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किड्स कॉर्नर- चित्र देखो कहानी लिखो 35 …. बच्चों की लिखी रोचक कहानियां

किड्स कॉर्नर- चित्र देखो कहानी लिखो 35 …. बच्चों की लिखी रोचक कहानियां

जयपुरJul 05, 2025 / 02:04 pm

sangita chaturvedi

किड्स कॉर्नर- चित्र देखो कहानी लिखो 35 .... बच्चों की लिखी रोचक कहानियां

किड्स कॉर्नर- चित्र देखो कहानी लिखो 35 …. बच्चों की लिखी रोचक कहानियां

परिवार परिशिष्ट (25 जून 2025) के पेज 4 पर किड्स कॉर्नर में चित्र देखो कहानी लिखो 35 में भेजी गई कहानियों में ये कहानियां सराहनीय रहीं।

पेड़ हमारे सच्चे दोस्त
एक स्कूल में हरित सप्ताह मनाया जा रहा था। इस सप्ताह के अंतर्गत बच्चों को पर्यावरण की सुरक्षा और पेड़ लगाने के बारे में बताया गया। रविवार के दिन, स्कूल ने पास के एक खाली मैदान में पेड़ लगाने का कार्यक्रम रखा। सुबह-सुबह, स्कूल के कई बच्चे अपने-अपने साधनों के साथ मैदान में पहुंच गए। कुछ बच्चे पानी की बाल्टी और मग लेकर आए, तो कुछ छोटे-छोटे पौधे और गमले लाए। सबके चेहरे पर उत्साह और खुशी साफ नजर आ रही थी। टीचर ने सबको समझाया कि पेड़ हमारे जीवन के लिए कितने जरूरी हैं। वे हमें ऑक्सीजन देते हैं, धूप से बचाते हैं, बारिश लाते हैं और धरती को सुंदर बनाते हैं।
बच्चों ने मिलकर गड्डे खोदे, पौधे लगाए और उन पर पानी डाला। किसी ने फूलों वाले पौधे लगाए, तो किसी ने फलदार पेड़। सबने मिलकर ठान लिया कि वे रोज आकर इन पेड़ों की देखभाल करेंगे। नन्ही पायल ने कहा कि हम इन पेड़ों को अपने दोस्त बनाएंगे और इनसे रोज बातें करेंगे। सब बच्चे हंस पड़े, लेकिन सभी को उसकी बात पसंद आई। कुछ ही हफ्तों में वह मैदान हरियाली से भर गया और वहां पक्षी भी आने लगे। बच्चों ने सीखा कि अगर हम मिलकर मेहनत करें, तो धरती को सुंदर और हरा-भरा बना सकते हैं।
नीर चुघ, उम्र- 12 साल
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पर्यावरण से सेहत और ख़ुशी
शिब्बू और शिवि दोनों भाई—बहन अपनी गर्मी की छुट्टियो में नानाजी के घर आये थे। वहां और भी मामाजी और मौसी के बच्चे थे। सब बच्चे मिलकर थोड़ी देर खेलते और फिर पूरे दिन या तो मोबाइल पर या टीवी पर कुछ ना कुछ देखते रहते थे। उनकी आदत से नानाजी परेशान थे कि ये बच्चे कुछ अच्छा सीख सकते हैं, लेकिन यूं ही समय और सेहत खराब कर रहे हैं! फिर अगले दिन नानाजी सुबह-सुबह सभी बच्चों को जल्दी उठा एक गार्डन लेकर गए।
जहां बहुत सारे पेड़-पौधे और हरियाली थी, जो सभी बच्चों को अच्छा लगा और नानाजी ने कहा की क्यों ना एक छोटा सा गार्डन घर में भी बनाया जाए। सब ही बच्चे बड़े खुश हुए! फिर नानाजी ने सब बच्चों को सफाई का सामान और कुछ पौधे लाकर दिए, सभी बच्चों ने मिलकर खुशी-खुशी साफ सफाई की और पेड़-पौधे लगाए। सभी बड़े खुश हुए और अब मोबाइल टीवी को छोड़ गार्डन में थोड़ी देर कसरत करते, पौधों की देखभाल करते और गार्डन को साफ रखते।
हितेन मौर्य, उम्र- 7 साल
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पेड़ ही जीवन
