Opinion : इरफ़ान – अभिनय और अदाकारी का यथार्थवादी कलाकार
भारतीय सिनेमा, रंगमंच और छोटा पर्दा इरफ़ान को कलाकारी का यथार्थवादी अभिनेता के तौर पर याद रखा जाएगा। उसे भारतीय सिनेमा में कलाकारी के क्षेत्र में यथार्थवाद को लाने का श्रेय दिया जा सकता हैं।
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डॉ सुवा लाल जांगु सहायक आचार्य, राजनीति विज्ञान विभाग, मिजोरम विश्वविद्यालय
इरफ़ान के लिए अभिनय एक कला ही नहीं थी बल्कि जीवनदर्शन का यथार्थ था। भारतीय सिनेमा, रंगमंच और छोटा पर्दा इरफ़ान को कलाकारी का यथार्थवादी अभिनेता के तौर पर याद रखा जाएगा। उसे भारतीय सिनेमा में कलाकारी के क्षेत्र में यथार्थवाद को लाने का श्रेय दिया जा सकता हैं। इरफ़ान का हिन्दी सिनेमा में प्रवेश उस दौर में हुआ जब भारतीय सिनेमा में अभिनय के लिए रंगमंच के अनुभव की अनिवार्यता की परंपरा खत्म हो रही थी। हालांकि वह स्वयं उसी परंपरा से आये थे। उसे अभिनय की पहचान रंगमंच और छोटे पर्दे की बजाय बड़े पर्दे से मिली। इरफ़ान अपनी अभिनय क्षमता से दक्षिण-एशिया में बड़े पर्दे के सबसे बड़े कलाकार बन कर उभरे। उसे अभिनय कला का क्रांतिकारी सितारा माना जाता हैं। वह भारतीय फिल्म जगत के बदलते दौर का चेहरा था। इरफ़ान फिल्मी अदाकारी को बदलने वाला कलाकार माना गया हैं। सलाम बॉम्बे (1988) पहली फिल्म से लेकर अंग्रेजी मीडियम (2020) आखिरी फिल्म तक, बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक और थिएटर से लेकर सिनेमा तक, दक्षिण एशिया और इंग्लिश फिल्म वर्ल्ड के बीच एक ब्रिज था इरफान।
खजूरिया गाँव से लेकर हॉलीवुड तक
इरफ़ान का सामाजिक-पारिवारिक परिवेश शहरी और सिनेमा संस्कृति से दूर राजस्थान के टोंक जिले में खजूरिया गाँव से था। उसके परिवार का तालुक टायर-कारोबार से था। उस समय ग्रामीण परिवेश में युवा सिनेमा देखने का शौक तो रखते थे लेकिन सिनेमा में काम करने की न तो कौशिश करते और न ही कशिश रखते थे। दूसरे युवाओं की तरह इरफ़ान भी क्रिकेट खेलते और पतंग उड़ाते। वह उच्चतर शिक्षा के लिए जयपुर आया तो उसमें सिनेमा देखने की रुचि, अब इसको समझने और दूसरों की तरह अभिनय करने की इच्छा हुई। आज की तरह ही पहले भी राष्ट्रीय नाट्य स्कूल में प्रवेश करने के लिए 6-7 रंगमंच के अभिनय करने की अनिवार्यता होती थी, के बावजूद इरफ़ान ने झूठ बोलके अध्ययन कोर्स में चयन लिया था| यह बात उसने अनुपम खेर के कार्यक्रम: “कुछ भी हो सकता हैं” – के चौथे एपिसोड में बताई थी। इरफान का चेहरा मिथुन चक्रवर्ती से मिलता-जुलता होने से, उसके एक जानकार ने उसको हिन्दी फिल्मों में काम करने का सुझाव दिया| शुरुआती दिनों में इरफान ने मिथुन की तरह हेयर-स्टाइल भी रखी थी।
अभिनय की अदाकारी का महारथी
इरफ़ान के अभिनय में न केवल यथार्थता थी बल्कि अपने परिवेश की महक और मौलिकता भी थी। वह फिल्म में अभिनय के लिए अच्छी भूमिका या चरित्र पाने की बजाय अच्छी कहानी को प्राथमिकता देता था। उसकी नज़र में एक अच्छी कहानी से मतलब जो समाज और दर्शकों के लिए कोई गंभीर सवाल करती हो। पान सिंह तोमर फिल्म की कहानी समाज से कई बड़े सवाल करती हैं। इस फिल्म के एक सीन में पान सिंह तोमर अपने चाचा के गोली लगने से मौत होने पर कहते हैं “अरे चाचा जिंदगी में पान सिंह तोमर से भी तेज भाग लेगा क्या? पान सिंह आगे और एक सवालिया लहजे में कहते हैं कि तुमने जमीन ही बेच दी|” उसके चाचा ने जमीन बेच दी थी, यह सवाल पान सिंह चाचा से नहीं बल्कि किसान के लिए जमीन का मूल्य क्या हैं बल्कि दर्शकों से करता हैं।
