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नई दिल्ली

भारत तैयार कर रहा ग्लोबल नेटवर्क, गंभीर बीमारियों की मिलेंगी सस्ती दवाएं

-मोदी सरकार की स्वास्थ्य कूटनीति, 24 देशों के नीति निर्माता और ड्रग रेगुलेटर्स ने मिलाए हाथ

-भारतीय फार्माकोपिया आयोग (आईपीसी) ने विदेश मंत्रालय के सहयोग से ‘वन अर्थ-वन हेल्थ’ मुहिम को बढ़ाया आगे

नई दिल्लीJun 19, 2025 / 01:20 pm

Navneet Mishra

Jan Aushadhi Center
नवनीत मिश्र

नई दिल्ली। देश में जनऔषधि केंद्रों के जरिए 50 से 90 फीसद सस्ती दवाएं आम जन को उपलब्ध कराने की सफलता के बाद अब मोदी सरकार ने स्वास्थ्य कूटनीति के जरिए एक और बड़ा कदम उठाया है। भारत की पहल पर 24 देशों ने आमजन तक महंगी दवाओं की पहुंच बनाने के लिए ग्लोबल नेटवर्क तैयार करने के लिए हाथ मिलाया है। भारतीय फार्माकोपिया आयोग(आईपीसी) और विदेश मंत्रालय के सहयोग से यहां राजधानी में 16 से 19 जून तक आयोजित इंटरनेशनल फोरम में इन देशों के ड्रग से जुड़े दवा नीति निर्माता और रेगुलेटर्स सस्ती दवाओं और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पॉलिसी फ्रेमवर्क तैयार करने में जुटे हैं। 24 देशों के बीच बन रहे इस गठजोड़ से उन दुर्लभ बीमारियों के टीके और दवाएं मामूली रेट पर मिल सकेंगे, जो आज की डेट में लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत भारतीय फार्माकोपिया आयोग ही वह स्वायत्त संस्थान है, जो देश में प्रचलित रोगों के उपचार के लिए आवश्यक दवाओं के मानक को अपडेट करता है। आयोग की ओर से प्रकाशित भारतीय फार्माकोपिया (आईपी) एक आधिकारिक प्रकाशन है जिसमें दवाओं के लिए मानकों का संग्रह होता है। वर्तमान में दुनिया के 15 देश भारतीय फार्माकोपिया को दवा मानकों की पुस्तक के रूप में मान्यता देते हैं। संस्थान की पहल पर एक मंच पर आए 24 देशों के दवा नीति निर्माता के मंथन का मुकसद है कि अमीरों की तरह गरीबों की भी गुणवत्तापूर्ण दवाओं तक समान पहुंच हो। वैश्विक स्वास्थ्य समानता कायम कर सभी को किफायती इलाज मिले। फोरम में दुनिया के देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के मॉडल पर भी चर्चा हो रही है। एक दूसरे के यहां सफल मॉडल अपनाने पर भी मंथन हो रहा है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव, विदेश मंत्रालय की सचिव (दक्षिण) डॉ. नीना मल्होत्रा, भारत के औषधि महानियंत्रक और आईपीसी के सचिव-सह-वैज्ञानिक निदेशक डॉ. राजीव सिंह रघुवंशी ने फोरम में भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की खूबियों को बताया।

भारत ने पेश किया मॉडल

भारत ने हाल-फिलहाल में कई दुर्लभ बीमारियों की सस्ती दवाएं विकसित की हैं। मसलन,
लीवर की गंभीर बीमारी टाइरोसिनेमिया टाइप-ए की जिस दवा को कनाडा से मंगाने पर सालाना 2.2 करोड़ का खर्च आता है, वही दवा देश में तैयार होने पर 2.5 लाख का खर्च आ रहा है। इसी तरह विल्सन डिजीज के इलाज के लिए विदेशी दवा की कीमत 1.8 से 3.6 करोड़ रुपये है, जबकि भारतीय कंपनी ने 3 से 6 लाख कीमत में यही दवा तैयार की है।

फोरम में इन देशों ने लिया भाग

चिली, लाइबेरिया, टोगो, माली, मॉरिटानिया, सिएरा लियोन, कैमरून, रवांडा, लेसोथो, एस्वातीनी, केन्या, बोत्सवाना, इथियोपिया, कोमोरोस, सेशेल्स, मेडागास्कर, पापुआ न्यू गिनी, जिम्बाब्वे, सेंट लूसिया, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस, क्यूबा, ​​बारबाडोस। कैरेबियन पब्लिक हेल्थ एजेंसी के दो प्रतिनिधियों- जमैका और कनाडा भी भाग ले रहे हैं।

भारत ने फोरम में रखे तथ्य

-भारत में 10 साल में स्वास्थ्य केंद्रों पर मुफ्त मिलने वाली दवाओं की संख्या 36 से बढ़कर 106 हो गई है

-अमेरिका की ओर से आयातित जेनेरिक दवाओं का 14 प्रतिशत भारत से आता है
-भारत में तैयार 70 प्रतिशत जेनेरिक दवाओं का निर्यात होता है

-जन औषधि केंद्रों पर दवाओं की कीमतें बाजार से 50 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक कम हैं

-दुनिया के 15 देश भारतीय फार्माकोपिया को दवा मानकों की पुस्तक के रूप में मान्यता देते हैं
-भारत में खुले 1.75 लाख से अधिक आयुष्मान आरोग्य मंदिर में मुफ्त दवाएं और इलाज मिलता है

-कैंसर के उपचार में शामिल जो दवा, बाजार में करीब साढ़े छह हजार रुपये में मिलती है, वहीं जनऔषधि केंद्रों पर सिर्फ 800 रुपये में उपलब्ध है
-विश्व स्वास्थ्य संगठन के कुल टीकों में से 70 प्रतिशत भारत से प्राप्त होते हैं।

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