एक गांव जिसका नाम ढोलकपुर था। वहां स्थित एक छोटे से विद्यालय में बहुत से बच्चे पढऩे आया करते थे। एक दिन अध्यापक मोहन सर बच्चों को एक पाठ पढ़ा रहे थे, पेड़ ही जीवन। जिसमें वह बच्चों को पढ़ाते हैं कि किस तरह पेड़ों की निरंतर कटाई से वातावरण में अशुद्धता तथा जल, भूमि, वायु और ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा है।
बच्चों से वह प्रतिज्ञा लेने को कहते हैं, हम प्रतिज्ञा लेते हैं कि हम पेड़ों की कटाई के ख़िलाफ आवाज उठाएंगे और निरंतर पेड़ लगाएंगे। इसके बाद सभी बच्चे भिन्न-भिन्न प्रकार के पेड़-पौधे लगाते हैं तथा अपनी प्रतिज्ञा का पूर्ण रूप से पालन करते हैं।
बिट्टू राय, उम्र- 13 साल
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पेड़ों से जीवन
एक बार की बात है। रामपुर नामक गाव में राम-रिया नाम के दो भाई—बहन रहते थे। दोनों बहुत शरारती और लापरवाह थे। दोनों अक्सर पेड़—पौधों को तोड़ते रहते थे। उनके माता-पिता ने उन्हें बहुत समझाया, लेकिन वे माने ही नहीं। एक दिन राम-रिया के मामा उनके घर आए। दोनों बच्चों को पेड़ तोड़ते देख उनके मामा को बहुत बुरा लगा। उनके मामा ने उन्हें पेड़ों का महत्व सिखाने के लिए एक तरकीब सोची। वे दोनों बच्चों को लेकर एक खुले मैदान में गए। मैदान में एक भी पेड़—पौधा न था इस कारण पूरे मैदान में धूप और गर्मी हो रही थी। थोड़ी देर में दोनो की हालत खराब हो गयी।
दोनों बच्चे छायादार स्थान ढूंढऩे लगे, परन्तु उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हुई। थक-हार कर दोनों बच्चे अपने मामा के पास गए। दोनों बच्चों ने अपने मामा को घर चलने को कहा। तब उनके मामा ने उनसे कहा, थोड़ी सी देर में तुम दोनों की हालत खराब हो गई। यदि पेड़ न होंगे तो तुम्हें फल, फूल, छाया आदि कहां से मिलेंगे और तुम्हारे पसंदीदा फल भी तो पेड़ों से ही आते हैं। दोनों बच्चों ने अपने मामा से माफी मांगी और घर को चले गए। शाम के समय दोनों बच्चे अपने दोस्तों के साथ पास वाले बगीचे में गए। सब बच्चों ने एक—दूसरे के साथ बहुत सारे पौधे लगाए और संकल्प लिया कि आगे से कभी किसी पेड़ को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे और सभी को पेड़ों का महत्व बताएंगे।
जिया शर्मा, उम्र- 12 साल
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प्रकृति की सेवा
एक स्कूल में पर्यावरण संरक्षण सप्ताह मनाया जा रहा था। इसी अवसर पर शिक्षक ने बच्चों को स्कूल के बगीचे में पेड़-पौधे लगाने और उनकी देखभाल करने का कार्य सौंपा। चित्र में हम देख सकते हैं कि सभी बच्चे बहुत उत्साह के साथ इस कार्य में जुटे हुए हैं। एक बच्चा फूलों के पौधों को पानी दे रहा है, तो एक लड़की पेड़ के पास खड़ी होकर उसे सहारा दे रही है। दो बच्चे मिलकर पेड़ की जड़ में मिट्टी डाल रहे हैं।