इरफ़ान में अभिनय कला से किसी भी चरित्र को प्रासंगिक बनाने का हुनर था। पान सिंह तोमर के नकारात्मक चरित्र (जब वह चम्बल के बीहड़ में एक डकेत बन जाता हैं) को इरफान ने न केवल नायक बनाया बल्कि उसे गुमनामी से बाहर निकाल कर लाया| चाहे नाट्य रंगमंच की कहानी का पात्र हो या छोटा पर्दा या बड़ा पर्दा का, इरफान उसके चरित्र की गहराई में उतार जाते और उसे एक मानवीय और उदारता का चेहरा देते थे। इरफान को इंसानियत और सामाजिक प्रभाव वाली कहानी पर आधारित मूवी में अभिनय करना पसंद करते थे जैसे लाइफ ऑफ पाई, मकबूल, हिन्दी और अंग्रेजी मीडियम, इत्यादि। चुनौती भरे पात्र की भूमिका, जिससे इरफान स्व-संतुष्ट होने के बाद ही किसी मूवी में अभिनय करने को तैयार होते थे। इसीलिए तो वह फिल्म अदाकारी का नया मुहावरा बन गया था।
अपने अभिनय कला (किरदार) से फिल्म के चरित्र को नयापन देना; एक नाट्यकता का रूप देने की बजाय उसमें मौलिकता लाना और चरित्र को एक सकारात्मक छवि देना जैसी कई विशेषतायें भरी थी इरफान की अभिनय कला में। हिन्दी मीडियम फिल्म में पिता-पुत्र/पुत्री के बीच पीढ़ी के अंतर और मतांतर को इरफान अपनी अभिनय कला (किरदार) से सकारात्मकता और गुणवत्तात्मक भाव दिया। बाप को इंग्लिश नहीं आती लेकिन अपने बच्चे को इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाना चाहता हैं| इस फिल्म में अग्रणी किरदार के तौर पर इरफान ने हमारे बदलते समाज में शिक्षा के भाषाई माध्यम के महत्व को उजागर किया। कहते हैं कि इरफ़ान आंखों से अभिनय करते थे और गब्बर सिंह की तरह भारी और उच्ची आवाज में (कितने आदमी थे, सांभा) बोलने की जगह इरफान का किरदार चुटकी की आवाज में अपनी बात कह देता था। फिल्म के किरदार की खवाइश को इरफान अपने अभिनय की कला से व्यक्त कर देते थे। बॉलीवुड में निर्देशक और अभिनेता तिग्मांशु धूलिया के शब्दों में इरफान में अदाकारी और अभिनय की नींव काफी मजबूत थी – वह एक आउट्डोर कलाकार था, इरफान जैसे कलाकार जन्म नहीं लेते हैं बल्कि बनते हैं| उसकी अदाकारी और किरदार के बिना कई फिल्में अधूरी रह सकती थी।”
कलाकार का व्यक्तित्व और परिवार
एक कलाकार का व्यक्तित्व उसके करियर में किये गये संपर्ण, संघर्ष और सामाजिक व्यवहारिकता से बनता हैं। सिनेमा, नाट्यमंच और टीवी धारावाहिकों में केरियर को देख रहे युवाओं को इरफान के द्वारा किये गये संपर्ण, संघर्ष और धैर्य को सीखना चाहिए। रंगमंच की प्रग्रेसिव फोरम के निर्देशक डॉ गिरीश कुमार यादव ने बताया – इरफान के संवादों में ‘सच्चाई और इंसानियत का भाव’ झलकता था, जिससे दर्शक उसके अभिनय से जुड़े रहते हैं|” इरफ़ान के ही शब्दों में, “पान सिंह तोमर के किरदार को मैंने अपने पिता के चरित्र में मानकर अभिनय किया। इसलिए मैं पान सिंह के किरदार को अच्छे से कर पाया।” मुंबई में एक बार राष्ट्रीय अवॉर्ड समारोह में लोगों ने इरफान को एक ऑटोरिक्शा से रेड कार्पेट पर उतरते देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ लेकिन यह उसकी सादगीपूर्ण व्यक्तित्व की झलक थी। 2001 में आयी ‘द वॉर्यर’ मूवी, सिनेमा में इरफान की दिशा और अभिनय कला में बदलाव की दृष्टि से लैंडमार्क रही हैं। उसके लिए मूवी कमाने और मुकाम पाने का साधन नहीं, बल्कि जीवन के उद्देश्य को पाने का साध्य था।
