाल इलेक्ट्रोलिसिस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें आइएसएस की कुल ऊर्जा की करीब एक तिहाई खत्म हो जाती है। नई तकनीक में ऊर्जा की खपत कम होगी। इससे लंबी अवधि के लाभ मिल सकेंगे।
चांद पर बेस की तैयारी चीन 2035 तक चांद के दक्षिणी धु्रव के पास बेस स्थापित करने की योजना बना रहा है। नई तकनीक से अंतरिक्ष यात्री लंबे समय तक सांस लेने योग्य हवा पैदा कर सकेंगे और बेस पर रुक सकेंगे। चीन की 2030 तक चांद पर यात्रियों को उतारने की योजना है।