एक बच्चा फूलों की क्यारियों में पानी डाल रहा है और एक लड़की तगारी में मिट्टी और पौधे ला रही है। सभी के चेहरे पर मेहनत और आनंद की झलक दिखाई दे रही है। बच्चों का यह समर्पण देखकर ऐसा लगता है जैसे वे पेड़-पौधों को अपना दोस्त मान चुके हों। यह दृश्य हमें यह सिखाता है कि प्रकृति की सेवा करना न केवल जरूरी है बल्कि आनंददायक भी हो सकता है। इस तरह बच्चों ने मिलकर न केवल बगीचे को सुंदर बनाया, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का महत्वपूर्ण संदेश भी दिया।
गोपाल जोगी, उम्र- 8 साल
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पौधा एक दिन बनेगा पेड़
एक धूप भरी सुबह, कुछ बच्चे अपने स्कूल के बगीचे में इक_ा हुए। उनके चेहरों पर उत्साह था और हाथों में छोटे फावड़े, पानी के डिब्बे और नन्हे पौधे थे। रिया, जो सबसे बड़ी थी, ने एक गड्डा खोदा और उसमें एक छोटा आम का पौधा लगाया। उसके छोटे भाई-बहन, अमित और प्रिया, उसके बगल में खड़े होकर उसे ध्यान से देख रहे थे। थोड़ी दूर पर, समीर और टीना फूलों की क्यारियों को पानी दे रहे थे। रंग-बिरंगे फूल पानी पाकर और भी खिल उठे थे। अजय एक ठेले में खाद भरकर ला रहा था, जिसे वे नए लगाए गए पौधों में डालेंगे।
सभी बच्चे मिलकर काम कर रहे थे, कोई मिट्टी खोद रहा था, कोई पानी दे रहा था, और कोई पौधों को सहारा दे रहा था। शाम होते-होते, बगीचा एक नया रूप ले चुका था। चारों ओर नन्हे पौधे और खिले हुए फूल थे। बच्चों के चेहरे पर संतोष और खुशी थी। उन्होंने महसूस किया कि प्रकृति की सेवा करना कितना आनंददायक है और कैसे छोटे-छोटे प्रयासों से एक बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। उस दिन से, उन्होंने हर हफ्ते बगीचे की देखभाल करने का फैसला किया, ताकि उनका लगाया हुआ हर पौधा एक दिन बड़ा पेड़ बनकर छाया और फल दे सके।
प्रदीप कुमावत, उम्र-13 साल
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हम सबका बगीचा
एक बार की बात है, एक स्कूल में बहुत प्यारे-प्यारे बच्चे पढ़ते थे। एक दिन उनकी टीचर ने कहा, बच्चों, हम मिलकर एक सुंदर बग़ीचा बनाएंगे। उसमें फूल भी होंगे, पेड़ भी होंगे और तितलियां भी आएंगी। सभी बच्चे बहुत खुश हो गए। अगले दिन सभी बच्चे अपने-अपने औज़ार लेकर आए—कोई बाल्टी, कोई झाड़ू, कोई फावड़ा, तो कोई पानी की कैन। वे मिलकर ज़मीन की खुदाई करने लगे, बीज बोए और छोटे-छोटे पौधे लगाए।
राधा ने पौधों को पानी दिया। अमित ने पौधों के चारों ओर मिट्टी जमाई। सिमी ने पास पड़े कूड़े को साफ़ किया। टीना और रोहन ने फूलों को प्यार से देखा और बोला, जब ये बड़े हो जाएंगे, तो हमारा स्कूल और भी सुंदर लगेगा। कुछ ही दिनों में वह बग़ीचा बहुत सुंदर हो गया। वहां रंग-बिरंगे फूल खिले, और तितलियां मंडराने लगीं। बच्चे हर दिन उसका ध्यान रखते, पानी देते और गंदगी साफ़ करते। टीचर ने सबको शाबाशी दी और कहा, जब हम सब मिलकर मेहनत करते हैं, तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता।
वंश गौड़, आयु- 10 साल
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एक नई शुरुआत