पत्नी सुतापा सिकदर इरफान की एनएसडी में सहपाठी और फिल्म निर्मात्री और निर्देशिका हैं, ने 2011 में इंडिया टुडे को दिये गये एक साक्षात्कार में बताया: “इरफान अपने काम पर पूरा फोकस रखते थे, किताबे पढ़ने का बहुत शौक था उसे” आगे और कहती हैं, “इरफान समय को लेकर अनुशासित था। अपने फिल्मी करियर में फिल्म-टीम के सदस्यों को इंतजार नहीं करना पड़े, इतनी कौशिश करते थे।” इरफ़ान का मानना था कि एक अच्छी मूवी वह होती हैं जो दर्शकों से सवाल करती हैं, जो अपनी कहानी से दर्शकों को जोड़ती हैं। फिल्म में मनोरंजन किसी सामाजिक मूल्य पर आधारित होना चाहिए न की पैसा और फैशन के आधार पर| 2013 में बीबीसी इंग्लिश के एक कार्यक्रम में इरफ़ान ने बताया “मुझे शुरू से ही कहानियां बनाना और कहानियों से सीखने का शौक रहा हैं। मैं फिल्म की कहानी को प्राथमिकता देता हूं और फिल्म की कहानी समाज को प्राथमिकता देती हो, उस फिल्म में मुझे अदाकारी करना पसंद हैं।” इसीलिए वह फिल्म की कहानी और उसके किरदार के चरित्र की गहराई में उतर जाते थे। फिल्म के कहानीकार के साथ प्यार का रिश्ता रखते और कहानी के किरदारों के साथ इंसानियत का रिश्ता बनाते थे।
अभिनय की कला और शैली
इरफ़ान अपने को फिल्मी स्टारडम की बजाय एक फिल्मी कलाकार ही मानते थे। उसने अपने को किसी खास प्रकार के किरदार तक सीमित नहीं रखा और अभिनय की कला को किरदार की शैली में गढ़ते थे। इरफ़ान ने फिल्मों में रंगमंच से प्रभावित अभिनय की कला को किरदार आधारित अभिनय की कला को सिनेमा में लेकर आये थे। उसने किसी प्रकार के किरदार की भूमिका करने से पहले उस किरदार की मनौविज्ञान और जीवनदर्शन का बारीकी से अध्ययन करते थे| इरफान का कलाकार की छवि के बजाय फिल्म की कहानी पर ध्यानकेंद्रित करते थे| वह किसी फिल्म को अभिनेता-दृष्टि की बजाय किरदार-दृष्टि से समझते थे। हाशिल, मक़बूल, द वॉर्यर, किस्सा जैसी फिल्मों ने इरफ़ान की अभिनय की अदाकारी और किरदार की शैली को आलोचनात्मक, रचनात्मक और सार्थकता का भाव और पहचान देती हैं। पूर्वर्ती राज्यसभा टीवी के कार्यक्रम एंकर कुरबान अली के साथ 2015 में एक साक्षात्कार में इरफान ने बताया था, “अगर कोई मूवी न तो सामाजिक मनोरंजन करे हैं और न ही समाज के किसी मुद्दे को उजागर करे, तो वह मूवी कहलाने के लिए योग्य नहीं होती हैं| उसने मनोरंजन-सिनेमा को पूर्णपरिभाषित करने की जरूरत पर जोर दिया हैं”।
रंगमंच और सिनेमा में अंतर
इरफान का मानना था कि रंगमंच के माध्यम से समाज में मूल्यों को स्थापित किया जा सकता हैं लेकिन सिनेमा यह काम नहीं कर सकता हैं। रंगमंच में कला और मूल्य होते हैं लेकिन सिनेमा में पैसा और फैशन होता हैं। इरफान ने बॉलीवुड और हॉलिवुड फिल्मों में अंतर बताया: भारतीय फिल्में कलाकार/अभिनेता केंद्रित होती हैं लेकिन हॉलीवुड फिल्में कहानी केंद्रित होती हैं| बॉलीवुड फिल्में कहानी की बजाय अभिनेता की छवि पर आधारित होती हैं लेकिन हॉलीवुड फिल्मों की कहानियां जन-उद्देश्य को ध्यान में रखकर बनायी जाती हैं| बॉलीवुड फिल्म के सभी विभाग अभिनेता की छवि को साधने में काम करते हैं वहीं हॉलीवुड फिल्म के सभी विभाग एक-साथ मिलकर फिल्म की कहानी के उद्देश्य को दर्शकों तक पहुँचाते हैं। बॉलीवुड फिल्म की कहानी भी अभिनेता-केंद्रित होती हैं लेकिन हॉलीवुड फिल्म की कहानी समाज-केंद्रित होती हैं। हिन्दी फिल्मों का अंतर्राष्ट्रीय उद्देश्य सिर्फ एनआरआई के मनोरंजन को साधना रहता हैं। हॉलीवुड फिल्में बनती ही अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों के लिए और वैश्विक बाजार में बने रहने के लिए।
