नीरज कुमार ने बताया कि इस फैसले में दी गई ‘दोहरी मौत की सजा’ का अर्थ यह है कि यदि दोषी को किसी एक अपराध में राहत मिल भी जाए, तो भी दूसरे अपराध के तहत उसे मृत्युदंड भुगतना ही पड़ेगा। दरअसल, इस मामले में एक अपराध पोक्सो कानून के तहत और दूसरा भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) तथा 302 (हत्या) के तहत दर्ज किया गया था। जब कोई अपराध ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ की श्रेणी में आता है और अदालत में साबित हो जाता है, तब दोनों ही मामलों में स्वतंत्र रूप से मौत की सजा सुनाई जा सकती है।
धनंजय चटर्जी केस के उदाहरण से समझिए मामला
उन्होंने आगे बताया कि इस व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य यह है कि यदि उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में किसी एक अपराध के लिए दोषमुक्ति हो जाए या सबूतों की कमी के कारण मामला कमजोर पड़ जाए, तो भी दूसरे अपराध की सजा बनी रहे। इस तरह ऐसे गंभीर अपराधों के दोषी तकनीकी खामियों के कारण सजा से बच न सकें। नीरज कुमार ने 2004 में चर्चित धनंजय चटर्जी केस का उदाहरण देते हुए बताया कि उस समय भी 15 वर्षीय लड़की के बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी को ‘दोहरी मौत की सजा’ सुनाई गई थी। उस फैसले में भी अदालत ने यह सुनिश्चित किया था कि दोषी किसी भी हालत में मृत्युदंड से नहीं बच सके। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट प्रायः तभी सजा सुनाता है जब अभियोजन पक्ष का मामला 50-60 प्रतिशत मजबूत हो। हालांकि उच्च न्यायालय में अपील के दौरान यह परखा जाता है कि सजा कितनी न्यायसंगत थी और क्या अभियोजन का पक्ष पूरी तरह से प्रमाणिक था। वर्तमान मामले में भी दोषी पर पोक्सो एक्ट के साथ-साथ आईपीसी की धाराओं 376 और 302 के तहत अलग-अलग मुकदमे दर्ज हुए थे, जो एक ही व्यक्ति द्वारा किए गए थे। चूंकि पीड़िता नाबालिग थी।
इसलिए पोक्सो एक्ट लागू हुआ और बलात्कार व हत्या के कारण भारतीय दंड संहिता की धाराएं भी लगाई गईं। इस कारण अदालत ने दोनों मामलों में अलग-अलग मृत्युदंड दिया, जिसे अंग्रेजी में ‘डबल कैपिटल पनिशमेंट’ कहा जाता है। नीरज कुमार ने आगे बताया कि दोषी के पास अभी उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार मौजूद है। इसके बाद यदि आवश्यक हो तो राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका भी दायर की जा सकती है। लेकिन अगर सभी अपीलों के बाद भी सजा कायम रहती है, तो दोषी को ‘दोहरी मौत की सजा’ भुगतनी होगी।
क्या है गुजरात में मासूम से दुष्कर्म और हत्या का मामला?
दरअसल, साल 2019 में गुजरात की खंभात तहसील क्षेत्र में सात साल की मासूम बच्ची से दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या का मामला सामने आया था। इस मामले में खंभात सत्र न्यायालय के जज प्रवीण कुमार ने 29 साल के आरोपी अर्जुन गोहेल को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और पोक्सो की धारा छह के तहत दोषी पाया। इसके बाद सत्र न्यायालय ने आरोपी को दोहरी मौत की सजा सुनाई। साथ ही पीड़िता के परिवार को 13 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया। इस मामले की जानकारी देते हुए गुजरात के सरकारी वकील रघुवीर पांड्या ने बताया कि अदालत ने इस केस को दुर्लतम अपराध माना है। घटना साल 2019 की है। जब गुजरात के खंभात तहसील क्षेत्र स्थित एक गांव के बाहर खेत में एक सात साल की बच्ची का शव अर्धनग्न हालात में मिला था। स्थानीय लोगों की सूचना पर पहुंची पुलिस ने बच्ची के शव का पोस्टमार्टम कराया। इसमें बच्ची की दुष्कर्म के बाद गला घोटकर हत्या करने की पुष्टि हुई। स्थानीय निवासियों ने पुलिस को जांच के दौरान आखिरी बार बच्ची को आरोपी के साथ देखने की बात बताई थी। इसके बाद पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया था। आरोपी ने पुलिस पूछताछ में पहले तो गुमराह किया, लेकिन बाद में बताया कि घर के बाहर खेल रही बच्ची को बहला-फुसलाकर वह अपने साथ ले गया था। गांव के बाहर खेत में ले जाकर उसने बच्ची के साथ दुष्कर्म किया। आरोपी ने इस वारदात को इतने वहशीपन से अंजाम दिया था कि बच्ची के निजी अंगों पर गहरी चोटें आई थीं। पकड़े जाने के डर से उसने बच्ची की गला घोटकर हत्या कर दी।