एक छोटे से गांव में, जहां हरियाली की कमी थी, कुछ बच्चों ने मिलकर एक बड़ा बदलाव लाने का फैसला किया। उनका नाम था पंक्ति, अमन, सोनिया और छोटू। वे सभी पर्यावरण से बहुत प्यार करते थे और अपने गांव को हरा-भरा देखना चाहते थे। उन्होंने मिलकर एक योजना बनाई। सबसे पहले, वे गांव के सरपंच के पास गए और उन्हें अपनी योजना बताई। सरपंच ने उनकी लगन देखकर उन्हें पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया।
बच्चों ने गांव के खाली पड़े मैदान में पौधे लगाने का काम शुरू किया। राहुल और छोटू ने फावड़े से जमीन खोदी, अमन ने बड़े उत्साह से पौधे लगाए, और पंक्ति व सोनिया ने पौधों को पानी दिया। उन्होंने न केवल पौधे लगाए, बल्कि उनकी नियमित रूप से देखभाल भी की। धीरे-धीरे, उनकी मेहनत रंग लाने लगी। खाली मैदान अब हरे-भरे पेड़ों और रंग-बिरंगे फूलों से भर गया था। गांव के लोग भी उनकी इस पहल से प्रेरित हुए और उन्होंने भी अपने-अपने घरों के आस-पास पौधे लगाने शुरू कर दिए। गांव में हरियाली बढऩे लगी और वातावरण भी स्वच्छ हो गया। पंक्ति, अमन, सोनिया, राहुल और छोटू ने मिलकर यह साबित कर दिया कि अगर छोटे बच्चे भी ठान लें, तो वे कितना बड़ा बदलाव ला सकते हैं। उनकी कहानी ने पूरे गांव को एक नई दिशा भी दी।
रुद्राक्ष त्यागी, उम्र- 12 साल
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ख़ुशी का बगीचा
एक धूप वाली सुबह, स्कूल का यार्ड उत्साह से गूंज रहा था। हंसमुख बच्चों का एक समूह बगीचे के भूखंड के पास इक_ा हुआ, प्रत्येक के पास एक छोटा पानी का कैन या एक छोटा सा पौधा था। आज ग्रीन डे था, और उनका मिशन भूमि के ख़ाली हिस्सों में जीवन लाना था। माया ने उज्ज्वल मैरीगोल्ड की एक पंक्ति पर धीरे से पानी छिड़का, जबकि आरव और ज़ोया ने नीम और आम के पेड़ लगाने के लिए गड्ढे खोदे।
ऋषि ने ध्यान से एक बच्चे के गुलाब के पौधे के चारों ओर मिट्टी को दबाया, उसके हाथ कीचड़ से ढके हुए थे लेकिन आंखें ख़ुशी से चमक रही थीं। कुछ बच्चों ने प्रत्येक पौधे के लिए संकेत बनाए, उन्हें पालतू जानवरों की तरह नाम दिया-गुलाबी, पत्ती, सनी। शिक्षक गर्व से मुस्कुराई, क्योंकि उसने बगीचे को जीवंत होते हुए देखा। दिन के अंत तक, बगीचा जादुई लग रहा था – हरा और ताज़ा। बच्चों ने ताली बजाई और एक समूह फ़ोटो के लिए पोज दिया।
गौरी, उम्र- 8 साल
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पर्यावरण की रक्षा करें
एक समय हम सभी मित्र विद्यालय से घर आते वक्त बातें कर रहे थे, तभी उनमें से एक की नजर जंगल पर पड़ी, जो बिल्कुल सूख चुका था। वह देख कर सभी मित्र सोचने लगे की अगर इसी तरह चलता रहा तो हमारा जीवन यापन करना भी कठिन हो सकता है।
इस विषय पर सभी चर्चा करने लगे और सभी मित्रों ने मिलकर ये निर्णय लिया कि आज से हम भी पर्यावरण की रक्षा करेंगे। ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाएंगे और दूसरों को भी पर्यावरण की रक्षा करने के लिए जागरूक करेंगे। यह सोचकर उन सभी मित्रों ने अपने- अपने घर जाकर एक-एक पौधा लगाया और अपने माता-पिता और भाई बहन को भी इसके प्रति जागरूक किया।
दिव्यंता राजावत, उम्र-8 साल

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