इरफान की पूर्ण और अपूर्ण ख्वाहिशें
अपनी अम्मीजान को हज़ की यात्रा पर ले जाने की ख्वाहिश पूरी नहीं कर पाने का इरफान को मलाल रहा हैं। लॉकडाउन के दौरान वह अपनी अम्मीजान के अंतिम क्रियाक्रम में शामिल नहीं हो सका था। इरफान की एक इच्छा अधूरी रह गयी, जिसकी उसने वरुण ग्रोवर के साथ तैयारी भी की थी – वह थी– मुग़ल–ए–आज़म फिल्म और के आशिफ को लेकर एक शोध आधारित ‘द मैकिंग ऑफ मुग़ल-ए-आजम’ नाम से मूवी बनाना। मानवता इरफान खान की शब्दकोष में एक नया शब्द था। जब उसे कैंसर से ग्रसित होने की जानकारी हुयी तो इस पर इरफान ने कहा – “अब मैं प्रयोग का एक हिस्सा बन गया हूं| मेरी जिंदगी एक तरह से अस्पताल बनाम स्टेडियम की जंग में तब्दील हो गयी हैं। यह संसार अनिश्चितताओं से भरा हुआ हैं। ” लंदन के अस्पताल से लिखे एक खत में इरफान ने मानव के जीवनदर्शन का मर्म बताया। इरफान ने रंगमंच, छोटा पर्दा और बड़ा पर्दा सभी पर अभिनय किया, इस रंगीन जीवन के हरेक पहलू को जाना और जिया लेकिन अपने पैरों पर लगी पैदाइशी और परवरिश की मिट्टी को कभी नहीं उतरने दिया। इरफान ने अपने जीवन के आखरी सांस को भी खुशी से जीने के लिए संघर्ष किया था| 2012 में अपने नाम में एक अतिरिक्त ‘आर’ जुड़वा लिया था और 2016 में अपने नाम से ‘खान’ को हटा लिया था। उसको अपने नाम में ‘दो आर’ की ध्वनि सुनाई पड़ती हैं। इसी तरह लोग उसे उसके काम से जाने, न की खान के वंश पहचान से जाने| मुस्लिम जागीरदार पठान परिवार में पैदा होकर भी जीवनभर जानवरों के शिकार और हिंसा के विरोधी और शाकाहारी रहे।
प्रोग्रेसिव फोरम और इरफान रंग उत्सव 2025
जनवरी 7 को इरफान के जन्मदिन के अवसर पर राष्ट्रीय प्रोग्रेसिव फोरम के नेतृत्व में राजस्थान सरकार कला और संस्कृति मंत्रालय और केन्द्रीय सरकार संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर (आरआईसी), जयपुर में पहला इरफान थिएटर फेस्टिवल-2025 (इरफान रंग उत्सव 2025) का जनवरी 6-8 के दौरान आयोजन किया गया। प्रथम इरफान रंग उत्सव – 2025 के आयोजन के सूत्रधार रहे – प्रोग्रेसिव फोरम के निर्देशक और रंगमंच अभिनय के लिए दो बार राष्ट्रपति अवॉर्ड से सम्मानित डॉ गिरीश कुमार यादव| पूरे देश में इरफान को समर्पित पहला रंगमंच उत्सव का आयोजन जयपुर में किया गया। इस तीन-दिवसीय इरफान रंग उत्सव के दौरान पहले दिन उद्घाटन के पश्चात ‘द वर्डिक्ट’ नाटक का मंचन हुआ। दूसरे दिन जनवरी 7 को “किस्से किनारों के” नाटक का मंचन किया गया और इरफान की पत्नी सुतापा सिकदर और भाई इमरान के साथ डॉ गिरीश के नेतृत्व में एक मीडिया गुफ्तगू रखी गई थी| और जनवरी 8 को ‘महारथी’ नाटक का मंचन किया गया। रंगमंच की प्रग्रेसिव फोरम पिछले 40 सालों से कला, संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हैं और योगदान देती आ रही हैं। प्रोग्रेसिव फोरम ने अपने महारथी कलाकार इरफान को उसके थिएटर और कला में योगदान के तौर उसके जन्मदिन के अवसर पर इस उत्सव का आयोजन करके याद किया।
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